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कारगिल जंग की यादें आज भी ताजा, 13 जून 1999 कारगिल युद्ध का टर्निंग प्वाइंट

भारतीय रणबांकुरों ने अपने प्राणों की परवाह न करते हुए उन पहाड़ों पर चढ़ाई की, पहाड़ रणबांकुरों के रक्त से रक्तरंजित होते रहे, परंतु अभियान नहीं रुका।

By BabitaEdited By: Published: Wed, 13 Jun 2018 03:10 PM (IST)Updated: Wed, 13 Jun 2018 04:26 PM (IST)
कारगिल जंग की यादें आज भी ताजा, 13 जून 1999 कारगिल युद्ध का टर्निंग प्वाइंट
कारगिल जंग की यादें आज भी ताजा, 13 जून 1999 कारगिल युद्ध का टर्निंग प्वाइंट

मंडी, जेएनएन। कारगिल युद्ध 1999 की वही लड़ाई थी, जिसमें पाकिस्तानी सेना ने अपना धोखेबाज चरित्र दिखाते हुए द्रास-कारगिल की पहाड़ियों पर भारत के खिलाफ साजिश व विश्वासघात से कब्जा करने की कोशिश की थी। भारतीय सेना ने अपनी मातृभूमि में घुस आए घुसपैठियों को बाहर खदेड़ने को एक बड़ा अभियान चलाया। जिसमें भारतीय सेना के 527 रणबांकुरों ने अपने बलिदान से मातृभूमि को दुश्मनों के नापाक कदमों से मुक्त किया। 1363 जांबाजों ने घायल होकर भी न केवल लड़ाई लड़ी बल्कि उसे अंजाम तक पहुंचाने में अपना योगदान दिया। कारगिल की यह लड़ाई दुनिया के इतिहास में सबसे ऊंचे क्षेत्र में लड़ी गई लड़ाई थी।

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करीब दो माह तक चली इस लड़ाई में अंतत: भारतीय सेना ने अपने गौरवशाली अतीत की याद दिलाते हुए पाकिस्तानी सेना को मार भगाया। 26 जुलाई 1999 को आखिरी चोटी पर जीत के साथ रक्तरंजित लेकिन गौरवशाली वीरता का इतिहास लिखा गया। 26 जुलाई 1999 का यही दिन ‘कारगिल विजय दिवस’ के रुप में मनाकर हम देश को अपने प्राणों की आहुति सहर्ष देने वाले सैनिकों को याद कर उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते है। यह अपने आप में पूरे विश्व में अनूठा युद्ध था जब एक और घुसपैठिए सैनिक पहाड़ियों की चोटी पर कब्जा जमाए बैठे थे, वहीं दूसरी ओर भारतीय सेना नीचे सपाट मैदानों में थी। या यूं कहें भारतीय सेना पाकिस्तानी घुसपैठियों के लिए बहुत ही आसान टारगेट थी। लेकिन यहीं भारतीय सेना ने अपने शौर्य गाथा लिखी।

 

भारतीय रणबांकुरों ने अपने प्राणों की परवाह न करते हुए उन पहाड़ों पर चढ़ाई की, पहाड़ रणबांकुरों के रक्त से रक्तरंजित होते रहे, परंतु अभियान नहीं रुका। ऐसी ही एक महत्वपूर्ण चोटी थी तोलोलिंग, यह वही पहली चोटी थी, जिस पर भारतीय सेना ने सबसे पहले कब्जा जमाया और यहीं से कारगिल की लड़ाई में एक नया मोड़ आया तोलोलिंग युद्ध का अभियान 20 मई 1999 को शुरू हुआ इसका जिम्मा 18 ग्रेनेडियर्ज को दिया गया।

ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर अपनी स्मृतियों के पन्नों को पलटते आज भी उस अभियान को नहीं भूल पाते। वे भूल नहीं पाते कि किस प्रकार इस लड़ाई में उनके नेतृत्व में 18 ग्रेनेडियर्ज के बहादुरों ने कैसे अपना लोहा मनवाया था। कैसे 18 ग्रेनेडियर के तत्कालीन कमाडिंग ऑफिसर कर्नल खुशाल ठाकुर की कमान के सर्वाधिक सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। तोलोलिंग पर कब्जा करने की कोशिश में 18 ग्रेनेडियर्ज के 25 जवान शहीद हो चुके थे यह एक अपने आप में बहुत बड़ी क्षति थी। सबसे पहले मेजर राजेश अधिकारी शहीद हुए एक बड़े नुकसान के बाद कर्नल खुशाल ठाकुर ने स्वयं मोर्चा संभालने की ठानी और अभियान को सफल बनाया।

13 जून 1999 को 18 ग्रेनेडियर्ज व 2 राजपूताना राईफल्ज ने तोलोलिंग, पर कब्जा किया, परंतु तोलोलिंग, की सफलता बहुत महंगी साबित हुई, इस संघर्ष में लेफ्टिनेंट कर्नल विश्वनाथन बुरी तरह घायल हुए और अंतत: कर्नल खुशाल ठाकुर की गोद में प्राण त्याग का वीरगति को प्राप्त हुए। पहली चोटी तोलोलिंग, व सबसे ऊंची चोटी टाइगर हिल पर विजय पताका फहराने का सौभाग्य कर्नल खुशाल ठाकुर व उनकी यूनिट 18 ग्रेनेडियर्ज को प्राप्त हुआ था। भारत के महामहिम राष्ट्रपति ने इस विजय व ऐतिहासिक अभियान के लिए 18 ग्रेनेडियर्ज को 52 वीरता सम्मानों से नवाजा, जोकि भारत के सैन्य इतिहास में एक रिकॉर्ड है।


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