अवसरवाद की राजनीति सुखराम की फितरत : जयराम
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि अवसरवाद की राजनीति पंडित सुखराम की फितरत रही है।
जागरण संवाददाता, थाची : मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि अवसरवाद की राजनीति पंडित सुखराम की फितरत रही है। वह केवल अपने परिवार तक ही सीमित है। उन्हें को न तो प्रदेश के विकास से सरोकार है, न ही मंडी के स्वाभिमान की चिता। जिले की जनता सुखराम की इन हरकतों से परेशान हैं। लोकसभा चुनाव में इसका उत्तर देगी। सराज हलके के थाची में भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा के सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि अनिल शर्मा को पहले कांग्रेस में घुटन हो रही थी। भाजपा टिकट पर जीतने और मंत्री बनने के बाद वे पुत्र मोह से ग्रस्त हो गए हैं। कांग्रेस विकास में नहीं बल्कि व्यर्थ में हो-हल्ला करने में विश्वास रखती है। कांग्रेस के दूसरी पंक्ति के नेता अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं और इस प्रयास में वे अनाप-शनाप बयानबाजी कर रहे है। प्रदेश सरकार समाज के उपेक्षित, कमजोर तथा शोषित वर्गों के कल्याण के प्रति वचनबद्ध है। प्रदेश सरकार ने गत वर्ष के दौरान अनुसूचित जाति उपयोजना के तहत 1583 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था, जबकि चालू बजट में व्यापक वृद्धि की गई है। सामाजिक सुरक्षा पेंशन बढ़ाई गई। मोदी सरकार द्वारा अनुसूचित जाति के लोगों के कल्याण एवं उनके आर्थिक उत्थान के लिए अनेक योजनाएं चलाई गई हैं। भाजपा जाति की राजनीति नहीं करती है। यह भाजपा के लिए गौरव की बात है कि पार्टी में अनुसूचित जाति के अधिक कार्यकर्ता है।
उन्होंने लोगों से मंडी संसदीय क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी रामस्वरूप शर्मा को भारी मतों से विजयी बनाने का आग्रह किया। इस मौके पर रामस्वरूप शर्मा, भाजपा के वरिष्ठ नेता तथा शिमला के सांसद प्रो. वीरेंद्र कश्यप भी मौजूद थे। नैतिकता होती तो पहले देते त्यागपत्र
जयराम ने कहा कि अनिल मामले में उन्होंने व पार्टी नेतृत्व ने अपने व्यवहार में पूरी तरह से शालीनता बनाए रखी। पानी जब सिर से ऊपर हुआ तो बोलना पड़ा। अगर अनिल में नैतिकता होती तो मंत्री पद से त्यागपत्र उसी दिन दे देते जिस दिन उनके बेटे को कांग्रेस का टिकट मिला था। कोई भी यह बर्दाश्त नहीं सकता था कि उनका कैबिनेट सहयोगी कांग्रेस के लिए काम करे। मंत्रीपद से इस्तीफे की सूचना मिलने के बाद पार्टी के शीर्ष नेताओं से चर्चा की तो उन्होंने बिना कोई देरी किए इस्तीफा मंजूर करने को कहा। अब उनका इस्तीफा सहर्ष स्वीकार कर चुके हैं। कांग्रेस का प्रचार किया तो विधायक पर भी जाएगी
अनिल तकनीकी रूप से भाजपा के सदस्य हैं। भाजपा के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ा है। चुनाव की प्रक्रिया में अब वह हिस्सा नहीं ले सकते। अगर भाग लेते हैं तो दल बदल कानून के तहत विधायक पद से भी हाथ धोना पड़ेगा।