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कांट्रेक्ट फार्मिग से मालामाल हुए लाहुल के किसान

हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिले लाहुल-स्पीति में आलू की कांट्रेक्ट फार्मिग ने लोगों की तकदीर बदल दी है। किसानों को न बीज की चिंता है और न ही तैयार फसल के विपणन की।

By JagranEdited By: Published: Tue, 15 Dec 2020 05:31 PM (IST)Updated: Tue, 15 Dec 2020 05:31 PM (IST)
कांट्रेक्ट फार्मिग से मालामाल हुए लाहुल के किसान
कांट्रेक्ट फार्मिग से मालामाल हुए लाहुल के किसान

हंसराज सैनी, मंडी

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देश के किसानों को कांट्रेक्ट फार्मिंग का खौफ दिखाकर कुछ राजनीतिक दल गुमराह करने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन हकीकत यह है कि जिन किसानों ने कांट्रेक्ट फार्मिंग को अपनाया है, उनकी तकदीर ही बदल गई है। देवभूमि हिमाचल के जनजातीय जिले लाहुल-स्पीति के किसान करीब 12 साल से आलू की कांट्रेक्ट फार्मिग कर रहे हैं। उन्हें न बीज की चिंता है और न उत्पाद बेचने की। खेत तक सारी सुविधा मिल रही है।

लाहुल में करीब 978 हेक्टेयर भूमि में आलू की खेती होती है। 12 साल पहले तक यहां के किसान कुफरी ज्योति, चंद्रमुखी आलू का उत्पादन करते थे। बीज मार्केट या कृषि विभाग से खरीदते थे। कई किसान खुद का बीज भी तैयार करते थे। कई बार बीज उन्नत किस्म का नहीं होता था। फसल नाममात्र हुआ करती थी। 2012 से शुरू हुआ कांट्रेक्ट फार्मिंग का दौर उनके लिए उनके लिए अच्छे दिन लेकर आया। आढ़तियों पर निर्भर थे दाम

आलू के दाम आढ़तियों पर निर्भर थे। वे मनमर्जी से आलू की खरीद करते थे। कई बार किसानों को उत्पाद का पैसा तक नहीं मिल पाता था। आढ़ती किसानों के साथ ठगी कर लेते थे। कांट्रेक्ट फार्मिग से यह आया बदलाव

देश में चिप्स व आलू भुजिया का दौर आया तो महिद्रा, मैकेन, बालाजी, पेप्सिको व हाफन जैसी कंपनियों ने लाहुल का रुख किया। किसानों को कांट्रेक्ट फार्मिंग का फंडा समझाया। उच्च क्वालिटी का बीज उपलब्ध करवाया। बिजाई से लेकर फसल तैयार होने तक किसानों को क्या करना है, विशेषज्ञों ने खेत में पहुंच कर मार्गदर्शन किया। इससे आलू उत्पादन में तीन गुना इजाफा हुआ। फसल बेचने की चिंता खत्म होते ही किसानों ने आलू उत्पादन की तरफ रुख कर लिया। किसान अब संताना किस्म के आलू का उत्पादन कर रहे हैं। 2008 में तत्कालीन भाजपा सरकार के समय लाहुल-स्पीति जिले में कांट्रेक्ट फार्मिग शुरू हुई थी। खेत से फसल उठाती हैं कंपनियां

कांट्रेक्ट करने वाली कंपनियां खेत से ही तैयार फसल उठा रही हैं। किसानों को सिर्फ आलू खेत से निकालकर बोरी में भरना होता है। आलू बीज की 50 किलो वजन की एक बोरी किसानों को खेत तक 800 से 900 रुपये तक उपलब्ध करवाई जाती है। एक बोरी बीज से 10 से 15 बोरी आलू का उत्पादन होता है। एक बोरी की खरीद कंपनियां 1500 से 1600 रुपये तक करती हैं। एक हेक्टेयर में 25 क्विंटल बीज की जरूरत

किसानों को हर साल आलू का करीब 20 से 25 हजार क्विंटल बीज चाहिए होता है। एक हेक्टेयर में 25 क्विंटल बीज लगता है। रोहतांग दर्रे से इतना बीज पहुंचाना कृषि विभाग के लिए पहाड़ जैसी चुनौती था। कई बार दर्रा देरी से खुलने से किसानों को समय पर बीज नहीं मिल पाता था।

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कांट्रेक्ट फार्मिग से लाभ हुआ है। आलू का बीज कंपनी के लोग घर-द्वार पहुंचा रहे हैं। बिजाई के डेढ़ माह बाद कंपनी के लोग पौधे की पहचान कर छंटाई भी खुद करते हैं और दूसरे किस्म के पौधे को उखाड़ देते हैं। पहले मार्केट की चिंता सताती थी तो खेती करने में रुचि कम होती थी, लेकिन अब दाम व मार्केट की कोई चिंता नहीं।

-प्रेम योतरपा, आलू उत्पादक केलंग।

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कंपनी के आने से उत्तम किस्म का बीज मिल रहा है जो पहले नहीं मिलता था। घर-द्वार पर बेहतर दाम मिल रहे हैं। पहले दाम बेहतर न मिलने से आलू की खेती कम होने लगी थी, लेकिन अब आलू की खेती का दायरा फिर से बढ़ने लगा है।

-रमेश फारका, आलू उत्पादक केलंग।

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कांट्रेक्ट फार्मिंग से लाहुल में आलू का उत्पादन बढ़ा है। किसानों की बीज व फसल बेचने की चिंता खत्म हुई है। यहां के किसान आलू उत्पादन में देश ही नहीं विदेश में भी नाम कमा रहे हैं।

-डा. रामलाल मार्कंडेय, तकनीकी शिक्षा मंत्री एवं लाहुल-स्पीति के विधायक।


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