पौंग बांध का जलस्तर खतरे के निशान से महज एक फीट दूर
पौंग बांध का जलस्तर स्तर 13
संवाद सूत्र, फतेहपुर : पौंग बांध का जलस्तर 1388.32 फीट पहुंच गया है। ऊपरी क्षेत्रों से पानी कम आने व बारिश के पूर्वानुमान को देखते हुए बांध से पानी छोड़ने के संबंध में मंगलवार को बीबीएमबी अधिकारियों ने समीक्षा बैठक की। भाखड़ा ब्यास पौंग बांध प्रबंधन ने कहा कि डैम का जलस्तर निगरानी में है। प्रबंधन ने निर्णय लिया है कि अब (पावर हाउस मशीनों को छोड़कर) बांध से पानी 26 सितंबर को छोड़ा जाएगा। एसडीएम फतेहपुर बलवान चंद ने इस बाबत पुष्टि की है। मूसलधार बारिश के कारण डैम में पानी की आमद बढ़ने पर पहले बीबीएमबी ने मंगलवार को 49000 क्यूसिक पानी दोपहर बाद तीन बजे छोड़ने की बात कही थी पर मौसम साफ रहने व पानी की आमद घटने से इस संबंध में कोई निर्णय नहीं लिया। मंगलवार को उपायुक्त होशियारपुर ईशा कालिया ने पौंग डैम का दौरा कर बीबीएमबी चीफ सुरेश माथुर से पानी की स्थिति के बारे में जानकारी हासिल की।
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1430 फीट है जल भंडारण क्षमता
पौंग बांध में जल भंडारण की क्षमता 1430 फीट है पर बीबीएमबी ने 1390 फीट पर पानी पहुंचने को खतरे का निशान माना है। बीबीएमबी 1410 फीट तक जल भंडारण कर सकता है और उसके बाद बांध से पानी छोड़ने से बांध से सटे निचले इलाकों के लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अक्सर बीबीएमबी 1390 से 1395 फीट पर पानी पहुंचने पर फ्लड गेट खोल देता है। इस समय छह टरबाइनें बिजली उत्पादन कर रही हैं और छह ही गेट पानी छोड़ने के लिए बनाए गए हैं।
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मंड क्षेत्र को होता है नुकसान
पौंग बांध से ज्यादा पानी छोड़ने से मंड क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित होता है। इससे मंड के बहादपुर, इंदौरा, बेला ठाकरा, बेला लुधियाचा व रियाली पंचायत के गांव जलमग्न हो जाते हैं। इन गांवों के घरों में पानी जाने के साथ खेती भी प्रभावित होती है। हिमाचल के बाद पंजाब के कई क्षेत्रों में भी पानी आफत लाता है।
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1978 में 1405 फीट हुआ था जलस्तर
पौंग बांध में पहली बार 1978 में जलस्तर 1405 फीट पहुंचा था। इसके बाद 1988 में 1404 फीट तक पानी का लेवल पहुंच गया था और उस समय भी पौंग डैम के फ्लड गेट खोले थे। 1988 में छोडे़ गए पानी ने इतनी तबाही मचाई थी कि लोगों को जान बचाने के लिए पेड़ों का सहारा लेना पड़ा है। प्रशासन ने हेलीकॉप्टर की मदद से लोगों को सुरक्षित जगह पहुंचाया था। लोगों की फसलें पूरी तरह से तबाह हो गई थीं। इसके बाद 2008 व 2013 में भी छोड़े गए पानी ने खूब कहर बरपाया था।