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पिता-पुत्र ने कबाड़ में खड़े स्‍कूटर के इंजन से बना दिया ट्रैक्‍टरनुमा हल, पढ़ें पूरी खबर

उपमंडल की ग्राम पंचायत पलौहटा के नेरी गांव निवासी पिता और बेटा की जोड़ी ने कबाड़ को खेतों का औजार बना दिया।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Mon, 07 Oct 2019 11:07 AM (IST)Updated: Mon, 07 Oct 2019 02:31 PM (IST)
पिता-पुत्र ने कबाड़ में खड़े स्‍कूटर के इंजन से बना दिया ट्रैक्‍टरनुमा हल, पढ़ें पूरी खबर
पिता-पुत्र ने कबाड़ में खड़े स्‍कूटर के इंजन से बना दिया ट्रैक्‍टरनुमा हल, पढ़ें पूरी खबर

सुंदरनगर, जेएनएन। उपमंडल की ग्राम पंचायत पलौहटा के नेरी गांव निवासी पिता और बेटा की जोड़ी ने कबाड़ को खेतों का औजार बना दिया। पिता रमेश कुमार और बेटे जितेंद्र वर्मा ने कबाड़ बन चुके बाइक और स्कूटर का प्रयोग करके खेतों में बिजाई करने के लिए ट्रैक्टर बनाया है। इसकी खास बात यह है कि एक लीटर पेट्रोल से दो बीघा जमीन में फसल की बिजाई की जा सकती है। ट्रैक्टरनुमा हल का वजन करीब 55 किलोग्राम है। ट्रैक्टर में पांच हल लगे हुए हैं और इसकी कीमत करीब 20 हजार रुपये है। इसका डिजाइन बिल्कुल साधारण है और साधारण, रिंग व डबल रिंग तीन प्रकार के टायर वर्जन में कहा है।

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खेतों में बिजाई के लिए जब इसे प्रयोग किया जाता है तो यह किसी भी प्रकार का बाइब्रेशन नहीं होती है। रमेश कुमार ने कहा कि अपने कार्य के शुरुआती दौर में यूट्यूब व अपने मैकेनिकल कार्य के ज्ञान का उपयोग कर कबाड़ स्कूटर के इंजन का प्रयोग करके खेतों में हल जोतने वाले ट्रैक्टर में का आडिया मिला। इसके बाद इससे तैयार किया गया। उन्होंने बताया कि इस ट्रैक्टर के सफल होने के बाद भविष्य में बदलाव लाएंगे। ट्रैक्टर में बदलाव कर खेत से कचरा, घास व अन्य खरपतवार की सफाई करने के लिए उपकरण लगाएं जाएंगे। इससे जुताई के साथ-साथ खेत की सफाई भी होगी।

उनका चार सदस्यों का आइआरडीपी परिवार है और उनकी बहू पिछले चार सालों से किडनी के रोग से जूझ रही है। बहू का हफ्ते में दो बार डाइलिसिस करवाने में बहुत समस्या का सामना करना पड़ रहा है। आजीविका कमाने के लिए वह दो वर्ष विदेश में भी रोजगार की तलाश कर चुके है, लेकिन असफलता हाथ नहीं लग पाई। निजी क्षेत्र में मैकेनिकल का कार्य करने में सफलता नहीं मिली। इसके बाद इस तरफ ध्यान गया और बाइक-स्कूटर के पुराने इंजन से हल जोतने वाला ट्रैक्टर बनाने की शुरुआत की। इससे बनाने में परेशानी भी अधिक रही, लेकिन बार-बार प्रयास करने के बाद सफलता हाथ मिल गई।


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