शर्मिला ने कोलकाता पहुंचाई लाहुल की लौ, 20 वर्ष से कर रही लाहुली संस्कृति का प्रचार
Sharmila Chatterjee. शर्मिला चटर्जी हर साल यहां पर देश व दुनिया के पर्यटकों को पहुंचाकर लाहुल की संस्कृति व ऐतिहासिक परंपराओं से परिचित करवाती है।
कुल्लू, कमलेश वर्मा। बर्फ से ढके चारों ओर पहाड़, सुबह उठते ही बौद्ध भिक्षुओं व हिंदुओं के मंदिरों से आती घंटियों की आवाज, लोगों की दिनचर्या, रहन-सहन और वेशभूषा भी दूसरों से अलग, संस्कृति ऐसी कि जिसे देखकर हर कोई अचंभित हो जाए। ये सारी समृद्ध विरासत लिए जिला लाहुल स्पीति किसी पहचान का मोहताज नहीं है। इस समृद्ध विरासत से देश के दूसरे कोने से लगातार 20 वर्ष से यहां आ रही एक महिला कई लोगों को रूबरू करवाने में प्रयासरत है।
कोलकाता निवासी व वर्तमान में नागपुर में रहने वाली शर्मिला चटर्जी हर साल यहां पर देश व दुनिया के पर्यटकों को पहुंचाकर यहां की संस्कृति व ऐतिहासिक परंपराओं से परिचित करवाती है। शर्मिला की अपनी ट्रेवल एजेंसी है और वह इसी के माध्यम से पर्यटकों को यहां तक पहुंचा रही है। वह लाहुल को प्रमोट करने के लिए कार्य कर रही है।
ऐसी शांति व सुकून और कहीं नहीं
लगभग 53 साल की शर्मिला सबसे पहले 1999 में लाहुल आई थी। उन्होंने उदयपुर से लाहुल तक सर्वे किया और इसके ऐतिहासिक महत्व का ज्ञान हासिल किया। शर्मिला बताती हैं कि वह लाहुल की परंपराओं व सभ्यता से प्रभावित हुई। इसके बाद उन्होंने इससे देश व दुनिया के लोगों को परिचित करवाने का मन बनाया और अब 20 साल से लगातार यहां आकर देश व विदेश के पर्यटकों को इससे रू-ब-रू करवा रही हैं।
बकौल शर्मिला यहां के प्राकृतिक नजारों, संस्कृति और धार्मिक स्थलों में जो शांति व सुकून मिलता है वह दुनिया के किसी भी कोने में नहीं है। वह हर वर्ष चार बार यहां आती हैं और हर बार उनके साथ 10 से 12 पर्यटक साथ होते हैं। इस प्रकार वह वर्ष में 40-45 पर्यटकों के लेकर लाहुल आती हैं। इनमें अधिकतर वह लोग होते हैं, जो पारंपरिक जानकारियां हासिल करने या शोध आदि कार्य के इच्छुक होते हैं।
बुद्ध की शिक्षाओं व हिंदू मंदिरों का इतिहास
लाहुल घाटी में हिंदू व बौद्ध धर्म का समावेश देखने को मिलता है। यहां बने गोंपाओं में जहां भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का ज्ञान होता है, वहीं हिंदू मंदिरों का इतिहास अपने आप में कई कहानियां समेटे हुए है। स्पीति के ताबो, कीह, ढंकसर, कुंगरी गोपाओं की अलग पहचान है। साथ ही, यहां पर स्थानीय नागरिकों द्वारा पारपंरिक तरीकों से की जाने वाली खेतीबाड़ी भी लोगों को प्रभावित करती है।
छह माह शेष दुनिया से कट जाता है लाहुल
नवंबर में अगर बर्फबारी होती है तो लाहुल क्षेत्र के लिए आवाजाही बंद हो जाती है। इससे यह क्षेत्र देश व दुनिया से कट जाता है। हालांकि लेह से आने का साधन है, लेकिन इसके बावजूद यहां बर्फबारी के कारण रास्ते बंद रहते हैं। पर्यटन की दृष्टि से इस क्षेत्र में बहुत कुछ है लेकिन साधनों की कमी के कारण यहां तक सभी पर्यटक नहीं पहुंच पाते हैं।
सरकार ध्यान दे तो मिले रोजगार
शर्मिला कहती हैं कि सरकार को यहां पर पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाने चाहिए। जब तक रोहतांग टनल शुरू नहीं होती है, तब तक सरकार को हवाई सेवाओं के माध्यम से इस स्थान को पर्यटन से जोड़ना चाहिए। साथ ही, यहां की सड़कों का भी ठीक होना आवश्यक है। मूलभूत सुविधाओं की कमी के कारण आज भी इस जिला के लोग आजादी से पहले का जीवन जीने को मजबूर हैं। उन्होंने केंद्र व प्रदेश सरकार से मांग की कि इस जिला को पर्यटन व धार्मिक दृष्टि से विकसित किया जाए, ताकि ज्यादा से ज्यादा पर्यटक यहां पहुंचे और लोगों को रोजगार भी मिले और यहां की सुंदरता और संस्कृति के पर्यटक दर्शन कर सकें।