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अभिभावक को कैसे अलविदा कहे हिमाचल

देश के सबसे बड़े कद के नेता अटल जी संवेदनशील थे इसका सबसे बड़ा उदाहरण स्वयं हिमाचल प्रदेश है।

By BabitaEdited By: Published: Fri, 17 Aug 2018 09:39 AM (IST)Updated: Fri, 17 Aug 2018 10:11 AM (IST)
अभिभावक को कैसे अलविदा कहे हिमाचल
अभिभावक को कैसे अलविदा कहे हिमाचल

नवनीत शर्मा, जेएनएन। अर्से से मौन थे अटल जी। लेकिन व्यक्तित्व विराट हो तो मौन भी गूंजता है। उस मौन का साथ भी अटल जी ने वीरवार को छोड़ दिया। प्रीणी में उनके घर के कमरे खाली हो गए....लंबे समय तक इंतजार में रही कुर्सियां एक उम्मीद के साथ प्रतीक्षारत रहीं...अब वह उम्मीद भी टूट गई। मेज पर अखबार और चाय के प्याले वर्षों से हरकत में नहीं थे...उस स्थानीय स्कूल की उम्मीद भी टूट गई जहां उन्होंने कहा था, ‘आपने मुझे मामा बना लिया है। जानता हूं जो रकम दे रहा हूं वह कम है, लेकिन क्या करूं, मामा की नौकरी छूट गई है।’ देश के सबसे बड़े कद के नेता अटल जी संवेदनशील थे इसका सबसे बड़ा उदाहरण स्वयं हिमाचल प्रदेश है। उनके लिए हिमाचल दूसरा घर अलंकार की दृष्टि से नहीं था। 

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800 मेगावाट की कोलडैम परियोजना, जनजातीय क्षेत्रों की तकलीफ कम करने वाली रोहतांग सुरंग योजना, हिमाचल प्रदेश को औद्योगिक पैकेज और कई प्रकार की राहत इस पहाड़ी राज्य को अटल जी के कारण ही मिली। यह उस दौर में हुआ जब हिमाचल प्रदेश को वास्तव में सहारे की आवश्यकता थी। उसके बाद ही उद्योगों ने हिमाचल प्रदेश की आर्थिक सेहत में परिवर्तन लाया। उनके पास हिमाचल प्रदेश के लिए दृष्टि थी। वरना लोकसभा के चार और राज्यसभा के तीन सांसदों यानी कुल सात सांसदों वाले हिमाचल प्रदेश के छालों की तकलीफ दिल्ली के तपते हुए गलियारों में कौन सुनता? संख्याबल की दृष्टि से कम आंके जाते इस पहाड़ी राज्य के साथ उनका संबंध दूरदृष्टिसंपन्न अभिभावक की तरह था।

वह यह जानते थे कि संख्याबल में कमजोर ही सही, हिमाचल की भी अपनी जरूरतें और अपेक्षाएं हैं। लेह तक रेल पहुंचाने के प्रेम कुमार धूमल के सपने को समझने वाले वही थे तो आज के खाद्य सुरक्षा अधिनियम की नींव भी अटल जी ने ही शांता कुमार के इसरार पर अंत्योदय अन्न योजना के माध्यम से रखी थी। दरअसल, उनके राजनेता को उनके भीतर का पत्रकार सजग रखता था और अंदर का कवि संवेदनाओं को सींचता रहता था। इसीलिए यह संवेदना मध्य प्रदेश या उत्तर प्रदेश तक सीमित न रह कर छोटे से हिमालयी राज्य तक विस्तृत हो गई।

कुछ वर्षों के बाद जब हिमाचल की नई पीढ़ी और बाहर से आने वाले पर्यटक रोहतांग को दरकिनार कर अत्याधुनिक तकनीक से बनी सुरंग में फर्राटे से गाड़ी चलाते हुए गुजरेंगे, अटल जी कहीं मुस्करा रहे होंगे। ठीक वैसे, जैसे उनकी निष्छल मुस्कान कोलबांध की ऊर्जा में महसूस की जा सकती है। जब-जब जगतसुख के ईश्वर दास पुरोहित अटल जी के भेंट किए हारमोनियम की श्रुति दबाएंगे... उनके दिए हुए ढोलक पर थाप देंगे, यकीनन यह आवाज अटल जी की आवाज होगी। 


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