अब कोहरे से इकट्ठा किया जा सकेगा पानी
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी के शोधकर्ताओं ने एक कुदरती मेटिरियल का विकास किया है जो कोहरे से पानी हासिल करने में सक्षम है।
जागरण संवाददाता, मंडी। कोहरे से पानी हासिल करना अब संभव होगा। ऐसी ही एक तकनीक भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी के शोधकर्ताओं ने ईजाद की है। शोधकर्ताओं ने एक कुदरती मेटीरियल का विकास किया है जो कोहरे से पानी हासिल करने में सक्षम है।
शोधकर्ताओं ने ड्रैगंस लिली हेड सजावटी पौधे की पत्तियों की सतह की संरचना पर आधारित जल संग्रहण सर्फेस का प्रारूप तैयार किया है। स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज में रसायन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. वेंकट कृष्णन ने हवा से पानी प्राप्त करने वाले पौधों के शरीर की बारीक संरचनाओं का अध्ययन किया और समरूप संरचना तैयार कर ऐसे मेटीरियल का विकास किया है। इससे पानी हासिल कर सकते हैं। अप्रत्याशित स्त्रोतों जैसे कोहरा और धुंध से पानी प्राप्त करने के लिए पूरी दुनिया में शोध हो रहा है ताकि पानी की बढ़ती मांग पूरी हो सके।
दुनिया के सूखे और अर्द्ध सूखे क्षेत्रों में ऐसे कई पौधे हैं, जिनकी पत्तियां ओस और कोहरे से पानी प्राप्त करने में सक्षम हैं। बहुत से जानवर और पौधे हवा से पानी हासिल करने के दिलचस्प तरीके अपनाते हैं। अफ्रीका के नामीब डेजर्ट में मौजूद डार्क¨लग बीटल्स हवा से पानी प्राप्त करने के लिए अपने शरीर की सतह का उपयोग करते हैं। पौधों के शरीर की तीन आयामी संरचनाएं पानी हासिल करने में सहायक हैं।
जब कोहरे से पानी प्राप्त करने की प्रक्रिया का अध्ययन किया तो शोधकार्ताओं को दो दिलचस्प संरचनात्मक लक्षण दिखे। सुनियोजित कोनिकल स्पाइन्स जिनमें पैने कोर हैं। इनमें कोहरे की बूंदें जमा होती हैं और हायरार्किकल संरचना वाले सीडहेड जिनकी फ्लेट सतह के साथ ग्रेडियंट ग्रूव्स होते हैं जो एकत्र पानी की बूंदों को किसी एक दिशा में ले जाते हैं। बूंदों के लैपलेस प्रेशर और फाइबर समान हैं¨गग फेनोमेनन की वजह से ग्रास के लिए कोहरा जमा करना आसान हो जाता है। ग्रास के संरचनात्मक लक्षणों की समझ विकसित होने से जल संग्रहण के सक्षम मेटीरियल का प्रारूप तैयार करने का नया नजरिया मिला।
पानी और स्वच्छता पर कार्यरत लंदन आधारित गैर आर्थिक लाभ संगठन वाटरएड के हाल ही के अध्ययन से यह सामने आया है कि देश की 12 प्रतिशत आबादी को स्वच्छ पेयजल की सुविधा नहीं है। इसलिए बढ़ती आबादी के पेयजल समाधान के लिए केवल नीति और जल उपयोग की आदत बदलने पर नहीं, बल्कि प्रकृति से सीख लेकर वैज्ञानिक एवं तकनीकी इनोवेशन पर भी जोर देना होगा।