बढ़ती रहो सपनों की सीढ़ियां बुनती बेटिया
डॉ. राजेंद्र प्रसाद राजकीय मेडिकल कॉलेज दीक्षा समारोह में बेटियां ही बेटिया।
शिमला, नवनीत शर्मा। यह सपनों का समारोह था। जैसे... संस्कारों से पगी संवेदना के सराहे जाने का उत्सव हो कोई... देश के प्रथम नागरिक की उपस्थिति में एक तरफ सबसे आगे आठ चिकित्सक बैठे थे...और इनको बनाने वाले इसी सभागार में कुछ और ऊपर बैठे थे। और जब राष्ट्रपति ने अपनी गुरु गंभीर आवाज में कहा, ‘आपने जीविकोपार्जन के लिए इस क्षेत्र को नहीं चुना है। याद रखिए...मरीज केवल एक मेडिकल केस नहीं होता। मैं बेटियों के लिए बहुत खुश हूं... आठ विद्यार्थियों में सात बेटियां स्वर्ण पदक पा रही हैं...।’ स्वाभाविक है कि इसके बाद सभागार में तालियां और सिर्फ तालियां थी। इससे पहले हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत अपने मौलिक अंदाज में यह कह ही चुके थे, ‘एक बेटा तो आया मंच पर... तीन गोल्ड मेडल ले गया लेकिन उसके बाद सात की सात बेटियां...फिर कोई पहलवान नहीं आया। मुझे तो लगता है अब बेटों को बचाने पर भी जोर होना चाहिए।’
ये कुछ झलकियां काफी हैं यह बताने के लिए कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद राजकीय मेडिकल टांडा का यह दीक्षा समारोह किनके नाम रहा। इसी हाल में विद्यासागर शर्मा पत्नी अनीता शर्मा के साथ बैठे थे। बिलासपुर
जिले के घुमारवीं से आए हैं। सेना से ऑनरेरी कैप्टन के रूप में सेवानिवृत्त हुए हैं। घर से बाहर रह कर देश की सेवा की...पत्नी पर यह स्वाभाविक दायित्व छोड़ कर कि बच्चों को ठीक से देखना। और लीजिए....बेटी शिखा शर्मा का नाम जब पुकारा गया तो उनके शब्द यह सब देखने के लिए आंखों के कोरों पर आकर ठिठक गए।
व्यक्ति किसान हो या कुछ और...जब मेहनत फलती है तो शब्द नम हो जाते हैं...दिल में न रह पाएं तो आंखों तक आ जाते हैं। ऐसी ही बेटियां और भी थीं...अंकिता चौधरी, आकांक्षा, इंकिता ढडवाल, सैवी धौल्टा, प्रीति शर्मा और रूप कौर। ये सब इस युग की बेटी की मानक हैं। ये मापदंड हैं, ये नई पीढ़ी के लिए उन सपनों की सीढ़ियां हैं जिनके जरिये कोई भी बच्ची शिखर तक पहुंच सकती है।
इसी समूह में केवल सिंह दयोल, पत्नी अमरजीत कौर के साथ बैठे थे। भारत सरकार के उपक्रम और मिनी
रत्न कंपनी एनएचपीसी यानी नेशनल हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर कारपोरेशन लिमिटेड में चालक हैं। उनके बेटे जोबनप्रीत सिंह दयोल को राष्ट्रपति ने तीन गोल्ड मेडल पहनाए तो साबित हो गया कि उनके पिता ने न सिर्फ एनएचपीसी के वाहन बल्कि जीवन की गाड़ी भी पूरी चौकसी और श्रद्धा से चलाई है। संतान के लिए सतर्क रह कर किया गया श्रम सम्मानित हुआ। इसी कार्यक्रम की एक और खूबी रही राष्ट्रपति का संतोष। बकौल राष्ट्रपति, ‘60 साल पहले जिस पौधे को प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने रोपा था, आज उसे इस रूप में देख कर संतोष हुआ है।’
कोविंद ने अपनी 1974 की पहली हिमाचल यात्रा को याद करते हुए वजीर राम सिंह पठानिया और मेजर सोमनाथ शर्मा को भी याद किया। शक्तिस्थल और पहाड़ भी उन्हें जस के तस याद हैं। खुशी है तो हिमाचल के और आगे निकलने की।