शास्त्रियों को डीएलएड करवाने का औचित्य नहीं
पहली से पांचवी कक्षा तक संस्कृत विषय नहीं पढ़ाया जाता है। संस्कृत छठी कक्षा से उतरी की कक्षाओं की पढ़ाई जाती है, इसलिए प्रदेश के शास्त्री अध्यापकों को नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ ओपन स्कू¨लग (एनआइओएस) से करवाए जा रहे डीएलएड का कोई औचित्य नहीं रह जाता है। अगर सरकार अपात्र शास्त्री अध्यापकों को पात्र बनाना चाहती है तो ऐसे शास्त्री अध्यापकों को बीएड करवाने का प्रावधान किया जाए।
जागरण संवाददाता, धर्मशाला : पहली से पांचवीं कक्षा तक संस्कृत विषय नहीं पढ़ाया जाता है। संस्कृत छठी कक्षा से पढ़ाई जाती है। इसलिए प्रदेश के शास्त्री अध्यापकों को नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग (एनआइओएस) से करवाए जा रहे डीएलएड का कोई औचित्य नहीं रह जाता है। अगर सरकार अपात्र शास्त्री अध्यापकों को पात्र बनाना चाहती है तो ऐसे शास्त्री अध्यापकों को बीएड करवाने का प्रावधान किया जाए।
राजकीय संस्कृत शिक्षक परिषद जिला कांगड़ा के पदाधिकारियों ने मांगों को लेकर वीरवार को धर्मशाला में प्रारंभिक शिक्षा उपनिदेशक कांगड़ा दीपक किनायत के साथ बैठक की। परिषद के संरक्षक लश्कर ¨सह, महासचिव राज कुमार शर्मा के नेतृत्व में बैठक में कहा कि सरकार ने 29 जुलाई, 2011 से पहले के शास्त्री अध्यापकों को पात्र माना है। ऐसे अध्यापकों को तुरंत प्रभाव से टीजीटी का पदनाम दिया जाए। इसके अलावा डीपीई की तरह उच्च शिक्षा प्राप्त शास्त्री अध्यापकों को मानदेय दिया जाए, क्योंकि मास्टर ऑफ फिजिकल एजुकेशन को प्रवक्ता का ग्रेड पे किया जाता है, तो शास्त्री अध्यापकों को इस वित्तीय लाभ से वंचित रखना तर्कसंगत नहीं है। वहीं स्कूलों में संस्कृत विषय को जमा दो तक अनिवार्य किया जाए। परिषद की मांग पर उपनिदेशक ने सहमति जताते हुए कहा कि उनकी सभी मांगों को सरकार के समक्ष रखा जाएगा।