फूलों की बगिया से खिले युवा
पहले फूलों का ज्यादातर इस्तेमाल किसी जगह या स्थान की शोभा बढ़ाने के लिए किया जाता था। बा•ार में इसकी मांग काफी सीमित थी, इसलिए किसान भी इसकी खेती ज्यादा नहीं करते थे। लेकिन दिनोंदिन फूलों की बढ़ती मांग को देखते हुए अब किसान भी अपनी परंपरागत फसलों की खेती करने की बजाय फूलों की खेती करने लगे हैं। इसी कड़ी में मंडी जिले के सराज क्षेत्र के मुराहग के मनोज कुमार भी फूलों की खेती कर एक सफल किसान बन चुके हैं। उनकी प्रेरणा से पूरे गांव के युवा फूलों की खेती की ओर आकर्षित होकर अच्छा व्यवसाय कर रहे हैं। मनोज फूलों की खेती करके अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं। मनोज कुमार ने बताया कि पिछले दस सालों से आलू,
मृगेंद्र पाल, गोहर
फूलों की बगिया से सराज के युवा खिल उठे हैं। परंपरागत खेती की बजाय इन्होंने फूलों की खेती की ओर बल दिया है। बेरोजगारी के दौर में नौकरी की आस लगाने की बजाय कई युवाओं ने फूलों की खेती कर स्वरोजगार पाया है।
सराज क्षेत्र के मुराहग निवासी मनोज कुमार भी फूलों की खेती कर एक सफल किसान बन चुके हैं। उनकी प्रेरणा से पूरे गांव के युवा फूलों की खेती की ओर प्रेरित होकर आर्थिकी सुदृढ़ कर रहे हैं। मनोज कुमार इसमें अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। उन्होंने बताया दस साल से आलू, गोभी, टमाटर, खीरा और धनिया आदि फसलों की खेती कर रहा था, इसमें मुझे कुछ खास मुनाफा नहीं हो रहा था। पांच वर्ष पहले मुझे कृषि विभाग की ओर से पॉलीहाउस में फूलों की खेती करने की जानकारी मिली। इसके बाद फूलों की खेती करना शुरू किया है और इससे काफी आर्थिकी सुधरी है।
वर्तमान में पॉलीहाउस में कारनेशन फूल की विभिन्न किस्मों की खेती कर रहे हैं। मनोज कुमार बासा कॉलेज से बीए हैं। उनके इस काम में उनकी पत्नी और बच्चे भी हाथ बंटाते हैं।
मनोज ने अपने व्यवसाय को अपने तक सीमित न रखकर गांव के अन्य युवाओं को भी इसके लिए प्रेरित किया। उनकी प्रेरणा से आज पूरे गांव के युवाओं ने गांव में पॉलीहाउस लगाकर फूलों के कारोबार से जुड़ गए हैं। उनके फूल सराज से सीधे दिल्ली की मंडियों में भेजे जाते हैं और काफी मुनाफा कमाने लगे हैं।
बकौल मनोज कुमार, आमतौर पर वह और गांव के सभी युवा कारनेशन फूल की खेती कर रहे हैं। सराज की जलवायु के अनुसार फूलों की पैदावार अधिक होती है। फूलों की खेती युवा किसानों के लिए कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमाने का अच्छा विकल्प है।
-------
केस स्टडी-1
सराज घाटी में पुष्प उत्पादन को व्यवसाय बना चुके मुरहाग गांव के मनोज कुमार ने बताया उन्होंने फूलों की किस्म में बदलाव किया है। अब सफेद फूलों के स्थान पर लाल रंग के फूलों का उत्पादन किया जा रहा है। एक बार करीब 75 हजार रुपये का बीज बोने के बाद तीन साल तक वह इस खेती से औसतन डेढ़ लाख रुपये के करीब आय आर्जित कर रहे हैं।
------
केस स्टडी-2
सराज घाटी के भूप ¨सह का कहना है मनोज कुमार से प्रेरणा लेकर उन्होंने भी पुष्प उत्पादन शुरू किया है, इससे उनकी आर्थिकी मजबूत हो रही है। अन्य ग्रामीण भी पुष्प उत्पादन की राह पर अग्रसर हो रहे हैं। वर्तमान में आबादी से कहीं अधिक गांव में पुष्प उत्पादन के लिए पॉलीहाउस लगा दिए गए हैं।