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Shardiya Navratri: पूर्णाहुति के साथ नवरा‍त्र का समापन, आदि हिमानी चामुंडा मंदिर में भी हुआ विशेष पूजन

Shardiya Navratri 2020 श्री चामुंडा नंदिकेश्वर धाम मंदिर में 15 से 25 तक चले शारदीय नवरात्र का समापन रविवार को पूर्णाहुति के साथ हुआ। आदि हिमानी चामुंडा मंदिर में भी शारदीय नवरात्र के समापन पर रविवार को विधिवत पूजा अर्चना के वाद हवन यज्ञ पर पूर्णाहुति का आयोजन किया गया।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Sun, 25 Oct 2020 03:32 PM (IST)Updated: Sun, 25 Oct 2020 03:32 PM (IST)
Shardiya Navratri: पूर्णाहुति के साथ नवरा‍त्र का समापन, आदि हिमानी चामुंडा मंदिर में भी हुआ विशेष पूजन
आदि हिमानी चामुंडा मंदिर में शारदीय नवरात्र के समापन पर हवन यज्ञ में पूर्णाहुति डालते।

योल, जेएनएन। श्री चामुंडा नंदिकेश्वर धाम मंदिर में 15 से 25 तक चले शारदीय नवरात्र का समापन रविवार को पूर्णाहुति के साथ हुआ। मंदिर न्यास सदस्य एवं नवरात्र धार्मिक अनुष्ठान के मुख्य यजमान हिमांशु अवस्थी ने बताया पूर्णाहुति में लोकसभा सदस्य किशन कपूर विशेष तौर‌ पर शामिल हुए। इसके अलावा एसडीएम धर्मशाला एवं सहायक मंदिर आयुक्त डाक्‍टर हरीश गज्जू मंदिर अधिकारी अपूर्व शर्मा, यजमान राम कृष्ण, मुख्य पुजारी के साथ 21 पंडितों ने पूर्णाहुति डाली। इसके बाद सूक्ष्म तौर पर कन्या पूजन हुआ।

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आदि हिमानी चामुंडा मंदिर में भी शारदीय नवरात्र के समापन पर रविवार को विधिवत पूजा अर्चना के वाद हवन यज्ञ पर पूर्णाहुति का आयोजन किया गया। इसमें मुख्य यजमान अनिल गौड़ ने पूर्णाहुति डाली। पुजारी मन्दो राम ने बताया शारदीय नवरात्र के दौरान मंदिर में शतचंडी पाठ, वटुक जाप, गायत्री जाप तथा अन्य धार्मिक अनुष्ठानों लगातार 17 से 24 अक्‍टूबर तक जाप किया गया।

बता दें आदि हिमानी चामुंडा सिद्धपीठ ही नहीं है, बल्कि एक पौराणिक तथा ऐतिहासिक महत्व भी रखता है। 1670ईस्वी के दौरान राजा चन्द्र भान ने यहां मुगलों से लोहा लेने के लिए दस हजार फीट की ऊंचाई पर धौलाधार पर्वत श्रृंखला की तलहटी में मां हिमानी की शरण ली थी और वर्षों जाप कर सिद्धि प्राप्त की। आज भी राजा के महलों के अवशेष मंदिर की कुछ दूरी पर मिलते हैं। इनकी वीरता को देखते हुए जहांगीर ने उन्हें 50 गावों की जागीर दी थी। तब से आज तक हिमानी चामुंडा को लोग सिद्धपीठ के नाम से मानते हैं। आज भी यहां के न स्थानीय लोग फसल का पहला चढ़ावा यहां चढ़ाते हैं। प्राचीन मंदिर 2013 में प्राकृतिक आपदा की भेंट चढ़ा और जल कर राख हो गया। अब मंदिर का पुर्ननिर्माण अनुमानित एक करोड़ रुपये की लागत से हो रहा है। अब यह स्थल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से भी विकसित होने जा रहा है। अब हिमाचल सरकार ने 300 करोड़ की लागत से बनने वाले रोपवे को भी मंजूरी दे दी है।


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