सैकड़ों पाक सैनिकों पर भारी पड़े थे मेजर सोमनाथ
major somath sharma, परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा ने अकेले पाकिस्तान के सैकड़ों सैनिकों को मार गिराया था।
पालमपुर, कुलदीप राणा। मेजर सोमनाथ शर्मा! एक ऐसा नाम जो रणभूमि में शूरवीरता का ऐसा इतिहास लिख गया कि उसके कारनामे युवा पीढ़ी में जोश और कुर्बानी का जज्बा जगाने के लिए काफी है। देश के प्रथम परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा के आखिरी शब्दे थे, 'दुश्मन हमारे से सिर्फ 50 गज के फासले पर है.. हमारी तादाद न के बराबर है और हम जबरदस्त गोलाबारी से गिरे हैं..मगर एक इंच भी पीछे नहीं हटूंगा, जब तक हमारे पास आखिरी गोली और आखिरी फौजी है।' मेजर सोमनाथ शर्मा कुमाऊं रेजिमेंट की चौथी बटालियन की डेल्टा कंपनी में बतौर कमांडर तैनात थे।
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के पालमपुर विधानसभा क्षेत्र के डाढ गांव में 31 जनवरी,1923 को मेजर जनरल एएन शर्मा के घर जन्मे मेजर सोमनाथ शर्मा की प्रारंभिक शिक्षा नैनीताल के शैखुंड कॉलेज में हुई थी। सैन्य पृष्ठभूमि होने के कारण वीरता, साहस एवं बलिदान के गुण विरासत में मिले थे। पिता के अलावा मेजर सोमनाथ के मामा लेफ्टिनेंट किशन दत्त वासुदेव 4/19 हैदराबादी बटालियन में थे तथा 1942 में जापानियों से लड़ते हुए शहीद हुए थे। भाई ले. जनरल सुरेंद्र नाथ शर्मा व सेना अध्यक्ष जनरल वीएन शर्मा तथा बहन कमला तिवारी भी सेना में मेडिकल डॉक्टर रही हैं। कॉलेज की शिक्षा के बाद मेजर सोमनाथ ने प्रिंस ऑफ वेल्स रॉयल इंडियन मिलिट्री कुमाऊं रेजिमेंट की चौथी बटालियन से सैन्य सेवाएं शुरू की थीं। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में भी मोर्चा संभाला था और खूब नाम कमाया था।
26 अक्टूबर, 1947 को जब मेजर सोमनाथ की कंपनी को कश्मीर जाने का आदेश मिला तो उनके बाएं हाथ की हड्डी टूटी हुई थी व बाजू में प्लास्टर चढ़ा था पर उन्होंने जाने की जिद नहीं छोड़ी थी। जब उन्हें रोकने की चेष्टा साथियों ने की तो उनका एक ही जवाब था कि सेना परंपरा के अनुसार जब सिपाही युद्ध में जाता है तो अधिकारी पीछे नहीं रहते हैं। मेजर सोमनाथ के साथ इससे ज्यादा कोई अन्य बात महत्वपूर्ण नहीं थी। श्रीनगर के दक्षिण पश्चिम में युद्ध भूमि से करीब 15 किलोमीटर दूर बड़गांव में 3 नवंबर, 1947 को दुश्मनों के जत्थे से लोहा लेते हुए मेजर सोमनाथ शर्मा ने शहादत पाई थी। इससे पहले उनके नेतृत्व में 100 सैनिकों ने बड़गांव में उच्च स्थान पर चौकी स्थापित कर ली थी। उन पर एक साथ 700 पाक सैनिकों ने हमला बोला था।
मेजर सोमनाथ ने लगातार छह घंटे तक सैनिकों को अभिलंब और अविराम लड़ने के लिए उत्साहित किया तथा नतीजा अपने हक में कर लिया था। श्रीनगर हवाई अड्डे की सुरक्षा को देखते हुए उन्होंने जवानों को भारतीय सेना के पहुंचने तक लड़ने के लिए उत्साहित किया था। साथ ही बाजू में प्लास्टर चढ़ा होने के बावजूद उन्होंने घायल सैनिकों की मैगजीन में गोला बारूद भरकर युद्ध के लिए प्रेरित किया था लेकिन भाग्य की विडंबना देखिए कि दुश्मन का गोला मेजर सोमनाथ शर्मा के पास रखे गोला बारूद के ढेर में गिर गया और इस कारण इस महान योद्धा ने सदा के लिए भारत माता की गोद में शरण ले ली थी।
अद्वितीय एवं अनुकरणीय वीरता, साहस एवं कुशल नेतृत्व के लिए मेजर सोमनाथ शर्मा को स्वतंत्र भारत के सर्वोच्च वीरता पदक परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। मेजर सोमनाथ शर्मा की प्रतिमा नगर परिषद कार्यालय पालमपुर के बाहर मुख्य मार्ग पर स्थापित की गई है।