आधुनिकता पी गई कांगड़ा चाय
kangra valley tea farming, यूरोप के बाजारों में डेढ सदी पहले ब्रांड बनकर धूम मचाने वाली कांगड़ा चाय अब धीरे-धीरे पतन की ओर अग्रसर हो रही है।
पालमपुर, जेएनएन। यूरोप के बाजार में डेढ़ सदी पहले ब्रांड बनकर धूम मचाने वाली कांगड़ा चाय पर आधुनिकता भारी पड़ी है। अब चाय धीरे-धीरे पतन की ओर अग्रसर है। बेशक केंद्र सरकार के उपक्रम टी बोर्ड ऑफ इंडिया ने कई तरह के अनुदान और योजनाएं चलाकर चाय उत्पादकों को लुभाने के प्रयास किए हैं लेकिन बागानों का आकार बढ़ने की बजाए लगातार घटता जा रहा है।
1850 में पालमपुर क्षेत्र में करीब 4500 हेक्टेयर में शुरू हुई चाय की खेती अब 2000 हेक्टेयर में सिमट चुकी है। सही मायने में अब चाय की खेती से अधिकतर लोग मुंह मोड़ चुके हैं और जो कुछ बचे हैं, वे भी धीरे-धीरे इस कार्य से परहेज कर रहे हैं। अब लोग आधुनिकता की चकाचौंध में चाय बागानों की भूमि का इस्तेमाल व्यावसायिक कार्यों के लिए कर रहे हैं। ताजगी और जायके के बल पर जिस चाय ने गुणवत्ता के आधार पर लंदन में 1870 में गोल्ड मेडल जीता था वह अब मिटने की कगार पर पहुंच गई है।
दरअसल कांगड़ा चाय का पतन 1905 में आए भूकंप के बाद शुरू हो गया था। भूकंप के बाद अंग्रेजों ने चाय व्यवसाय समेटकर स्थानीय लोगों के हवाले कर दिया था। प्रथम विश्व युद्ध की मार भी चाय पर भारी पड़ी थी क्योंकि सारे कुशल कारीगर सेना में भर्ती हो गए और बागानों में नए लोगों के आने से इसकी गुणवत्ता पर असर पड़ा। आजादी के बाद अंग्रेजों के जाने के बाद यूरोप के लिए होने वाले निर्यात में काफी गिरावट आई। देश के बंटवारे के बाद यारकंद का रास्ता बंद होने से अफगानिस्तान की चाय आने पर भी काफी असर पड़ा।
1980 में सोवियत संघ के विघटन से रही सही कसर भी पूरी हो गई। इस कारण चाय का कारोबार करने वालों को परेशानियां बढ़ गई। अब धीरे-धीरे छोटे चाय उत्पादकों ने बगीचे उखाड़कर अन्य खेती शुरू कर दी है। उधर बड़े चाय बागान मालिकों के बच्चे अच्छी शिक्षा ग्रहण करने के लिए विदेश या देश के अन्य भागों में चले गए हैं। बिना देखभाल और महंगी लेबर के कारण बागान उजाड़ रहे हैं। पिछले 25 साल में अधिकतर चाय बागान बिककर कंकरीट के जंगलों में तबदील हो गए हैं।
उधर, टी बोर्ड ऑफ इंडिया के पालमपुर कार्यालय के उपनिदेशक अनुपम दास ने बताया कि सरकार चाय उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चला रही हैं। चाय उत्पादकों को नकद सहायता राशि से लेकर औजार, मशीनें, कीटनाशक, खाद और अन्य अनुदान दिए जा रहे हैं।