पिता ने काबिल बनाया तब बनी कोरोना की योद्धा, ड्यूटी में परिवार बाधा नहीं; बढ़ाया हौंसला
स्टाफ नर्स रंजना गिल ने कोरोना के योद्धा के रूप में डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कोरोना वार्ड में काम किया।
धर्मशाला, नीरज व्यास। ग्यारह साल के बेटे को घर में अकेले छोड़ बाहर से दरवाजा लॉक किया तो पता नहीं था कि वापस 21 दिन के बाद लौटेंगी। स्टाफ नर्स रंजना गिल ने कोरोना के योद्धा के रूप में डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कोरोना वार्ड में काम किया। कोरोना संबंधित मरीजों को उपचार दिया, उनकी देखभाल की। इस बात से खुश हैं कि पिता स्व. धर्म सिहं गिल ने इस काबिल बना दिया कि इस संकट की घड़ी में देश के लिए खड़ी हो सकी।
वह पांच बहने हैं, जिसमें से तीन स्वास्थ्य सेवाओं में हैं। वह अपने पिता को कोई एेसा सम्मान नहीं दिलवा सकी, जिसके वह हकदार थे। पांच लड़कियों को पढ़ाकर अपने पैरो पर खड़ा किया अौर यह उन्हीं का अाशीर्वाद व परवरिश थी कि इस संकट के समय में वह एक योद्धा के रूप में कोरोना वार्ड में सेवाएं देती रही। अगर पिता ने बेटी समझकर पढ़ाया नहीं होता अौर यूं ही रहने देते तो अाज कोरोना वार्ड में सेवा नहीं दे सकती थी, इसलिए अपने पिता का बहुत सम्मान करती हैं, जिनकी वजह से वह कोरोना यौद्धा के रूप में कार्य कर सकी। जिसके पास भी बेटी या बेटियों का धन हैं वह लड़के व लड़कियों में भेद खत्म कर लड़कियों को भी पढ़ने का मौका दें। पता नहीं किसी अौर रंजना को भी किसी संकट के समय में देश के लिए कार्य करने का मौका मिल जाए।
बेटे को छोड़कर दी कोरोना वार्ड में सेवा
डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज अस्पताल में सेवारत स्टाफ नर्स रंजना गिल अपने बच्चे को घर में छोड़कर कोरोना वार्ड में सेवाएं देती रही। जिस कारण सात दिन की सेवा के बाद 14 दिन घर से अलग क्वारंटाइन में रहना पड़ा। जब वह टांडा में अपनी सेवाएं दे रही थीं, तो वहीं उनके पति दलजीत सिंह भी ड्यूटी पर रक्कड़ धर्मशाला जा रहे थे। घर में उनका अकेला 11 वर्षीय बेटा रहता था और डयूटी से घर आकर पति ही बेेटे को संभालते रहे। 21 दिन तक पति ने ही बेटे को संभाला। लेकिन जब पति ड्यूटी चले जाते तो बेटा घर में अकेला रहा।
करोना वार्ड में सेवा से क्वारंटाइन का वक्त रहा कष्टदायक
रंजना का कहना है कि कोरोना वार्ड में सेवाएं देने के बजाए क्वारंटाइन में रहने का वक्त ज्यादा कष्टदायक रहा। जब वार्ड में सेवा दी तो पीपीई किट पहनकर ड्यूटी दे रहे थे अौर अाठ घंटे तक न तो पानी पी सकते थे अौर न ही वाशरूम जा सकते थे। जबकि क्वारंटाइन के 14 दिन ज्यादा परेशानी कारक रहे, अपने परिवार के लोगों से दूर रहना पड़ा अौर काम भी नहीं था। एेसे में ज्यादा दिक्कत रही। अपने परिवार से 21 दिन दूर रहना सच में कष्टदायक रहा।
सरकार की तरफ से मिला है प्रशस्ति पत्र
कोरोना वार्ड में सेवा देने के लिए स्टाफ नर्स रंजना को सरकार की अोर से प्रशस्ति पत्र भी मिला है। इस प्रशस्ति पत्र को अपने पिता व अपने परिवार को समर्पित करती हैं, जिसकी बजह से वह कोरोना वार्ड में सेवा कर सकी।