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यहां मशरूम उत्‍पादन कर आत्‍मनिर्भर बनी महिलाएं, साल में चार बार फसल लेकर कर रहीं घर बैठे कमाई

Self Dependent महिलाएं स्वावलंबी बनने की राह पर निकल पड़ी हैं। महिलाएं मशरूम की खेती कर अपनी किस्मत संवार रही हैं। इस पहल से अब उनके घरों की आर्थिक दशा भी बदलने लगी है। पहले रोजी रोटी के लिए जद्दोजहद करने वाले घरों में अब खुशियां दस्तक दे रही हैं।

By Rajesh Kumar SharmaEdited By: Published: Thu, 18 Mar 2021 07:11 AM (IST)Updated: Thu, 18 Mar 2021 02:35 PM (IST)
यहां मशरूम उत्‍पादन कर आत्‍मनिर्भर बनी महिलाएं, साल में चार बार फसल लेकर कर रहीं घर बैठे कमाई
स्वयं सहायता समूह की सदस्‍य वीना ठाकुर।

कुल्लू, दविंद्र ठाकुर। जिला कुल्लू में महिलाओं को अत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कृषि विज्ञान केंद्र ने एक कदम बढ़ाए हैं। इसके तहत महिला स्वयं सहायता समूहों को मशरूम के उत्पादन के लिए तैयार किया गया है। घर के पुरुष सदस्य मेहनत मजदूरी करते थे और महिलाओं की दिनचर्या चूल्हा-चौका करने में ही बीत जाता था। लेकिन अब माहौल बदल गया है। अब महिलाएं स्वावलंबी बनने की राह पर निकल पड़ी हैं। महिलाएं अब मशरूम की खेती कर अपनी किस्मत संवार रही हैं।

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महिलाओं की इस पहल से अब उनके घरों की आर्थिक दशा भी बदलने लगी है। पहले रोजी रोटी के लिए जद्दोजहद करने वाले घरों में अब खुशियां दस्तक दे रही हैं। स्वयं सहायता समूह की सदस्‍य वीना ठाकुर ने बताया कृषि विज्ञान केंद्र की सहायता से हमने मशरूम उत्पादन के लिए प्रशिक्षण लिया। अब समूह की महिलाएं लाखों रुपये आय अर्जित कर रही हैं।

स्वयं सहायता समूह बनाकर गांव की अन्य महिलाओं को जोड़ा और मशरूम की खेती के लिए प्रशिक्षण लिया। इसके बाद बाजार में भूसा खरीदा और बनाने की विधि को अपनाया। इसके बाद घर पर इसे तैयार किया। शुरू में काफी परेशानी का सामना किया। लेकिन धीरे धीरे सारी विधियां सीखीं और अब वर्ष में चार फसलें लेती हैं। इनकी डिमांड बहुत अधिक है और हमें अच्छा रोजगार भी मिल गया है। इसमें हम लोग दो तरह के मशरूम तैयार करती है, जिसमें डिंगरी और बटन मशरूम शामिल हैं।

वर्ष 2018 में मिला महाऋषि वाल्मीकि पुरस्कार

मशरूम उत्पादन के लिए हमरे समूह के लिए वर्ष 2018 में वाल्मीकि पुरस्कार भी मिल चुका है। इसके बाद लगातार मशरूम का उत्पादन करती हैं। अब इससे हम लोग अच्छी आय अर्जित करती है और आज आत्‍मनिर्भर बन रही हैं। इसके बाद समय समय पर हमारे स्वयं सहायता समूह को कई पुरस्कार मिले हैं और हम आज भी कृषि विज्ञान केंद्र से जुड़ी हैं।

आंवले की चटनी, कुल्लू के सिडडू ने की आर्थिकी मजबूत

मंडी जिला के पनारसा में स्वयं सहायता समूह की महिला विद्या ठाकुर ने बताया कि वह आंवले की चटनी, आचार, आदि बनाकर सभी महिलाएं आत्म निर्भर बनी है। उन्होंने बताया कि हम लोग पांच महिलाएं मंडी जिला में आती थी तो हमने फोन कर कृषि विज्ञान केंद्र में जुड़ने के लिए फोन किया। इसके बाद हमने यहां पर प्रशिक्षण लिया और आचार चटनी बनाकर हम लोग आत्म निर्भर बनी। इसके बाद कुल्लू के सिड्डू को बनाने की ललक जगी। इसकी विधि सिखी शुरू में घर पर बनाए तो अच्छे नहीं बने परिवार वालों ने कहा कि यह कुल्लू वाले ही बना सकते हैं धीरे धीरे प्रयास किया तो आज तीन लाख रुपये के सिडडू बेच चुकी हूं। हमारे समूह के लिए मंडी में सेरी मैदान में सप्ताह में दो दिन शुक्रवार और शनिवार को बैठने की जगह प्रशासन द्वारा दी गई है।

प्रभारी कृषि विज्ञान केंद्र बजौरा केसी शर्मा का कहना है कुल्लू जिला में कई स्वयं सहायता समूह हैं, जिन्हें कृषि विज्ञान केंद्र बजौरा प्रशिक्षण प्रदान करता है और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रेरित भी कर रहा है। जिलेभर के सव्यं सहायता समूह की महिलाओं की आर्थिकी भी इससे सुदृढ़ होती है और उन्हें दूसरों पर निर्भर भी नहीं रहना पड़ता है।


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