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बिना काम कराए तीन साल में खर्च डाले सात करोड़

हिमाचल हाइकोर्ट की फटकार के बावजूद सरकार प्रदेश में लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं कर पाई है। इसके बगैर लोकायुक्त कार्यालय सरकार के लिए सफेद हाथी साबित हो रहा है। आलम यह है कि कार्यालय भी सुचारू तौर पर नहीं चल पा रहा है। लोगों को इसका कोई भी लाभ नहीं मिल रहा है। पिछले तीन साल में इस कार्यालय के स्टाफ और अफसरों के वेतन सुविधाओं पर करीत सात करोड़ खर्च किए गए हैं। पचास हजार करोड़ से अधिक के कर्जे में डूबी सरकार के खजाने पर तो बोझ बढ़ा ही है फिजूलखर्ची को भी बढ़ावा मिला है। इस दौरान दूसरे विभागों से सेकिडमेंट पर आए अधिकतर स्टाफ को इसी जगह पर स्थायी तौर पर खपा लिया गया है। सूत्रों के अनुसार स्टाफ

By JagranEdited By: Published: Wed, 19 Feb 2020 06:13 PM (IST)Updated: Thu, 20 Feb 2020 06:16 AM (IST)
बिना काम कराए तीन साल में खर्च डाले सात करोड़
बिना काम कराए तीन साल में खर्च डाले सात करोड़

रमेश सिगटा, शिमला

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लोकायुक्त कार्यालय सरकार पर बोझ बनकर रह गया है। हिमाचल प्रदेश हाइकोर्ट की फटकार के बावजूद सरकार लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं कर पाई है। इसके बगैर कार्यालय भी सुचारू तौर पर नहीं चल पा रहा है। लोगों को भी इसका लाभ नहीं मिल रहा है। तीन साल में लोकायुक्त कार्यालय के स्टाफ और अफसरों के वेतन, सुविधाओं पर करीत सात करोड़ खर्च किए गए हैं। इससे 50 हजार करोड़ से अधिक के कर्ज में डूबी सरकार के खजाने पर बोझ बढ़ा ही है, फिजूलखर्ची को भी बढ़ावा मिला है। दूसरे विभागों से सेकेंडमेंट पर आए अधिकतर स्टाफ को यहां स्थायी तौर पर खपा लिया गया है।

सूत्रों के अनुसार स्टाफ के कार्यालय आने और जाने का भी समय तय नहीं है। मुख्य सचिव के निर्देश को भी ठेंगा दिखाया जा रहा है। सभी सरकारी कर्मचारियों को बॉयोमीट्रिक से हाजिरी लगाने के निर्देश दिए गए हैं। राज्य सचिवालय में खुद मुख्य सचिव भी इसी मशीन से उपस्थिति दर्ज करवाते हैं, लेकिन कुछ ही दूरी पर स्थित लोकायुक्त कार्यालय ने इस दिशा में पहल नहीं की है।

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हर माह 20 लाख खर्च

लोकायुक्त कार्यालय में सचिव, रजिस्ट्रार और अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (एएसपी) तीन अधिकारी हैं। इनके वेतन, सुविधाओं पर प्रतिमाह पांच लाख से अधिक का खर्च आता है। इसके अलावा 34 कर्मचारियों पर 15 लाख का खर्च आ रहा है। स्वास्थ्य मंत्री ने हाल ही में कहा था कि सेकेंडमेंट पर भेजे गए कर्मचारियों को वापस मूल विभाग में लाया जाएगा, लेकिन लोकायुक्त दफ्तर में मंत्री की भी परवाह नहीं की। दो कर्मियों को स्थायी तौर यहीं तैनाती दे दी गई है।

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मानवाधिकार आयोग का है अतिरिक्त जिम्मा

प्रदेश में अरसे से मानवाधिकार आयोग का भी अध्यक्ष नहीं है। आयोग कार्यालय का कामकाज भी लोकायुक्त कार्यालय के ही जिम्मे है। अभी नए अध्यक्ष की व सदस्यों की नियुक्त नहीं हुई है। इनके बिना वहां का कार्य भी सही ढंग से नहीं हो पा रहा है।

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रजिस्ट्रार व एएसपी को नहीं दिखाते हाजिरी रजिस्टर

लोकायुक्त कार्यालय में रजिस्ट्रार (जज) और पुलिस विभाग से आए एएसपी को भी स्टाफ की हाजिरी नहीं दिखाई जाती है। उन्हें यह भी नहीं बताया जाता है कि जनता की ओर से कितनी शिकायतें आई हैं। सारा नियंत्रण सचिव ने अपने पास रखा है।


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