बच्चों को पढ़ाने की अनोखी पहल, कबाड़ में छिपा ज्ञान का खजाना
मंडी जिले के एक प्राथमिक सरकारी स्कूल में खेल-खेल में बच्चों को पढ़ाने की एक अनोखी पहल की।
मंडी, काकू चौहान। घर में बेकार पड़ी जिस चीज को लोग कबाड़ समझकर फेंक देते हैं उसे पाठ्य सामग्री बनाकर बच्चों को ज्ञान बांटा जा रहा है। खेल-खेल में बच्चों को पढ़ाने की यह अनोखी पहल मंडी जिले के एक प्राथमिक सरकारी स्कूल में शुरू की गई है। शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर व रुचिकर बनाने की इस
पहल को खूब सराहा जा रहा है।
जिले के केंद्रीय प्राथमिक विद्यालय ब्रायोगी के अध्यापकों ने किताबी पढ़ाई से हटकर बच्चों को सिखाने के लिए यह आसान तरीका खोजा है। स्कूल के अध्यापकों ने सबसे पहले बच्चों को सुझाया कि वे घर या आस-पड़ोस में पड़ी खराब, बेकार पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों व अन्य कलपुर्जों को विद्यालय में ले आएं । सभी
बच्चे अपने इन बेकार चीजों को स्कूल में लाते गए। कुछ ही समय में विद्यालय में अनगिनत पुराने टूटे-फूटे रेडियो, टॉर्च, मोबाइल, रिमोट, घड़ियां, बल्ब, सेल, मोबाइल बैटरियां, चार्जर, स्विच, स्पीकर, ताले व खिलौनों का जखीरा तैयार हो गया। बिना किसी खर्च जुटाई इस सामग्री को बच्चों को सिखाने के काम में उपयोग किया जा रहा है। नतीजतन स्कूल में विद्यार्थियों की संख्या 16 से 51 पहुंच गई है।
यूं सीखते हैं बच्चे
पहली व दूसरी कक्षाओं के बच्चे इनकी गिनती, वर्गीकरण करते हैं, रंगों व आकार को पहचानते हैं।
नई वस्तुओं से परिचय व इनके नाम का उच्चारण करते हैं तथा नाम लिख कर शब्दों का निर्माण करते हैं । अपने समूहों में एक दूसरे के साथ पूछने- बताने में व्यस्त रहते हैं। तीसरी से पांचवीं कक्षा के विद्यार्थियों को
इस सामग्री से वस्तुओं का परिचय, शब्द निर्माण, वाक्य संरचना, स्पष्ट उचारण करवाया जाता है। इन चीजों के बारे में हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी के शब्दों से रू-ब-रू करवाया जाता है। इन्हें वस्तुओं के निर्माण,
उपयोग, मूल्य, व्यवसाय, वर्गीकरण, उपलब्धता जैसे विषयों पर जानकारियों के साथ-साथ उन्हें कुछ वाक्य लिखने के लिए दिए जाते हैं। बच्चे कागज पर इनके चित्र बनाने की कोशिश भी करते हैं। पाठ्य पुस्तकों में जहां भी इन वस्तुओं का ज़िक्र आता है, बच्चे आसानी से उत्तर देते हैं।
इस तरह की गतिविधियों से बच्चों के ज्ञान में काफी वृद्धि हुई है। बच्चे हर चीज को बारीकी व आसानी से
समझ पा रहे हैं। पिछले दो साल से स्कूल में इस तरह की गतिविधियां चल रही है। बच्चों के
अभिभावकों ने भी इसका समर्थन किया है।
-दलीप चौहान, स्कूल के मुख्य अध्यापक