किन्नौरी हैंडलूम को सरकार दे सहयोग - विनोद पुरोहित
कोरोना ने किन्नौरी हथकरघा उद्योग को बुरी तरह से प्रभावित किया है। यह उद्योग आज सरकार और संस्थानों की ओर राहत प्रदान करने के लिए देख रहा है। संस्थागत प्रयासों से ही इस हथकरघा उद्योग को बचाया जा सकता है।
रिकांगपिओ, जेएनएन। कोरोना ने किन्नौरी हथकरघा उद्योग को बुरी तरह से प्रभावित किया है। यह उद्योग आज सरकार और संस्थानों की ओर राहत प्रदान करने के लिए देख रहा है। संस्थागत प्रयासों से ही इस हथकरघा उद्योग को बचाया जा सकता है। हथकरघा कारीगरों की घटती जनसंख्या उद्योगों के लिए चिंता की बात है। यह बात जेएसडब्लू फाउंडेशन शोलतू के विनोद पुरोहित ने सहायक विकास आयुक्त और किन्नौरी हथकरघा के कारीगरों के साथ संवाद के दौरान कही। विनोद पुरोहित ने इस अवसर पर कहा कि धागे के अविष्कार का मानव सभ्यता के विकास में अहम भूमिका है। विवाह संस्थान, परिवार और सामाजिक ढांचे के निर्माण में धागे ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
किन्नौर में हथकरघा कला पांच हजार साल पहले उज्बेकिस्तान से आई थी, तब से लेकर आज तक किन्नौर इसे संजोए हुए है। विनोद ने कहा कि इन दिनों कोरोना के चलते ग्राहक नहीं आ रहे हैं। हथकरघा कारीगर कठिन समय से गुजर रहे हैं। ऐसे समय में सरकार उत्पाद खरीदे और धागा खरीदने के लिए लोन दे। यही नहीं सामुदायिक स्तर पर उत्पादों की खरीद भी एक रास्ता हो सकती है। कारीगरों के पास उत्पाद बेचने का कोई तंत्र या प्लेटफोर्म भी नहीं है जो ऐसे समय में उत्पाद की बिक्री संभव कर सके। निफ्ट, एनआइडी और आइआइएचटी जैसे संस्थान किन्नौर नहीं आ रहे हैं। इससे ना तो बुनकरों को नए डिजाइन मिल रहे हैं और ना ही कोई विस्तार हो रहा है। इस कार्यक्रम में चरखा कि निचार, मीरू, शोंग, रिशल, चगांव, सापनी और शोलतू की पंद्रह महिलाओं ने भाग लिया।
बुनकरों को नहीं मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध
बुनकरों के पास कोई कॉमन कमरा या दुकान नहीं है। गांव के स्तर पर हैंडलूम सेंटर बने। कोई रिसर्च नहीं हो रही है और कोई नए डिजाइन भी नहीं है। कोई उचित पब्लिसिटी की व्यवस्था नहीं कर रहा है। जिला मुख्यालय पर भी कोई दुकान किन्नौरी हथकरघा के बुनकरों के लिए आबंटित नहीं है।