सरहद ही नहीं खेत में भी दिखा इस फौजी का जज्बा
colonel Rana Sucess farmer, कर्नल राणा ने अपनी बंजर जमीनों की मिट्टी पर मेहनत का पसीना बिखरा यहां जैविक हल्दी रूपी सोने को पैदा की है।
जेएनएन, देहरा। सेना में देशसेवा के बाद अब सेवानिवृत्त कर्नल मेहनत के दम पर चंगर क्षेत्र की बंजर भूमि को तर कर रहे हैं। मेहनत के बलबूते ही उन्होंने हल्दी की खेती कर प्रदेशभर में नाम कमाया है और युवा पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक भी बने हैं। यहां बात हो रही है देहरा हलके की घीण पंचायत के निवासी कर्नल पीसी राणा। खुद पैदा की गई हल्दी का कांगड़ा वैली टर्मरिक के नाम से पेटेंट करवाकर वह प्रदेश के पहले टर्मरिक मैन बने हैं। कर्नल राणा की हल्दी जैविक है और इसका प्रमाणपत्र सरकार ने जारी किया है।
साथ ही इस हल्दी में स्वास्थ्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण कुकुमिन ऑयल की मात्रा भी साढे़ पांच फीसद है। इंडोनेशिया की हल्दी में कुकुमिन ऑयल की मात्रा नौ फीसद है और अंतरराष्ट्रीय बाजार में अति उत्तम मानी जाती है। अब कर्नल राणा मेघा प्रजाति की हल्दी का बीज तैयार कर रहे हैं। बकौल राणा, सेवानिवृत्त के बाद घर पहुंचे तो बंजर भूमि को देखकर दुख हुआ। ग्रामीणों से पता चला कि खेतीबाड़ी को बेसहारा पशु और बंदर नष्ट कर देते हैं। शुरुआत में उन्होंने हल्दी की खेती के लिए प्रयास शुरू किए। उन्होंने इस बाबत आंध्र प्रदेश के प्रगतिशील किसान चंद्रशेखर से मिलकर जानकारी हासिल की। कर्नल पीसी राणा ने देखा कि आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु में किसान हल्दी की खेती में रासायनिक खाद का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन उनका इरादा ऑर्गेनिक हल्दी की खेतीबाड़ी करना था। उन्होंने आंध्रप्रदेश में ही प्रगतिशील किसान चंद्रशेखर को ऑर्गेनिक बीज तैयार करने का प्रोजेक्ट दिया और ऑर्गेनिक बीज को तैयार करने में दो साल का समय लगा। इसका सारा खर्च कर्नल ने खुद वहन किया। शुरुआत में उन्होंने 15 क्विंटल ऑर्गेनिक बीज लेकर अपनी जमीन में हल्दी की खेती की शुरुआत की। इस समय वह करीब तीन सौ कनाल बंजर भूमि पर हल्दी की खेती कर रहे हैं।
उन्होंने पिछले वर्ष करीब एक टन हल्दी बीज की बिजाई की थी और सात महीने में 24 टन हल्दी की पैदावार की है और इसकी कीमत 24 लाख रुपये है। बकौल राणा, उनकी हल्दी पूरी तरह से ऑर्गेनिक है और लैब परीक्षण के बाद ग्लोबल सर्टिफिकेशन सोसायटी से ऑर्गेनिक हल्दी का प्रमाणपत्र भी मिल गया है। अब कर्नल राणा अन्य किसानों को भी इस खेतीबाड़ी के लिए प्रेरित कर रहे हैं। उनका कहना है कि कांगड़ा, हमीरपुर, बिलासपुर, मंडी और ऊना जिले हल्दी की खेतीबाड़ी के लिए उपयुक्त है।