शिमला की यह महिला टैक्सी चलाकर दौड़ा रही जिंदगी की गाड़ी
Shimla Taxi Driver Meenakshi जिंदगी में समस्याओं से जूझना और उनसे पार पाने से ही सफलता की इबारत लिखी जाती है। ऐसी ही सफलता पाई है शिमला की पहली महिला टैक्सी चालक मीनाक्षी ने। बेटियों की पढ़ाई अच्छे स्कूल में जारी रहे इसके लिए टैक्सी चलाने का फैसला लिया।
शिमला, जागरण संवाददाता। Shimla Taxi Driver Meenakshi, टैक्सी या कोई अन्य वाहन चलाना अब पुरुषों का ही एकाधिकार नहीं रह गया है। राजधानी के उपनगर पंथाघाटी के दोची गांव की रहने वाली मीनाक्षी ने अपने दम पर साबित कर दिया है। वह राजधानी ही नहीं बल्कि देश की राजधानी दिल्ली तक टैक्सी की सेवा दे सकती है।
परिवार चलाने के लिए कोरोना काल से पहले टैक्सी चलाकर स्कूली बच्चों को स्कूल छोडऩे का काम शुरू किया। कोरोना के बाद स्कूल बंद हो गए। बच्चों को काम भी खत्म हो गया। गाड़ी की किस्त के साथ बच्चों का खर्च भी परेशान करने लगा। इसके बाद मीनाक्षी ने अपना काम टैक्सी चालक के रूप में चलाने का फैसला लिया। शुरू में थोड़ी हिचकिचाहट हुई, लेकिन अब सामान्य रूप से लोगों को सेवाएं दे रही हंै।
मीनाक्षी ने बताया कि वाहन तो वह 2004 से चलाती है, लेकिन कामर्शियल तौर पर पिछले चार साल से यह काम शुरू किया है। पुरुषों के काम में महिला को स्वीकार करना सभी के लिए आसान नहीं था, पहले लोगों ने सहयोग नहीं किया। सवारियां भी पूछने के बाद दूसरे वाहन में चले जाती थी, लेकिन अब हौसले के साथ लोगों का भरोसा भी जीत लिया है। इसके दम पर शिमला ही नहीं बल्कि चंडीगढ़, दिल्ली तक टैक्सी की सेवाएं दे रही हैं। शिमला की सड़कों पर दिन ही नहीं बल्कि रात को भी महिला टैक्सी चालक सेवाएं प्रदान कर रही हैं।
शुरुआत में झेलनी पड़ी दिक्कतें
राजधानी में पहली महिला टैक्सी चालक मीनाक्षी ने टैक्सी चालक का काम शुरू किया है। इस काम को करने के लिए उन्हें पहले बहुत सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। मीनाक्षी ने बताया कि अब वह बुरा समय खत्म हो गया है। गर्व से काम कर रही हैं। हिमाचल में महिलाएं सुरक्षित हैं तो टैक्सी चलाने में ज्यादा डर नहीं लगता है। मीनाक्षी ने कहा कि वह चार साल से टैक्सी चलाने का काम कर रही हैं। पहले वह अपनी छोटी कार से बच्चों को स्कूल छोड़ा करती थी।
महिला चालक के तौर पर यूनियनें करती थी दरकिनार
महिला होने के कारण टैक्सी यूनियन के सदस्य उन्हें स्वीकार नहीं करते थे। चालकों से लेकर मालिकों तक की बहुत बातें सुननी पड़ीं। अब स्थिति यह है कि दूसरे चालकों से भी सहयोग मिल रहा है। मीनाक्षी का कहना है कि बचपन से ही उनका सपना था कि अपना कुछ करना है। इसी जुनून के दम पर दिक्कतें खुद ही रास्ते बनते रहे।