संवेदनहीन हो रहा समाज : शांता कुमार
शांता कुमार ने सोमवार को हिमालय जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (सीएसआइआर-आइएचबीटी) पालमपुर में त्रिगर्त कांगड़ा घाटी उत्सव कीकाव्य संध्या में बुद्धिजीवियों को संबोधित किया।
जेएनएन, पालमपुर। समाज संवेदनहीन होता जा रहा है और यही मनुष्य के पतन का कारण बन सकता है। बुद्धिजीवी वर्ग को इस बारे में सोचने की जरूरत है। समाज में संवेदना, सहानुभूति व प्यार खत्म हो जाएगा तो मनुष्य पतन की ओर बढ़ेगा। यह बात सांसद शांता कुमार ने सोमवार को हिमालय जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (सीएसआइआर-आइएचबीटी) पालमपुर में त्रिगर्त कांगड़ा घाटी उत्सव कीकाव्य संध्या में बुद्धिजीवियों को संबोधित करते हुए कही।
उन्होंने कहा, अगर किसी व्यक्ति से दुर्व्यवहार होता है तो लोग वीडियो बनाने में जुट जाते हैं, लेकिन उसे बचाने का प्रयास नहीं करते हैं। सांसद ने मोबाइल फोन के बढ़ते नशे से भी बचने की अपील की। कहा कि विज्ञान का प्रयोग अगर विवेक से होता है तो यह लाभदायक है वरना यह विनाश को न्योता देता है। बुद्धिजीवियों को ऐसे सवालों पर मंथन करने की आवश्यकता है। इस मौके पर शांता कुमार ने स्वर्गीय जयप्रकाश की अंतिम यात्रा से जुड़ी कविता भी सुनाई।
कार्यक्रम में दैनिक जागरण के राज्य संपादक नवनीत शर्मा, गौतम व्यथित, डॉ. हृदयपाल सिंह, कविता भारद्वाज, आशुतोष गुलेरी, असीम अग्रवाल, धर्मेश, डॉ. विजयपुरी, भूपेंद्र भूपी, मोनिका सारथी, किरण कटोच व प्रताप जरियाल ने कविताएं, गीत व गजलें सुनाई। इस मौके पर सीएसआइआर-आइएचबीटी के कार्यकारी निदेशक डॉ. आशु गुलाटी सहित अन्य मौजूद रहे।
डॉ. आशुतोष गुलेरी ने बयां किया नूरपुर हादसे का दर्द
कायाकल्प के निदेशक डॉ. आशुतोष गुलेरी ने कविता के जरिये नूरपुर हादसे में बच्चों को खो चुकी माताओं का दर्द बयां किया। उन्होंने कहा, सत्य, अहिंसा-दान-धर्म सब न्याय नहीं कर पाता हूं लौह-जंघ है माता फिर से दूर नहीं कुछ पास छिना है कुछ गोदों से नूर छिना है, बस की याद दिलाता हूं मैं त्रिगर्त कहलाता हूं। उनकी इन पंक्तियों ने सभागार में बैठे श्रोताओं और कवियों को ताली बजाने के लिए मजबूर कर दिया।