आइआइटी मंडी सहेजेगी अब लुप्त हो रहे औषधीय पौधे
हंसराज सैनी मंडी जलवायु परिवर्तन मानवीय हस्तक्षेप व अवैज्ञानिक दोहन से हिमालय क्षेत्र में लुप्त ह
हंसराज सैनी, मंडी
जलवायु परिवर्तन, मानवीय हस्तक्षेप व अवैज्ञानिक दोहन से हिमालय क्षेत्र में लुप्त हो रहे औषधीय पौधों को अब भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मंडी सहेजेगा। हिमाचल व उत्तराखंड के किसानों को औषधीय पौधों की खेती के लिए प्रेरित भी करेगा। देश की एक नामी आयुर्वेदिक दवा निर्माता कंपनी ने आइआइटी के स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज को यह प्रोजेक्ट सौंपा है।
संस्थान के शोधकर्ता मध्य हिमालय क्षेत्र में बिना पहचान वाले औषधीय पौधों की पहचान करेंगे और संस्थान के वानस्पतिक उद्यान में विकसित करेंगे। किसानों को प्रशिक्षण के अलावा औषधीय पौधों की खेती के गुर बताए जाएंगे। संस्थान इसके लिए किसानों की एक कंपनी बनाएगा। इसके पंजीकरण की प्रक्रिया पूरी की जा रही है।
ऊहल नदी के किनारे स्थित आइआइटी मंडी के परिसर में 2015 में प्रसिद्ध वानिकी विशेषज्ञ डा. चरणजीत सिंह परमार की देखरेख में वानस्पतिक उद्यान स्थापित किया था। यहां अनेक प्रकार के औषधीय पौधे तैयार किए हैं। इनमें कई लुप्त होने के कगार पर हैं तथा कुछ ऐसे पौधे हैं जिनका औषधि बनाने में इस्तेमाल होता है। यहां के किसानों को इनके बारे में ज्ञान नहीं है। मार्केट में ऐसे औषधीय पौधों की बड़ी मांग है। आइआइटी के इस कदम से लुप्त हो रहे औषधीय पौधों का संरक्षण तो होगा ही दोनों राज्यों के किसानों के लिए स्वरोजगार के नए अवसर खुलेंगे। शोधकर्ता मार्च तक प्रोजेक्ट सौंपने वाली कंपनी को रिपोर्ट सौंपेंगे।
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लुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके औषधीय पौधे कुड़की (पिकोरोहिजा) जटामानसी (नाइदोस्तचीज) चिरायता (सुरतिया चिरायता) वनककड़ी (पोडोफायाम हेसांडूम), अतीश (अकॉनितम हेटेरोपयोम), सुगंधवाला (वालेरिणा जटामासी) संस्थान में कई वानिकी विशेषज्ञों व शोधकर्ताओं की देखरेख में वानस्पतिक उद्यान स्थापित किया गया है। यहां किसानों को प्रशिक्षण देकर औषधीय पौधों के उत्पादन के लिए प्रेरित किया जा रहा है। कई आयुर्वेदिक दवा निर्माता कंपनियां संस्थान के संपर्क में हैं। कई शोध के लिए प्रोजेक्ट सौंप चुकी हैं।
-डा. अजीत कुमार चतुर्वेदी, निदेशक आइआइटी मंडी।