पंजाब में खुशहाली, अपने हिस्से बदहाली
ने पड़ोसी राच्य पंजाब में हरित क्रांति का सूत्रपात कर पिछले तीन दशक में खुशहाली की इबारत लिखी है।
सुरेंद्र शर्मा, मंडी
ब्यास-सतलुज लिक (बीएसएल) परियोजना ने पड़ोसी राज्य पंजाब में हरित क्रांति का सूत्रपात कर तीन दशक में खुशहाली की इबारत लिखी है। लेकिन यह परियोजना मंडी जिला के किसानों के लिए अभिशाप बन गई है। परियोजना के सुंदरनगर जलाशय से निकलने वाली सिल्ट तीन दशक में मंडी जिला के तीन हलकों सुंदरनगर, नाचन और बल्ह विधानसभा क्षेत्र की सोना उगलने वाली हजारों बीघा उपजाऊ भूमि को लील चुकी है। सिल्ट के कहर से क्षेत्र के हजारों किसानों को उपजाऊ भूमि से हाथ धोना पड़ा है। इसके अलावा यह सिल्ट आज तक कई लोगों व मवेशियों को अपना निवाला बना चुकी है।
परियोजना से रोजाना करोड़ों रुपये कमाने वाले बीबीएमबी प्रबंधन ने यहां विकास के नाम पर आज तक किसानों को महज सब्जबाग ही दिखाए हैं। राष्ट्रहित की दुहाई देकर जिला के किसानों का बीबीएमबी प्रबंधन ने जमकर शोषण किया है। रबी व खरीफ की फसल के समय सिल्ट प्रभावित किसानों को नाममात्र मुआवजा देकर बीबीएमबी प्रबंधन अपनी जिम्मेदारी से पल्लू झाड़ता आया है। क्षेत्र के किसान भी दो दशक से सुकेती खड्ड के तटीकरण की मांग कर रहे हैं। सुकेती खड्ड का स्वरूप बदलने से पेयजल व सिचाई की योजनाएं सिल्ट की भेंट चढ़ चुकी हैं। यह खड्ड किसी समय मंडी जिला, खासकर बल्ह घाटी में विकास की जननी कहलाती थी। मध्य भाग से होकर गुजरने वाली सुकेती किसानों व स्थानीय लोगों की सुख-दुख की सहभागी रही है। सुकेती से किसानों को खेतों को सिंचित करने के लिए पानी और गृह निर्माण के लिए प्रचुर मात्रा में रेत-बजरी मिलता था। लेकिन सिल्ट के कहर के बाद सब बीते कल की बातें हो गई हैं। खनन माफिया के पैदा होने तथा अवैध खनन के लिए सिल्ट ही जिम्मेदार है। ----------
घांघल से गुटकर तक हजारों बीघा उपजाऊ भूमि पूरी तरह बंजर हो चुकी है। वन विभाग ने बीबीएमबी प्रबंधन को करीब एक दशक पहले सवा करोड़ रुपये का कैचमेंट एरिया ट्रीटमेंट प्लान (कैट सौंपा था। तटीकरण के साथ सुकेती के दोनों किनारों पर पौधरोपण की योजना तैयार की गई थी। बीबीएमबी से आज तक एक पैसा न मिलने से यह योजना फाइलों में धूल फांक रही है। सिल्ट मंडी जिला के किसानों के लिए फिलहाल नासूर बन चुकी है।
भूप सिंह चौहान, जिलाध्यक्ष, हिमाचल किसान यूनियन
हिमाचल किसान यूनियन सिल्ट के समाधान के लिए तीन दशक से संघर्ष कर रही है। बीबीएमबी प्रबंधन के कानों पर आज तक जूं तक नहीं रेंगी है। राजनीतिक दलों ने भी अभी तक इस मसले को गंभीरता से नहीं लिया है तटीकरण के अभाव में बरसात के मौसम में सिल्ट किसानों के खेतों में घुस कर तीन दशक में हजारों बीघा उपजाऊ भूमि को बंजर बना चुकी है।
सीता राम वर्मा, महासचिव हिमाचल किसान यूनियन (गैर राजनीतिक)
बीएसएल परियोजना को सिल्ट से बचाने के लिए बीबीएमबी प्रबंधन सालाना करोड़ों रुपये खर्च करता है। लेकिन प्रभावित किसानों को इस समस्या से निजात दिलाने के लिए आज तक फूटी कौड़ी खर्च नहीं की गई। सिल्ट निकासी को लेकर राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) पुणे के दिशानिर्देश की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही है।
दीपा शर्मा, बल्ह कंसा निवासी
सिल्ट के मुद्दे को लोकसभा और बीबीएमबी प्रबंधन से कई बार उठाया गया है। इसके स्थायी समाधान के प्रयास किए जा रहे हैं। तटीकरण के लिए करीब साढ़े चार सौ करोड़ रुपये की योजना स्वीकृत की गई है। इस पर जल्द ही काम शुरू हो जाएगा।
रामस्वरूप शर्मा, सांसद, मंडी क्षेत्र
सिल्ट का दंश सुंदरनगर से मंडी शहर तक के दायरे में आने वाले किसान झेल रहे हैं। केंद्र में सत्ता पर काबिज होते ही कांग्रेस दशकों पुराने इस मुद्दे का स्थायी समाधान करेगी। सुकेती के तटीकरण व कैट के लिए बीबीएमबी प्रबंधन पर दबाव बनाया जाएगा।
आश्रय शर्मा, कांग्रेस प्रत्याशी, मंडी संसदीय क्षेत्र