भूस्खलन की मिलेगी पूर्व सूचना, 14 स्थानों पर लगे सेंसर फिर सक्रिय
बरसात में भूस्खलन की आशंका को देखते हुए जिला प्रशासन हरकत में आ गया है। संभावित क्षेत्रों में भूस्खलन की पूर्व सूचना देने वाली प्रणाली को सक्रिय कर दिया गया है।
मंडी, जेएनएन। बरसात में भूस्खलन की आशंका को देखते हुए जिला प्रशासन हरकत में आ गया है। संभावित क्षेत्रों में भूस्खलन की पूर्व सूचना देने वाली प्रणाली को सक्रिय कर दिया गया है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मंडी के स्कूल ऑफ इंजीनिय¨रग के शोधकर्ताओं ने यह प्रणाली विकसित की है। प्रशासन आइआइटी के सहयोग से इस प्रणाली का सफलतापूर्वक इस्तेमाल कर रहा है। इसके सार्थक परिणाम भी सामने आए हैं। दो साल में संभावित क्षेत्रों में जानमाल का नुकसान शून्य के बराबर हुआ है।
मनाली-चंडीगढ़ व पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग पर भूस्खलन की दृष्टि से अतिसंवेदनशील 14 स्थानों पर पहाड़ों में सेंसर लगाए गए हैं। कर्फ्यू के कारण ये बंद थे। कुछ की बैटरी में तकनीकी खराबी आ गई थी। इसे अब दूर कर लिया गया है। यह सेंसर पहाड़ के अंदर होने वाली मामूली हलचल पर पैनी नजर रखने में सक्षम है। भूस्खलन के लिहाज से मनाली-चंडीगढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग पर पंडोह, हणोगी, दवाड़ा, खोती नाला व सात मील आदि क्षेत्र अतिसंवेदनशील हैं।
पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग पर गुम्मा, घटासनी व कोटरोपी अंतिसंवेदनशील हैं। इन सभी स्थानों पर सेंसर लगाए गए हैं। सेंसर वायरलैस नेटवर्क के माध्यम से जिला आपदा प्रबंधन नियंत्रण कक्ष व आइआइटी के नियंत्रण कक्ष से जुड़े हुए हैं। सेंसर के साथ ऊंचे स्थानों पर सायरन व सड़क किनारे खंभे पर लालबत्ती लगी हुई है। लालबत्ती व सायरन सौर ऊर्जा से संचालित होंगे।
पहाड़ के अंदर हल्की हलचल होने पर सेंसर के सक्रिय होते ही लालबत्ती टिमटिमाना शुरू कर देगी। इससे वाहन चालक संभावित खतरे को देख एकदम सचेत हो जाएंगे। पुलिस व प्रशासन भी हरकत में आ जाएगा। पहाड़ के अंदर अगर हलचल बहुत ज्यादा होगी तो लालबत्ती पूरी तरह से ऑन हो जाएगी और सायरन बज उठते हैं। आपदा प्रबंधन से जुड़े लोग सक्रिय होकर भूस्खलन वाले क्षेत्र में मशीनरी लेकर पहुंच जाते हैं। सेंसर की वजह से गत वर्ष कोटरोपी में समय रहते भूस्खलन का पता चलने से दो बड़े हादसे टल गए थे।
क्या है भूस्खलन
भूस्खलन एक प्राकृतिक घटना है। गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव के कारण चट्टानों, मिट्टी आदि के अपने स्थान से नीचे की ओर खिसकने से भूस्खलन होता है। ऐसी आपदा आमतौर पर मानसून के दौरान जून से सितंबर के बीच आती है। पंडोह से औट तक के पहाड़ बिजली प्रोजेक्ट व फोरलेन निर्माण की वजह से पूरी तरह हिल चुके हैं। बरसात के दौरान यहां अकसर भूस्खलन की घटनाएं पेश आती हैं। कोटरोपी में 2017 में पहाड़ी दरकने से एचआरटीसी की दो बसें मलबे के नीचे दब गई थी। 47 लोगों की मौत हो गई थी।
मनाली-चंडीगढ़ व पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग पर 14 स्थान भूस्खलन की दृष्टि से अति संवेदनशील हैं। चिह्नित स्थानों पर लगाए गए सेंसर आइआइटी मंडी के विशेषज्ञों ने मरम्मत के बाद दोबारा सक्रिय कर दिए हैं। -ऋग्वेद ठाकुर, उपायुक्त मंडी।