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बेटा देश के लिए कुर्बान हो गया पर अब सरकार को नहीं कोई सरोकार, जानिए Kangra News

Martyr Ravikan family wishesh Not Fulfill देश सेवा के लिए जान न्योछावर कर दी बदले में अनदेखी के सिवा कुछ नहीं मिला।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Tue, 13 Aug 2019 04:50 PM (IST)Updated: Wed, 14 Aug 2019 09:33 AM (IST)
बेटा देश के लिए कुर्बान हो गया पर अब सरकार को नहीं कोई सरोकार, जानिए Kangra News
बेटा देश के लिए कुर्बान हो गया पर अब सरकार को नहीं कोई सरोकार, जानिए Kangra News

नगरी, कार्तिक शर्मा। देश सेवा के लिए जान न्योछावर कर दी, बदले में अनदेखी के सिवा कुछ नहीं मिला। शहीद जवान के परिजन साधन संपन्न थे, अपने खर्च पर शहीद के नाम का गेट बनाने के लिए सरकार से परमिशन मांगी, लेकिन प्रदेश सरकार इससे भी नहीं दिला सकी। जी हां बात हो रही है सुकैड़ी गांव के शौर्य चक्र विजेता शहीद रविकांत की। हालांकि शहीद के परिजन अपने खर्चे पर शहीद के नाम पर द्वार बनाना चाहते थे, लेकिन उसकी फाइल भी अपनी राह से ऐसी भटकी की सात साल बीतने के बाद नहीं लौटी।

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शहीद के पिता व पूर्व सैनिक रंगील सिंह बताते है कि वर्ष 2010 में शहीद रविकांत ने भारत माता की रक्षा करते हुए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया था, हमें अपने पुत्र पर गर्व है और हमेशा रहेगा। कई नेताओं ने यहां आकर हमें सांत्वना भी दी, उस समय के विधायक प्रवीण कुमार से हमने लाहला चौक (नगरी) में गेट बनाने की परमिशन मांगी थी, हालांकि पूरा खर्च उठाने के लिए हम तैयार थे, लेकिन विधायक ने उनकी मांग को अनदेखा किया। साल 2012 में उस समय की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल नेे शहीद रविकांत को मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया था। इसी दौरान हमने के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी मुलाकात की, हमने प्रधानमंत्री से गैस एजेंसी खोलने के लिए परमिशन मांगी, और उन्होंने मुख्यालय मुंबई को चिट्ठी भी भेजी थी, इस सब के बाद भी कोई परमिशन हमें नहीं मिली।

देश की रक्षा के लिए शहादत का चौला पहनने वाले शहीद सभी के होते है। सभी को सम्मान मिलना चाहिए।  -प्रवीण शर्मा, पूर्व विधायक, पालमपुर।

पूरा परिवार ने की देश सेवा

रविकांत का जन्म रंगील सिंह (पूर्व सैनिक 1971-1997) एवं मनसा देवी के घर सुकैड़ी में 12 जून 1982 को हुआ। बड़ी बहन मीना कुमारी, खुद रविकांत, छोटा भाई रजनीकांत व रमन ठाकुर (भारतीय वायु सेना में) को मिलाकर कुल चार भाई बहन थे। रविकांत के दादा मोहन ङ्क्षसह भी वर्ष 1939 से 1945 तक दूसरे विश्व युद्ध के दौरान सेना का हिस्सा रह चुके हैं, साथ ही शहीद के दो चाचा बिहारी लाल एवं त्रिलोक भी भारतीय सेना का हिस्सा हैं।

महज 19 साल की उम्र में बने फौजी

शहीद रविकांत की शुरूआती शिक्षा नगरी के स्थानीय स्कूलों में ही हुई, उन्होंने अपनी दसवीं राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय चचियां से की। इसके बाद 12वीं कक्षा में पढ़ते हुए ही महज 19 साल की उम्र में 28 जुलाई 2000 को भारतीय सेना की  पांच डोगरा में भर्ती हो गए। चार फरवरी 2010 को जब उनकी तैनाती 11 राष्ट्रीय राइफल (विशेष तैनाती) जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिला में थी, उन्होंने आतंकियों का वीरता से सामना करते हुए आतंकवादियों के जिला कमांडर एवं तहसील कमांडर को मार गिराया। इस दौरान वह वीरगति को प्राप्त हुए।

दुख की बात है कि शहादत के लगभग साढ़े नौ साल बाद भी एक शौर्य चक्र विजेता की याद में हिमाचल प्रदेश सरकार ने कभी कुछ नही किया। नेताओं को शहीद का सम्मान करना तो बिलकुल नही आता है। -हरीश ठाकुर।

आज हमारे देश में बातें तो बड़ी बड़ी होती हैं, लेकिन हकीकत इसके बिलकुल विपरीत है, हमने हमेशा एक सम्मारक की मांग की है। क्या हिमाचल प्रदेश सरकार इतनी भी सक्षम नही की एक शौर्य चक्र विजेता शहीद की याद में कोई स्मारक बना सके। -सुरजीत ठाकुर

शहीद रविकांत गिरी क्लब का हिस्सा रहे हैं, उनकी शहादत के तुरंत बाद हमने अपने खेल मैदान का नाम शहीद रविकांत खेल मैदान सुकैड़ी रखा एवं इसी मैदान में प्रत्येक वर्ष आयोजित की जाने वाली खेलकूद प्रतियोगिता भी उनके नाम से करवानी शुरू कर दी। -अशोक तरतेडिय़ा

शहीद के पैतृक गांव में स्मारक बनवाना तो दूरसरकार ने हमें आज भी पिछड़ा हुआ ही बना के रखा है, सुकैड़ी गांव में शहीद के घर की तरफ जाने वाली सड़क की ऐसी दुर्दशा है कि उस रास्ते पे वाहन तो दूर चलना तक भी मुश्किल है। -शशि कुमार

ये गांव शौर्य चक्र विजेता का पैतृक गांव है और यहां फोन तक नहीं चलते। दु:ख की बात है कि हमारे गांव में यदि कोई आपातकालीन स्थिति आ जाती है तो लोग किसी को फोन तक नही कर सकते। -राजकुमार।

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