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आज सायर पर होगी महामारी से जीत की कामना, नई फसल तैयार होने का प्रतीक है यह पर्व

Sair Festival हिमाचल प्रदेश में सायर उत्सव पर पारंपरिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Wed, 16 Sep 2020 09:44 AM (IST)Updated: Wed, 16 Sep 2020 09:44 AM (IST)
आज सायर पर होगी महामारी से जीत की कामना, नई फसल तैयार होने का प्रतीक है यह पर्व
आज सायर पर होगी महामारी से जीत की कामना, नई फसल तैयार होने का प्रतीक है यह पर्व

सोलन, मनमोहन वशिष्ठ। हिमाचल प्रदेश में सायर उत्सव पर पारंपरिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस कोई विशेष आयोजन नहीं हो रहा है, पर लोग घरों में कोरोना महामारी से जीतने और स्वस्थ रहने की कामना जरूर करेंगे। शिमला के मशोबरा और सोलन जिला के अर्की में सायर उत्सव पर भैंसों की लड़ाई (कुश्ती) करवाई जाती थी। हालांकि अब इस पर रोक लगा दी है। कुछ वर्षों से इसका आयोजन नहीं किया जा रहा है। हर वर्ष अश्विन माह की संक्रांति पर यह त्योहार बरसात खत्म होने व शरद ऋतु के आगाज के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।

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अर्की में तीन दिवसीय सायरोत्सव का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें काली माता के पूजन के साथ मेले का आगाज होता है। यहां सांस्कृतिक संध्याओं में हिमाचली लोक गायकों के साथ बॉलीवुड और पंजाब के कलाकार रंग जमाते हैं। बताया जाता है कि अर्की का सायरोत्सव बाघल (अर्की) रियासत के समय से ही होता आ रहा है। हालांकि कोरोना संकट में इस बार यह कार्यक्रम भी नहीं होंगे। सिर्फ काली माता की पूजा ही होगी।

क्यों मनाया जाता है त्योहार

इस समय खरीफ की फसलें पक जाती हैं और काटने का समय होता है। लोग भगवान का आभार जताने के लिए यह त्योहार मनाते हैं। सैर साजी (सायर) के बाद ही खरीफ की फसलों की कटाई की जाती है। इस दिन सैरी माता को फसल व मौसमी फल चढ़ाए जाते हैं। हालांकि बुजुर्गों का यह भी कहना है कि दशकों पहले सड़क, अस्पताल आदि की सुविधाएं नहीं थी। बरसात में नदियां उफान पर होती थीं तो रिश्तेदारों से मिलना भी संभव नहीं था। बरसात खत्म होने के बाद सबके कुशल होने की खुशी में त्योहार मनाया जाता है। सायर को पशुओं की खरीद-फरोख्त से भी जोड़ा जाता है।

घरों में करवाए जाते हैं सैरी माता के दर्शन

सायर के दिन सुबह सूरज निकलने से पहले ही थाली में मौसमी फल, मक्की, अदरक, गुलाल, पानी से भरा लोटा व शीशा रखकर दर्शन करवाए जाते हैं। थाली में रखे शीशे में खुद का मुंह देखा जाता है और श्रद्धापूर्वक पैसे चढ़ाए जाते हैं। ऐसा करना शुभ माना जाता है। सोलन जिला के अर्की उपमंडल से संबंध रखने वाले साहित्यकार अशोक गौतम ने बताया कि सायर उत्सव पूरे प्रदेश में मनाया जाता है। अर्की का सायरोत्सव प्रसिद्ध है। अर्की में सायरोत्सव की पहचान भैंसों की कुश्ती थी, लेकिन अब इस पर रोक लग गई है।


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