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उत्पादन लागत शून्य, कमाई लाखों में

हंसराज सैनी मंडी नशे के कारोबार से जुड़े लोग मुफ्त में भांग की खेती करके लाखों का म

By JagranEdited By: Published: Sat, 16 Jan 2021 06:31 PM (IST)Updated: Sat, 16 Jan 2021 06:31 PM (IST)
उत्पादन लागत शून्य, कमाई लाखों में
उत्पादन लागत शून्य, कमाई लाखों में

हंसराज सैनी, मंडी

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नशे के कारोबार से जुड़े लोग मुफ्त में भांग की खेती करके लाखों का मुनाफा कमाते हैं। पकड़ में नहीं आए तो चरस बेचकर एक सीजन में ही मालामाल हो जाते हैं। एक सीजन में एक व्यक्ति 30 से 40 किलो चरस का उत्पादन कर चार से पांच लाख रुपये तक कमाता है। इसी मोटी कमाई की लालसा में चरस का कारोबार फलता फूलता गया।

कारोबार को फलने फूलने में उर्वरक देने का काम राजस्व, वन विभाग के कर्मचारियों व पंचायत प्रतिनिधियों ने किया है। राजस्व व वन विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों ने दुर्गम क्षेत्रों का दौरा करना कभी उचित नहीं समझा। कागजों में वन भूमि को खाली दर्शाया जाता रहा है। मंडी जिले की चौहार घाटी में भी कुछ साल पहले पोस्त की खेती होती रही। राजस्व विभाग अपने रिकॉर्ड में वहां मटर, आलू व राजमाह की फसल दिखाता रहा। कुल्लू जिले के श्रीकोट, बठाहड़ व पल्दी घाटी में कमोवेश यही स्थिति है। क्षेत्र के कई पंचायत प्रतिनिधि नशीले पदार्थों के कारोबार में संलिप्त हैं। भांग का बीज 5000 से 10,000 रुपये प्रति किलो मिलता है। भांग की बिजाई अधिकांश वन भूमि में की जाती है। एक किलो बीज से 30 से 40 किलो तक चरस का उत्पादन होता है। गांव में ही प्रति किलो के 10000 से 15000 रुपये मिल जाते हैं यानी एक सीजन में पांच से छह लाख की कमाई।

ग्रामीणों को चरस बेचने के लिए गांव से बाहर नहीं जाना पड़ता है। गांव का प्रभावशाली व्यक्ति ही तैयार माल की खरीदारी करता है। वही फिर आगे चरस की सप्लाई करता है। सीधेतौर पर उसकी कोई भूमिका नहीं होती है। तय ठिकाने तक सप्लाई पहुंचाने व वहां से आगे ले जाने का काम अलग-अलग लोगों के जिम्मे होता है। यही सबसे बड़ी वजह उनके आसानी से पकड़ में न आने की रहती है। चरस की खेप जितनी ज्यादा दूर जाती है दाम उतने ही बढ़ते जाते हैं। कुल्लू में दाम 20,000 रुपये प्रति किलो हैं तो मुंबई व गोवा पहुंचते-पहुंचते लाखों रुपये हो जाते हैं।


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