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29 साल से हर वर्ष 0.209 डिग्री सेल्सियस बढ़ रहा तापमान

राज्य जलवायु परिवर्तन केंद्र के तीन विज्ञानियों ने 29 वर्ष के मौसम से संबंधित आंकड़ों का विश्लेषण किया है। उन्होंने इस आधार पर बताया कि हिमाचल प्रदेश में फल आने की अवस्था के दौरान 29 साल से हर वर्ष तापमान में 0.209 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो रही है।

By Neeraj Kumar AzadEdited By: Published: Tue, 17 May 2022 11:59 PM (IST)Updated: Tue, 17 May 2022 11:59 PM (IST)
29 साल से हर वर्ष 0.209 डिग्री सेल्सियस बढ़ रहा तापमान
गर्मी बढ़ने के कारण हिमाचल में बर्फ जल्द पिघलने लगी है। जागरण आर्काइव

यादवेन्द्र शर्मा, शिमला। धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है। इससे स्नोलाइन घटने के साथ फसलों का उत्पादन प्रभावित हुआ है। राज्य जलवायु परिवर्तन केंद्र के तीन विज्ञानियों ने 29 वर्ष के मौसम से संबंधित आंकड़ों का विश्लेषण किया है। उन्होंने इस आधार पर बताया कि हिमाचल प्रदेश में फल आने की अवस्था के दौरान 29 साल से हर वर्ष तापमान में 0.209 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो रही है। जलवायु परिवर्तन से फलों के उत्पादन पर होने वाले असर पर विस्तृत अध्ययन किया है। फलों के उत्पादन पर प्रभाव को जानने के लिए चार जलवायु परिवर्तन मापदंड जैसे अधिकतम, न्यूनतम, प्रतिदिन और वार्षिक बारिश का विश्लेषण किया गया। इसमें अधिकतम व न्यूनतम तापमान और वार्षिक बारिश में विशेष बदलाव नहीं दिखा। यह सामने आया कि प्रदेश में नींबू प्रजाति (साइट्रस) फलों का उत्पादन बढ़ा है। हालांकि अन्य फलों के उत्पादन में विशेष बदलाव नहीं हुआ है। माल्टा व मौसमी जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे अधिक संवेदनशील हैं और इन पर सबसे ज्यादा असर होता है। तापमान बढऩे के साथ माल्टा व मौसमी की फसल के उत्पादन में वृद्धि हुई है।

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माल्टा, कागजी नींबू व गलगल का उत्पादन बढ़ा

राज्य जलवायु परिवर्तन केंद्र के विज्ञानियों डा. प्रियंका शर्मा, हरीश भारती व अदिति के किए अध्ययन के अनुसार प्रदेश में 1990 से 2019 तक माल्टा, कागजी नींबू व गलगल के उत्पादन में वृद्धि हुई है। वहीं सेब, बेर, संतरा, किन्नू, आम और अमरूद की उत्पादकता में विशेष परिवर्तन नहीं आया है।

फल उत्पादन की तीन अवस्थाओं का विश्लेषण

जलवायु परिवर्तन का फलों के उत्पादन पर असर जानने के लिए तीन अवस्था पूर्वफूल, फूल, और फल सेटिंग का विश्लेषण किया गया। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव माल्टा, मौसमी, कागजी नींबू, अमरूद व गलगल पर पूर्व फूल के दौरान 48.2 प्रतिशत, फूल आने के दौरान 44.4 प्रतिशत और फल सेटिंग के दौरान 31.6 प्रतिशत देखने को मिला।

जलवायु परिवर्तन केंद्र के तीन विज्ञानियों ने शोध किया है। इसमें हर वर्ष तापमान के बढऩे के साथ कुछ फसलों के उत्पादन में वृद्धि का असर दिखा है।

-डा. एसएस रंधावा, प्रमुख विज्ञानी, राज्य जलवायु परिवर्तन केंद्र

फल,उत्पादन में वृद्धि

  • माल्टा,0.145
  • लीची,0.105
  • कागजी नींबू,0.50
  • गलगल,0.49
  • आड़ू,0.039
  • खुमानी,0.041
  • नाशपाती,0.038

    (फल उत्पादन में वृद्धि 1990 से 2019 तक टन प्रति हेक्टेयर)


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