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टांकरी के बाद पाबूची लिपि का फांट तैयार, सांभ संस्‍था के बाद कुल्‍लू के साहित्‍यकार के प्रयास लाए रंग

Pabuchi Lipi कांगड़ा की सांभ संस्था ने 2016 में पहाड़ी भाषा सहित उत्तर भारत की कई भाषाओं को लिखने के लिए प्रयोग की जाने वाली टांकरी लिपि का फांट बनाया था। अब शारदा लिपि का ही प्रारूप मानी जाने वाले पाबूची लिपि का फांट तैयार किया गया है।

By Neeraj Kumar AzadEdited By: Published: Sun, 12 Dec 2021 07:10 AM (IST)Updated: Sun, 12 Dec 2021 08:04 AM (IST)
टांकरी के बाद पाबूची लिपि का फांट तैयार, सांभ संस्‍था के बाद कुल्‍लू के साहित्‍यकार के प्रयास लाए रंग
अंडेमान निकोबार के शोधार्थी विश्वजीत मंडल ने तैयार किया फांट। जागरण

कमलेश वर्मा, कुल्लू। Pabuchi Lipi, अस्तित्व खो रही लिपियों को सहेजने की दिशा में एक कदम और बढ़ गया है। कांगड़ा की सांभ संस्था ने 2016 में पहाड़ी भाषा सहित उत्तर भारत की कई भाषाओं को लिखने के लिए प्रयोग की जाने वाली टांकरी लिपि का फांट बनाया था। अब शारदा लिपि का ही प्रारूप मानी जाने वाले पाबूची लिपि का फांट तैयार किया गया है। देश-विदेशों में आनलाइन सेमिनार के माध्यम से टांकरी लिपि की जानकारी देने वाले कुल्लू जिले के साहित्यकार यतिन शर्मा के प्रयासों और अंडेमान निकोबार के शोधार्थी विश्वजीत मंडल के सहयोग से यह कार्य संभव हो पाया है।

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विभिन्न प्राचीन लिपियों के संरक्षण के लिए कार्य कर रहे विश्वजीत मंडल ने वैदिक, ज्योतिष, कर्मकांड व वास्तुशास्त्र के लिए प्रयोग की जाने वाली प्राचीन पाबूची लिपि के फांट को डिजिटल रूप दे दिया है। विश्वजीत अभी तक देशभर की विभिन्न लिपियों पर कार्य कर रहे हैं। इनमें मिसोई लिपि, कामरूपी लिपि, मरूबाजरी लिपि सहित विभिन्न लिपियां हैं। उनकी सांचा की सभी लिपियों के फांट बनाने की इच्छा है। लिहाजा, अब कंप्यूटर पर भी पाबूची व टांकरी लिपियों का इस्तेमाल कर सकेंगे।

मान्यता के अनुसार 10वीं शताब्दी के आसपास कश्मीरी पंडितों के अन्य स्थानों के साथ सिरमौर में बसने के बाद से तो कश्मीरी में प्रयोग होने वाली शारदा लिपि का प्रारूप पाबूची लिपि है, जो कि पाबूच समुदाय द्वारा इस्तेमाल होती है। साहित्यकार यतिन शर्मा के मुताबिक पाबूची विद्या को संरक्षित करने के लिए सरकार प्रयास नहीं कर रही है। सीमित वित्तीय साधन होने के कारण इस विद्या को प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा है। इसका संरक्षण किया जाए तो लोक साहित्य, लोकशास्त्र, ज्योतिष व संस्कृत के विद्वानों के लिए यह सहायक सिद्ध होगी। साथ ही स्थानीक प्राच्य विधाओं को समझने में भी आसानी होगी।

लुप्त होने की कगार पर लिपियां

समय के साथ टांकरी व पाबूची लिपियों का प्रयोग कम होता गया। दोनों लिपियां लुप्त होने की कगार पर पहुंच गई हैं। इनको जिंदा रखने के लिए प्रयासरत यतिन हिमाचल सहित देश-विदेश के सैकड़ों लोगों को टांकरी का ज्ञान दे चुके हैं। यतिन सिर्फ टांकरी का ही ज्ञान नहीं रखते बल्कि वह शारदा लिपि की भी अच्छी समझ रखते हैं। भट्टाक्षरी व पाबूची लिपियां भी सीख रहे हैं। देशभर के कई लोग आज भी इन पर कार्य कर रहे हैं।

लुप्त हो रही लिपियों के संरक्षण करने के उद्देश्य से टांकरी व पाबूची लिपि को डिजिटल रूप दिया गया है। भविष्य में इन्हीं फांट को आधार बनाकर अन्य लोग इन लिपियों पर आगे और कार्य कर सकते हैं। युवा पीढ़ी भी इसके बारे में जान सकेगी। इसका इस्तेमाल आसानी से कर पाएगी। फांट तैयार होने से अब लुप्तप्राय लिपियों के संरक्षण में आसानी होगी। -यतिन शर्मा, साहित्यकार कुल्लू।


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