...यहां हर घर में विराजते हैं भोलेनाथ
हिमाचल में महाशिवरात्रि पर्व अलग-अलग स्थानों पर अनोखे अंदाज में मनाया जाता है कुल्लू में इस दिन लोग अपने घर में भगवान शिव को विराजमान करते हैं।
कुल्लू, जेएनएन। महाशिवरात्रि पर्व हिमाचल में अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न अंदाज में मनाया जाता है। कुल्लू जिला के आउटर सिराज में इस पर्व को बड़े ही अनोखे अंदाज में मनाया जाता है। आउटर सिराज क्षेत्र में इस पर्व को मनाने की पौराणिक परंपरा आज भी कायम है।
जिला कुल्लू में भगवान भोले को अपने घरों में शिवलिंग रूप में विराजमान करने से कोई चूकना नहीं चाहता। यहां पर चंदो के रूप में हर घर में शिव विराजमान होते हैं। आज के दिन भगवान को शिवलिंग रूप में पिरोने का कार्य शुरू हो गया है। एक विशेष प्रकार के फल जिसे स्थानीय भाषा में केमटू कहते हैं। इस फल से शिवलिंग के रूप में बनाकर इसे हर घर में विराजमान किया जाता है।
इसे पाजा और बेलपत्र जैसी अनेक प्रकार के फूलों की पत्तियों से सजाया जाता है। नाना प्रकार के व्यंजनों का भोग चढ़ाकर लिंग रूप की पारंपरिक पूजा अर्चना की जाती है। शिवरात्रि को रातभर प्राचीन वाद्ययंत्रों से पुराने गीत नटाउक तथा जती गाकर भोले को प्रसन्न किया जाता है। इन गीतों में भोले की स्तुति साफ झलकती है। बूढे़, बच्चे और जवान पूरी रात भर नाच गाकर आनंद प्राप्त करते हैं। इसके लिए क्षेत्र के लोग कई दिन पूर्व से ही तैयारियों में जुट जाते हैं।
ऐसी प्रथा सदियों से चली आ रही है। आउटर सिराज के हर घर में भोले के रूप में केमटू से बनी माला को पिरोकर इसे सजावट देकर लगाया जाता है। इससे लगाने के लिए पुरोहित द्वारा समय निर्धारित किया जाता है। पूरे विधि विधान से शिव के रूप की पूजा अर्चना करने से घर में सुख-सम़ृद्धि प्रदान होती है।
-पुरोहित चमन शर्मा।
घर में नए मेहमान आने पर लगता है चंदो
चंदो को भोलेनाथ के रूप को लगाने के लिए भगवान आशीर्वाद होना अनिवार्य होता है। यह चंदो तब लगाया जाता है जब घर में कोई नया मेहमान आता है। इसमें अगर किसी घर में बच्चा जन्म देता है इसमें भेड़ बकरी, गाय, अन्य जानवरों के बच्चे होने पर भी इसे लगाने की परंपरा है। कई घरों में तो एकलिंग नहीं बल्कि लिंग के मुख्य भाग में कई शाखाएं लगानी होती है। अपनी इच्छा अनुसार आप इसे विराजमान नहीं कर सकते हैं। इसे पूरी विधि विधान के अनुसार ही स्थापित किया जाता है। शिवरात्रि के समापन की सुबह को इससे घर के बाहर लटकाया जाता है। निकालते समय भोले के भजन व जती का गायन कर ही इस रूप को घर से विदाई दी जाती है।