42 दिन के लिए देव आदेश से बंधे श्रद्धालु, मनोरंजन के साधनों से भी बनायी दूरी
कुल्लू में देवालयों की सारी घंटियों को बांध दिया गया है, ताकि कोई श्रद्धालु गलती से घंटी बजाकर देव आदेश की आज्ञा का उल्लंघन न कर सके।
मनाली, जेएनएन। सूचना क्रांति के इस दौर में कुल्लू की देव आस्था ने फिर कौतुहल पैदा कर दिया है।एतिहासिक गांव में टीवी के बटन स्विच ऑफ कर दिए हैं। रेडियो सहित मनोरंजन के सभी साधन को ग्रामीणों ने देव आदेश के कारण अपने से दूर कर दिया है।
देवालयों की सारी घंटियों को बांध दिया गया है, ताकि कोई श्रद्धालु गलती से घंटी बजाकर देव आदेश की आज्ञा का उल्लंघन न कर सके। उझी घाटी के नौ गांव आज से 42 दिन तक देव आदेश में बंध गए हैं। इन गांव के ग्रामीणों पर आराध्यदेवों गौतम-व्यास ऋषि व नाग देवता का आदेश लागू हो गया है।
मान्यता है कि गांव के आराध्यदेव इन दिनों तपस्या में लीन हो जाते हैं तथा देवताओं को शांत वातावरण मिले इसके लिए ग्रामीण गांव में टीवी व रेडियो नहीं चलाएंगे न ही खेतों-खलिहानों का रुख करेंगे। उझी घाटी के गोशाल गांव सहित कोठी, सोलंग, पलचान, रुआड़, कुलंग, शनाग, बुरुआ तथा मझाच के लोग आज भी प्रतिबंध का पालन पूरी श्रद्धा से कर रहे हैं।
व्यापक प्रतिबंध के चलते गोशाल गांव के ग्रामीण रेडियो-टीवी का प्रयोग नहीं करेंगे, जबकि अन्य गांव के ग्रामीण खेतों का रुख नहीं करेंगे। देवलू एवं गोशाल के ग्रामीण मेहर चंद ठाकुर का कहना है उझी घाटी के नौ गांव के ग्रामीण आज से देव प्रतिबंध में बंध गए हैं। उनके अनुसार बुजुर्ग लोगों सहित युवा वर्ग भी इस प्रतिबंध को आज भी बड़ी श्रद्धा से निभा रहा है। देवता पर अटूट विश्वास का ही कारण है कि इस बार भी घाटी के ग्रामीण देव आज्ञा के पालन को पूरी तरह तैयार है।
42 दिन तक होगा आज्ञा पालन
पंचायत प्रधान प्रताप ठाकुर और बीडीसी सदस्य गोकुल का कहना कि ग्रामीण 42 दिन तक देव आदेश में बंध गए हैं। ग्रामीण देवता के स्वर्ग प्रवास से लौटने पर देवताओं का जोरदार स्वागत करेंगे तथा आराध्यदेवों के सम्मान में उत्सव का भी आयोजन करेंगे। देवता स्वर्ग प्रवास से लौटते ही भविष्य में होने वाली घटनाओं बारे भी भविष्यवाणी करेंगे।
गांव में छाई मायूसी
आराध्यदेवों के 42 दिन तक स्वर्ग प्रवास पर चले जाने से गोशाल गांव सहित समस्त उझी घाटी में मायूसी छा गई है। आज सुबह ही गांव देव वाद्य यंत्रों से गूंज उठा। देवता के स्वर्ग प्रवास में जाने से पहले देव प्रतिनिधियों द्वारा देवता की पिंडी पर मिट्टी छान कर मृदा लेप लगाई गई और पिंडी को बंद कर दिया। देवता के आने के बाद ही इस पिंडी से लेप को हटाया जाएगा।