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कोरोना संकट में रोक, नहीं हुई कोई देहदान

यादवेन्द्र शर्मा शिमला कोरोना संकट में देहदान लेने पर रोक है ताकि कोरोना संक्रमण न फ

By JagranEdited By: Published: Wed, 12 Aug 2020 06:11 PM (IST)Updated: Thu, 13 Aug 2020 06:19 AM (IST)
कोरोना संकट में रोक, नहीं हुई कोई देहदान
कोरोना संकट में रोक, नहीं हुई कोई देहदान

यादवेन्द्र शर्मा, शिमला

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कोरोना संकट में देहदान लेने पर रोक है, ताकि कोरोना संक्रमण न फैले। इसके लिए सभी मेडिकल कॉलेजों को निर्देश दिए गए हैं। इस कारण हिमाचल में सात माह से एक भी देहदान नहीं हो सका है और जिन्होंने दान का संकल्प लिया था और उनकी मृत्यु हो गई, उनकी देह भी नहीं ली गई। प्रदेश में देहदान के प्रति लोग जागरूक हैं। इसी का परिणाम है कि अब तक करीब 500 लोग देहदान का संकल्प ले चुके हैं।

प्रदेश में छह मेडिकल कॉलेज हैं। इनमें करीब 900 प्रशिक्षु डॉक्टर प्रशिक्षण ले रहे हैं। इन्हें डॉक्टर बनने के लिए हर मेडिकल कॉलेज में 10 से 15 देह की हर साल आवश्यकता होती है और इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए पीजीआइ चंडीगढ़ से देह लेनी पड़ रह हैं या फिर जो ऐसे लोगों की देह मिलती है जिनका वारिस नहीं होता है। इसके अलावा जिस मेडिकल कॉलेज के पास ज्यादा देह होती हैं तो उनसे ली जाती हैं।

इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (आइजीएमसी) शिमला में 2012 में देहदान की प्रक्रिया को शुरू हुई थी जबकि डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल टांडा (कांगड़ा) में 2015 में और नए मेडिकल कॉलेजों में अभी दो वर्ष भी नहीं हुए हैं। ऐसे में वहां पर देहदान करने वालों की संख्या कम है।

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अब ऑनलाइन कर सकते हैं आवेदन

देहदान के लिए अब ऑनलाइन भी आवेदन कर सकते हैं। इसके लिए संबंधित मेडिकल कॉलेज की वेबसाइट पर आवेदन पत्र दिया गया है। जिस भी मेडिकल कॉलेज में देहदान की प्रक्रिया को शुरू किया जाना है वहां पर समिति का गठन होना आवश्यक है। समिति में कॉलेज के प्रधानाचार्य के अलावा एनॉटमी विभाग के विभागाध्यक्ष व अन्य शामिल होते हैं।

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आठ साल में मात्र पांच देह हुई प्राप्त

प्रदेश में 2012 से देहदान की प्रक्रिया शुरू हुई और अभी तक केवल पांच देह ही प्राप्त हुई हैं। 2012 में सिरमौर जिला की उपतहसील भांगड़ के 63 वर्षीय बलदेव सिंह ने देह दान की थी और उनकी डेडबॉडी मिली थी। तब से अभी तक पांच ही देह प्राप्त हुई हैं।

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-केस स्टडी-1

मिट्टी में ही मिल जाना है शरीर

जिला ऊना के बंगाणा निवासी 68 वर्षीय यशपाल जो दुकान चलाते हैं। उनका एक बेटा और एक बेटी के अलावा पौता और पौती हैं। उनका मानना है कि यह शरीर मिट्टी में मिल जाना है मरने के बाद शरीर किसी के काम आ जाए उससे बढ़कर क्या है। इसलिए उन्होंने अपनी देह को दान किया है। इसके लिए पंचायत प्रधान को भी लिखित में कहा कि कि मेरी मृत्यु के बाद मेरा शरीर आइजीएमसी शिमला को दे दिया जाए।

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केस स्टडी-2

शिमला जिला के कैथू निवासी दिनेश सूद मैकेनिकल इंजीनियर के तौर टेलीकॉम कंपनी से दो साल पूर्व सेवानिवृत्त होकर मुम्बई से लौटे हैं। उन्होंने 2019 में अपनी देह को आइजीएमसी शिमला के लिए दान कर दिया है। उनका मानना है कि देहदान मानवता की सबसे बड़ी सेवा है।

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आइजीएमसी में 380 लोग देहदान के लिए आवेदन कर चुके हैं। इनमें से पांच देह प्राप्त हुई हैं। काफी लोग देहदान का संकल्प ले रहे हैं। कोरोना के कारण देहदान पर रोक लगाई गई है।

-डॉ. अंजू, विभागाध्यक्ष, एनॉटमी विभाग आइजीएमसी


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