सिकुड़ने लगी एप्पल बेल्ट
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संवाद सहयोगी, कुल्लू : एप्पल बेल्ट के नाम से मशहूर कुल्लू घाटी के निचले इलाकों में सेब की अच्छी पैदावार न होने के कारण बागवान अब इसे घाटे का सौदा मानने लगे हैं। अब बागवान ऊंचाई वाले क्षेत्रों में नई नई किस्मों को तरजीह दे रहे हैं। निचले इलाकों के बागवान सेब के बजाय अनार, जापानी फल व मेरिपोजा की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। इस बार कोरोना काल में भी निचले इलाकों के बागवानों ने अनार व जापानी फल की विभिन्न किस्मों को तैयार किया है। अच्छी आमदनी होने के कारण बागवानों का रुझान अब सेब के बजाय अन्य फलों की ओर बढ़ रहा है। हालांकि जिन बागवानों ने सेब की स्पर किस्मों को निचले क्षेत्रों में लगाया है वे बेहतर उत्पादन से अच्छी कमाई भी कर रहे हैं।
जिला कुल्लू में बागवान रॉयल डिलिशियस सेब को अधिक पसंद करते हैं। छह हजार फीट की ऊंचाई के लिए यह किस्म बेहतर मानी जा रही है। 30 वर्ष पहले कुल्लू और भुंतर, आनी शहर के आसपास के क्षेत्रों में भी सेब का बेहतर उत्पादन होता था, लेकिन धीरे-धीरे एप्पल बेल्ट ऊंचाई की ओर खिसक गई। रॉयल डिलिशियस में एक वर्ष बेहतर उत्पादन न होने के कारण लोगों का इससे भी मोहभंग होने लगा है।
बागवान हरीश, सु़रेश, दीपक, हैरी, सोनम, देवीदयाल, सुनीता, सुरत राम, दीन दयाल, सतपाल, रमेश, दिनेश शर्मा, पवन शर्मा, लोतम राम आदि का कहना है कि उनकी ऊपरी और निचले क्षेत्रों में दोनों जगह जमीनें हैं। ऊंचाई वाले बगीचे में सेब की बेहतर उत्पादन होता है, जबकि निचले इलाकों वाले बगीचे में हर वर्ष कम उत्पादन होता है।
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सेब की स्पर किस्में भी निचले इलाकों के लिए हैं, लेकिन पौधे लगाने से पहले बागवान वैज्ञानिकों से राय लें और मिट्टी का भी परीक्षण करवाएं। निचले इलाकों के लिए गाला प्रजाति की कई किस्मों के पौधे आते हैं। निचले इलाकों के बागवान विभाग से राय ले लेकर बगीचा तैयार कर सकते हैं।
-डा. उत्तम पराशर, विषय विशेषज्ञ उद्यान विभाग कुल्लू।