गोधन सड़क पर, खेत चट
से राहत मिलती नहीं दिख रही। किसानों के सामने मुंह उठाए खड़ी इस समस्या का समाधान होता नहीं दिख रहा है। गोहर सहित जिले के सभी क्षेत्रों में बेसहारा पशुओं की समस्या दिनों दिन विकराल रूप धारण कर चुकी है। किसानों का गुस्सा इस समस्या को लेकर सातवें आसमान पर है। सरकार ने जीरो बजट प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए करोड़ों रूपये खर्च कर दिए लेकिन बेसहारा पशुओं के लिए कुछ नहीं किया। विधानसभा चुनाव जीतने के बाद मौजूदा सरकार ने बेसहारा पशुओं की समस्या का हल निकालने का किसानों से वादा किया था लेकिन धरातल पर डेढ़ वर्ष बीत जाने के बाद इसके परिणाम नजर नहीं
मृगेंद्र पाल, गोहर
बेसहारा पशुओं की समस्या से किसानों को कहीं से राहत मिलती नहीं दिख रही। किसानों के सामने मुंह उठाए खड़ी इस समस्या का समाधान होता नहीं दिख रहा है। गोहर सहित जिले के सभी क्षेत्रों में बेसहारा पशुओं की समस्या विकराल रूप धारण कर चुकी है। किसानों का गुस्सा इस समस्या को लेकर सातवें आसमान पर है। सरकार ने जीरो बजट प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर दिए, लेकिन बेसहारा पशुओं के लिए कुछ नहीं किया। विधानसभा चुनाव जीतने के बाद मौजूदा सरकार ने बेसहारा पशुओं की समस्या का हल निकालने का किसानों से वादा किया था, लेकिन धरातल पर डेढ़ वर्ष बीत जाने के बाद इसके परिणाम नजर नहीं आ रहे हैं।
किसानों और आम जनता का कहना है कि जयराम सरकार की गो-संरक्षण योजना सिरे नहीं चढ़ पाई और न ही गो संरक्षण के कोई सार्थक परिणाम सामने आए है। गो संरक्षण के नाम पर मंदिरों के दानपात्रों से राशि अर्जित करने वाली वर्तमान सरकार गो-संरक्षण के लिए कुछ खास नहीं कर सकी है। अभी भी प्रदेश में हजारों की संख्या में पशु सड़कों पर भटक रहे हैं तथा दिनरात फसलों को बर्बाद कर रहे हैं। गो संरक्षण पर कई विधेयक लाए जा चुके हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर काम कम ही हो सका है। सरकार के लिखित फरमानों के बाद भी गोसदनों के लिए भूमि की तलाश नहीं हो पाई है। बेसहारा पशुओं की चहलकदमी से किसानों के खेतों का उजड़ना बदस्तूर जारी है। नई सरकार से लोगों को बहुत आस थी कि इस विकराल समस्या का कोई हल जरूर होगा, लेकिन सरकार के सोलह माह का कार्यकाल बीत जाने के बाद कुछ भी न होने से किसान अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। चुनावों में नेता जहां बड़े-बड़े मुददों को भुनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं वहीं दूसरी ओर किसान गो-सरंक्षण व गोसेवा आयोग को रात दिन कोस रहे हैं। पूर्व सरकार में भी पांच सालों तक बेसहारा पशुओं की समस्या हल नहीं निकाल पाई थी। प्रदेश में बेसहारा पशुओं की समस्या से निजात दिलाने के लिए सरकार समय-समय विधेयक लाकर कानून बनाती रही है, लेकिन आज तक लावारिस पशु छोड़ने वालों पर नकेल नहीं कसी जा सकी है।
-------------
सरकार ने की है तीन मंत्रियों की कमेटी गठित
सरकार बेसहारा पशुओं की समस्या का हल निकालने के लिए बचनबद्ध है। गो-सरंक्षण योजना के माध्यम से बेसहारा पशुओं के लिए गोसदन के लिए काम कर रही है। लगातार बढ़ रही समस्या से निपटने के लिए गंभीर उपाय उठाए जा रहे है। सरकार के तीन मंत्री गोसेवा आयोग की गठित कमेटी में शामिल किए गए है। उन द्वारा किए जा रहे काम के जल्दी सार्थक परिणाम सामने आएंगे। पशु पालन विभाग के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश भर में 12 हजार बेसहारा पशुओं का पुनर्वास किया गया है।
-विनोद कुमार, विधायक नाचन क्षेत्र।
------------
शराब पर सेस से जुटाए पैसे कहां गए
सरकार ने सत्ता में आते ही एक से एक नए झूठ बोले हैं। अब तक नेताओं ने भी धौंस जमाने की राजनीति की है। सरकार ने वादा किया था कि बेसहारा पशुओं से छुटकारा मिलेगा। सरकार ने शराब की प्रति बोतल पर एक रुपये सेस गोसदन के नाम पर वसूल की है। एक वर्ष में करीब छह करोड़ से भी अधिक का सेस जुटा लिया गया है। जिस मकसद के लिए इसे जुटाया जा रहा है, इसके लिए अभी तक जरूरी कदम क्यों नहीं उठाए जा रहे है। सेस और मंदिरों के दान से जुटाया पैसा सरकार ने कहां डाला। गोसंरक्षण कर गो-सदनों में रखकर पुनर्वास किया जाना चाहिए था। आज भी प्रदेश में करीब 20 हजार पशु सड़कों पर भटक रहे हैं।
-लाल सिंह कौशल, पूर्व प्रत्याशी नाचन कांग्रेस।
-----------
गोसदन बनाने में आड़े आ रही धन की कमी
गोहर के सटखण में बन रहे बांके बिहारी गोसदन के निर्माण में पैसों की कमी आड़े आ रही है। एक साल पहले वन विभाग से ली गई करीब पांच बीघा जमीन पर निर्माण कार्य आरंभ किया गया था। जनसहयोग व जिला प्रशासन के सहयोग से 10 लाख रुपये की धनराशि भी इस पर खर्च की जा चुकी है। कुछ पैसा पंचायत की वजह से नहीं मिल पा रहा। हम किसानों को समस्या से उभारने के लिए प्रयासरत हैं। गोसदन के काम को पूरा करने के लिए सरकार की मेहरबानी की दरकार है।
-महेंद्र सिंह वर्मा, अध्यक्ष बांके बिहारी गोसदन कमेटी।
---------------
बेसहारा पशुओं के कारण खेत खाली छोड़ने को मजबूर
दिनोंदिन बढ़ रही बेसहारा पशुओं की संख्या ने किसानों का जीना दूभर कर दिया है। किसान बड़ी उम्मीद से फसल उगाता है, उसकी रक्षा करता है, लेकिन पशुओं के झुंड एक ही दिन में सब कुछ चौपट कर देते हैं। खेतों में बोई गई फसलों का एक भी दाना किसानों के घरों तक नहीं पहुंच रहा। किसानों को कोई भी राहत नहीं मिल रही। सरकार के द्वारा किए गए वादे विफल हुए हैं। सरकार से लेकर अफसरशाही, प्रशासन, पंचायत प्रतिनिधि और स्वयंसेवियों द्वारा गठित समिति भी नाकाम रही है। कई किसानों ने अपने खेत खाली छोड़ दिए हैं।
-रमेश चंद, किसान चैलचौक।
---------------
कड़े कदम उठाने की जरूरत
सरकार को बेसहारा पशुओं के साथ उन्हें छोड़ने वालों के खिलाफ कड़े कदम उठाने की जरूरत है। सरकार के द्वारा पशुओं के पंजीकरण करने का फार्मूला पूरी तरह विफल हुआ। किसानों के खातों में दो हजार रुपये की राहत देना कोई बड़ी राहत नहीं है। इस बड़ी विकराल समस्या से निपटने के लिए सरकार को कुछ बड़ा काम करने की आवश्यकता है। कुछ इलाकों में किसानों ने बेसहारा पशुओं के कारण खेती करना छोड़ दिया है। किसानों के माथे पर चिता की लकीरें बढ़ती जा रही हैं।
-हरीश चौहान किसान, गोहर।
-------------
बड़े अभियान की जरूरत
बेसहारा पशुओं की समस्या से निपटने के लिए सरकार व प्रशासन को बड़ा अभियान चलाने की जरूरत है। जिस तरह बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, स्वच्छता मिशन, एड्स, पल्स पोलियो अभियान, सड़क सुरक्षा अभियान जैसे अनेक अभियानों को कमर कस कर धरातल पर लाया जा रहा है। उसी तरह गो-सरंक्षण अभियान को भी प्रखरता से लाना चाहिए। सिर्फ घोषणा करने से किसी भी समस्या का हल नहीं हो सकता।
-भुवनेश्वरी देवी, प्रधान पंचायत बगैला।