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किसी क्षेत्र को घेर कर बैठना, शहरों की गति को रोकना; किसी साल का अपराध नहीं है, लोगों का है

प्रकृति को स्वयं को निखारने का समय मिला। बहुत छोटी सी बात यह कि हाथ धोने जैसी आसान क्रिया से हाथ धो बैठा समाज पुन अपने हाथों की ओर लौटा। प्रो. इग्नाज का हाथ धोने का सबक 2020 में जिंदा हो उठा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 31 Dec 2020 10:02 AM (IST)Updated: Thu, 31 Dec 2020 10:02 AM (IST)
किसी क्षेत्र को घेर कर बैठना, शहरों की गति को रोकना; किसी साल का अपराध नहीं है, लोगों का है
बीते साल में जो हुआ, वह सिखा कर गया है।

कांगड़ा, नवनीत शर्मा। कैसी होती है नए साल की सूरत? देखने में कैसा लगता है? अब जब 2020 समाप्त हो रहा है, ये प्रश्न इसलिए उठ रहे हैं, क्योंकि बीते साल को बुरा साल बताने वाली कुछ आवाजें सुनाई दी थीं। महामारी के कारण अगर किसी साल की चादर पर छींटें पड़ जाएं तो उसका अर्थ यह तो नहीं हो जाता कि साल खराब था।

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अज्म या हौसला रखें मजबूत

साल कोई बुरा नहीं होता।

जहां तक देश की व्यवस्था को बंधक बनाने और सार्वजनिक ढांचे को नुकसान पहुंचाने की बात है, यह कोई पुराना या नया साल नहीं करता, कुछ लोग करते हैं। यह कोई दिन या माह नहीं करते, कुछ लोगों का उन्माद करता है। किसी क्षेत्र को घेर कर बैठना, शहरों की गति को रोकना, संवाद से हटना किसी साल का अपराध नहीं है, लोगों का है।

इसके अलावा बीते साल में जो हुआ, वह सिखा कर गया है। बेशक जनजीवन पर आपदा का प्रभाव व्यापक रहा, लेकिन जिंदगी वह है जो मौत के आखिरी जजीरे तक तैरना सिखाती है। बेशक संक्रामक रोग के कारण बाजू पर चोर लिखने जैसे प्रकरण भी सामने आए यानी संक्रमित लोगों को हेय दृष्टि से देखा गया, लेकिन संवेदना और मनुष्यता की किरणों इतनी तेज होती हैं कि कोई बादल उनके सामने टिकता नहीं। एक दूसरे की मदद में हाथ उठे। आत्मनिर्भरता जैसा शब्द साकार हुआ। आसानी की आदत की शिकार सोच कुछ नया करने की ओर प्रवृत्त हुई।

हिमाचल प्रदेश में निर्माण की गति बढ़ गई। जिन जर्जर मकानों में सन्नाटा चिंघाड़ता था, जहां सुई के गिरने की आहट भी सुनी जा सकती थी, वे गुलजार हुए। जड़ों की ओर लौटे लोग। जिन खेतों में बेसहारा पशुओं और बंदरों का हवाला देकर हल नहीं चलता था, खुरपी सक्रिय नहीं होती थी, वहां मौसमी सब्जियों ने हरियाली लिखी। वे रकबे भी चहकने लगे, जहां कुछ नहीं होता था। मानवीय रिश्तों के ताप ने नया सवेरा देखा, जब उड़ानों में भर कर अपनी मिट्टी और अपनों की तरफ लौटे लोग।

हिमाचल प्रदेश ने तो अटल रोहतांग सुरंग का बेहद पुराना सपना साकार होते देखा। कोरोना ने हमें जड़ों की ओर भेजा, ज्ञान दिया और विज्ञान को काम पर लगाया। नया साल भी अच्छा ही होगा अगर खुद पर भरोसा न टूटे। साल नया या पुराना नहीं होता, सोच अवश्य होती है। जहां तक वक्त की बात है, वह हर पल नया होता है। उसके लिए होश अनिवार्य शर्त है वरना इब्न-ए-इंशा का कहा याद आता है: इक साल गया इक साल नया है आने को, वक्त का अब भी होश नहीं दीवाने को।

शांता कुमार व संतोष शैलजा की पुस्तकों का लोकार्पण करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। चित्र सौजन्य : परिजन

संतोष शैलजा का जाना : अमृतसर के पंजाबी परिवार में जन्मी, मां की मृत्यु के कारण मौसियों के हाथों पली-बढ़ी एक लड़की एमए, बीएड तक शिक्षा प्राप्त कर दिल्ली में पढ़ाने लगी। वहां शांता कुमार भी पढ़ाते थे। शादी के बाद हिमाचल आईं तो इस आशंका के विपरीत, कि एक पंजाबी बहू हिमाचल प्रदेश के देहात में कैसे रमेगी, वह पूरी तरह रम गईं। शांता कुमार जब आपातकाल में 19 महीने जेल में रहे, तब उन्होंने अध्यापन करते हुए चार बच्चों को मां के साथ ही पिता का प्यार भी दिया। हिंदी में उपन्यास, कहानी, कविता, लोक साहित्य के अलावा अंग्रेजी साहित्य में भी उनका हस्तक्षेप था। उनके उपन्यास कनकछड़ी को पढ़ना संतोष शैलजा के जीवन को देखने जैसा है। दो बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री और एक बार केंद्रीय मंत्री रहे शांता कुमार की पत्नी यानी संतोष शैलजा को कोरोना ने छीन लिया। उम्र 83 साल थी।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज टांडा कांगड़ा में दाखिल थीं। हरियाणा के रुचिका प्रकरण में शांता का तत्कालीन सरकार को जोरदार पत्र हो, 1980 में मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देकर हंसते-हंसते सिनेमा देखने जाना हो, हिमाचल प्रदेश के सरकारी कार्यालयों में हंिदूी को रातोंरात लागू करने का फैसला हो, परिवार से किसी को राजनीति में नहीं आने देने का फैसला हो, इस सब में संतोष शैलजा की छाया रही है। दोनों का एक साथ रचा साहित्य अलग है। राजनीति के मामले में तो संतोष शैलजा एक मानदंड के रूप में जानी जाती हैं कि नेताओं की पत्नियों को क्या करना चाहिए और क्या नहीं। इसीलिए वह शांता की ताकत थीं। शांता कुमार भी कोरोना से संक्रमित हैं और उन्हें चंडीगढ़ के एक निजी अस्पताल ले जाया गया है। लगातार योग और प्राणायाम के कारण वह 86 वर्ष की आयु में भी सक्रिय हैं। उम्मीद है कि वह जल्द स्वस्थ होकर लौटेंगे।

[राज्य संपादक, हिमाचल प्रदेश]


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