अब आइसीयू में सेप्सिस से दम नहीं तोड़ेंगे मरीज, जानें-कैसे होगा निदान
आइसीयू में मरीज सेप्सिस यानी खून में बैक्टीरिया के संक्रमण से फैलने वाली बीमारी के कारण दम नहीं तोड़ेंगे।
मंडी, हंसराज सैनी। देश में निकट भविष्य में इंटेंसिव केयर यूनिट (आइसीयू) में मरीज सेप्सिस यानी खून में बैक्टीरिया के संक्रमण से फैलने वाली बीमारी के कारण दम नहीं तोड़ेंगे। अब प्रारंभिक अवस्था में ही सेप्सिस का पता लगाना संभव होगा। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मंडी में सैल फ्री डीएनए से बॉयो मार्कर बनाने पर शोध शुरू हो गया है। विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड ने आइआइटी के स्कूल ऑफ बेसिक साइंसिस को 19.20 लाख का प्रोजेक्ट सौंपा है।
चिकित्सा विज्ञान में सेप्सिस का प्रारंभिक अवस्था में पता लगाने यानी निदान की कोई तकनीक नहीं है। शरीर में लक्षण पैदा होने पर सेप्सिस का पता चल पाता है। तब तक संक्रमण द्वितीय या तृतीय अवस्था पार कर चुका होता है। ऐसे में चिकित्सकोंं को मरीज की जान बचाने के लिए समय नहीं मिल पाता है। अकेले आइसीयू में ही सेप्सिस की वजह से 30 से 40 प्रतिशत मरीजों की मौत होती है। शरीर में संक्रमण की एक जानलेवा जटिल अवस्था सेप्सिस कहलाती है।
हृदय, गुर्दे की बीमारी से पीड़ित या फिर विभिन्न हादसों में गंभीर घायल मरीजों को आइसीयू में रखा जाता है। सेप्सिस विकसित होने की वजह से कई मरीजों के फेफड़ों में पानी भर जाता है या फिर मल्टी आर्गन फेलियर जैसी स्थिति पैदा हो जाती है। ऐसे में कोई एंटीबायोटिक भी काम नहीं आता है न ही चिकित्सक के पास मरीज की जिदंगी बचाने के लिए ज्यादा समय बच पाता है। देश में हर साल विभिन्न प्रकार के सेप्सिस के 10 लाख से अधिक मामले सामने आते हैं। फिलहाल मरीज में लक्षण विकसित होने व खून आदि की जांच से सेप्सिस का पता चल पाता है।
जानें, कैसे संभव होगा प्रारंभिक निदान
चिकित्सा क्षेत्र में विभिन्न बीमारियों के प्रारंभिक अवस्था में पता लगाने के लिए कई बॉयो मार्कर उपलब्ध हैं, लेकिन सेप्सिस के लिए अब तक मार्केट में कोई बॉयो मार्कर नहीं है। खून के सैंपल से सैल फ्री डीएनए लिया जाएगा। फिर उसकी बॉयो मार्कर पर जांच होगी। इन दोनों चीजों पर शोध कार्य चल रहा है।
जानिए, क्या है सेप्सिस
खून में बैक्टीरिया के संक्रमण से फैलने वाली बीमारी है। बैक्टीरिया द्वारा छोड़े गए रसायन से पूरे शरीर में सूजन पैदा हो जाती है। एक से अधिक अंगों को नुकसान पहुंचाने वाले कई परिवर्तन शुरू हो जाते हैं। इससे अंग यानी आर्गन काम करना बंद कर देते हैं और मरीज की मौत हो जाती है।
सेप्सिस का प्रारंभिक अवस्था में पता लगाना अभी संभव नहीं है। मरीज बीमारी के लक्षण पैदा होने या खून की जांच से इसका पता चल पाता है, लेकिन तब तक संक्रमण बहुत ज्यादा फैल चुका होता है। आइआइटी मंडी के विशेषज्ञ प्रारंभिक अवस्था में सेप्सिस का पता लगाने की तकनीक इजाद करने में सफल होते हैं तो यह चिकित्सा जगत व मरीजों के लिए बड़ी राहत होगी।
-डॉ. देसराज शर्मा, चिकित्सा अधीक्षक, श्री लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल नेरचौक मंडी।
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अकेले आइसीयू में ही सेप्सिस की वजह से 30 से 40 फीसद मरीजों की मौत होती है। चिकित्सकों को जब तक सेप्सिस का पता चला है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड ने सैल फ्री डीएनए से सेप्सिस के प्रारंभिक निदान के लिए बॉयोमार्कर बनाने का प्रोजेक्ट सौंपा है। इस पर शोध कार्य शुरू हो गया है। जल्द सार्थक परिणाम सामने होंगे।
-डॉ. अविनाश सिंह, एसोसिएट प्रोफेसर, आइआइटी मंडी।