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Satpal Satti Interview: उपचुनाव में जीत का दावा पर अंतर कम रहने का अनुमान; शांता के विवाद पर भी रखी राय

Satpal Satti Interview सतपाल सिंह सत्‍ती ने इंटरव्‍यू के दौरान उपचुनाव में जीत का दावा किया लेकिन जीत का अंतर कम रहने की आशंका भी जताई।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Sat, 19 Oct 2019 07:45 AM (IST)Updated: Sat, 19 Oct 2019 04:19 PM (IST)
Satpal Satti Interview: उपचुनाव में जीत का दावा पर अंतर कम रहने का अनुमान; शांता के विवाद पर भी रखी राय
Satpal Satti Interview: उपचुनाव में जीत का दावा पर अंतर कम रहने का अनुमान; शांता के विवाद पर भी रखी राय

धर्मशाला, जेएनएन। विधानसभा उपचुनाव प्रचार में व्यस्तता के बीच हिमाचल भाजपा अध्यक्ष सतपाल सत्ती 'दैनिक जागरण' के बनोई स्थित प्रेस परिसर में पहुंचे। इस दौरान उन्होंने प्रदेश से जुड़े कई मुद्दों पर खुलकर बात की। खास बात यह रही कि सत्ती ने पार्टीबाजी की राजनीति से ऊपर उठकर हर विचार रखे। इसमें आम लोगों के मुद्दों के साथ नेताओं की दिक्कतों का भी जिक्र किया। पेश है उनसे बातचीत के मुख्य अंश :

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धर्मशाला और पच्छाद में भाजपा को कांग्रेस के साथ-साथ बागियों से जूझना पड़ रहा है। कहां कमी रही, बागियों को क्यों नहीं मना पाए?

धर्मशाला में चुनाव लड़ रहे राकेश चौधरी पहले कांग्रेस में रहे हैं। कुछ साल पहले भाजपा में आए थे। हमारी पार्टी में आ गए थे तो अब हमारे ही आदमी गिने जाएंगे। उनका नाम भी शार्टलिस्ट कर दिल्ली भेजा था। अब टिकट तो किसी एक को ही मिलना था और वह विशाल नैहरिया को मिला। जहां तक पच्छाद की बात है तो दयाल प्यारी को पार्टी ने तीन बार जिला पार्षद बनाया, वह सिरमौर में जिला परिषद अध्यक्ष भी रहीं। उनसे चुनाव न लडऩे के लिए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने भी बात की। वह मान भी गई थीं। अगले दिन नाम वापस लेने जा रहे थे कि सोलन में दयाल प्यारी को उनके घर के लोग और समर्थक साथ ले गए। परिवार के लोगों को नहीं रोका जा सकता। वैसे दोनों सीटों पर बागियों को मनाने के बहुत प्रयास हुए हैं।

भाजपा पहले 20 हजार प्लस की लीड का लक्ष्य लेकर चल रही थी। अब दोनों जगह बागियों के मैदान में उतरने के बाद क्या मानकर चल रहे हैं। क्या लीड इतनी ही रहेगी?

...(विश्वास के साथ)...जहां तक धर्मशाला के बागी प्रत्याशी राकेश चौधरी की बात है उन्हें जातीय समीकरणों के आधार पर मजबूत माना जा रहा है। लोग जाति के नाम पर वोट देंगे, ऐसा नहीं लगता। वह भाजपा के वोट काटेंगे तो कांग्रेस को भी डैमेज करेंगे। हो सकता है हमें थोड़ा ज्यादा नुकसान करें। इसी तरह पच्छाद में दयाल प्यारी कांग्रेस को भी नुकसान कर रही हैं। एक बात और है कि निर्दलीय प्रत्याशियों के पास न विजन होता है और न पार्टी। ऐसे में दोनों जगह भाजपा प्रत्याशियों का जीतना तय है। हो सकता है लीड का अंतर 20 हजार न रहे।

उपचुनाव में भाजपा और कांग्रेस डरी हुई क्यों लग रही हैं?

ऐसा नहीं है। हम डरे नहीं हैं, जनता भाजपा और सरकार के साथ है और हम दोनों जगह से जीत दर्ज करेंगे।

शांता कुमार प्रचार में आए पर उन्होंने दूसरी राजधानी और लिटफेस्ट पर बयान दिया। इससे उनके पुतले जलाने की नौबत आ गई। इससे किसकी मदद हुई?

...(गंभीर होते हुए)...आप उन्हें जानते हैं। वह सच बोलते हैं। शांता कुमार के बयान का गलत मतलब निकाला गया। उन्होंने यह कहा था कि लिटफेस्ट जैसे संवाद चलते रहने चाहिए, लेकिन इन पर विवाद नहीं होना चाहिए। जहां तक दो राजधानियों की बात है फिर धर्मशाला ही क्यों, सभी चाहेंगे कि उनके यहां भी एक-एक राजधानी बना दी जाए। इसी तरह कल को तमिलनाडु, कोलकाता और महाराष्ट्र में भी राजधानियों की मांग उठने लगेगी।

चंडीगढ़ में गोविंद ठाकुर की पत्नी के ढाई लाख रुपये सरकारी गाड़ी से चोरी होने के मामले में पार्टी को रक्षात्मक नहीं होना पड़ा?

-ऐसा नहीं है। सरकार और संगठन यह मामला देख रहे हैं। इस मामले में उनसे बात भी हुई है।

आप विधायक रहे, सरकार में भी रहे और अब संगठन का दायित्व निभा रहे हैं। कौन सी जिम्मेदारी सबसे अच्छी रही?

...(हल्की मुस्कराहट दिखाते हुए) ...विधायक के रूप में नेता अलग भूमिका में होता है और संगठन में अलग तरह की जिम्मेदारी होती है। विधायक बनकर जनता की जरूरत के हिसाब से चलना पड़ता है। कई मामलों में लोगों को मजबूरन घुमाना पड़ता है। राजनीति का जो अर्थ प्रचलित कर दिया गया है, उसके हिसाब से भी चलना पड़ता है। अगर घुमाएंगे नहीं तो लोग नाराज हो जाते हैं। लेकिन संगठन में आप सच के करीब रहते हैं। संगठन में काम करना ज्यादा अच्छा है। सच के बिना परिवार, पार्टी और राष्ट्र कुछ भी नहीं है।

पिछले दिनों संगठन में कुछ दिक्कतें रहीं। इंदु गोस्वामी और रमेश धवाला की नाराजगी हाईकमान तक पहुंची?

संगठन में सभी लोगों की इच्छाएं रहती हैं। सारे लोग तभी खुश हो सकते हैं जब उनकी इच्छाएं पूरी होती रहें। कई बार ऐसा न होने पर नाराजगी भी देखने को मिलती है। सभी को साथ लेकर चलने के प्रयास रहे हैं। अध्यक्ष मैं हूं, लेकिन संगठन को चलाने में सभी वरिष्ठ नेताओं की भूमिका रहती है। प्रदेश में शांता कुमार, प्रेम कुमार धूमल, जयराम ठाकुर के साथ जेपी नड्डा जैसे वरिष्ठ नेताओं की कड़ी है जो पार्टी की मजबूती के लिए काम कर रहे हैं। 

अध्यक्ष के रूप में आपका कार्यकाल पूरा हो रहा है। अब आगे क्या जिम्मेदारी रहेगी?

15 दिसंबर के बाद पार्टी में मेरी भूमिका क्या होगी, यह पार्टी ही तय करेगी। वैसे संगठन में कई लोग काम कर रहे हैं। मैं चाहूंगा कि सभी को मौका मिले।

एक तरफ एनपीएस का विरोध हो रहा है और दूसरी तरफ विधायकों का यात्रा भत्ता बढ़ाने का मामला गर्म रहा, क्या कहेंगे?

जहां तक यात्रा भत्ता बढ़ाने की बात है, 90 फीसद विधायक यात्रा भत्ता लेते ही नहीं हैं। इसके लिए पुराना रिकॉर्ड देख सकते हैं। यात्रा भत्ते के लिए कोई विधायक सरकार से खर्च ले भी ले तो उसे उतने ही पैसे अपनी जेब से भी खर्च करने पड़ते हैं। ऐसे में ज्यादातर विधायक यात्रा भत्ता लेना ही नहीं चाहते।

नेताओं के प्रति बनती धारणा के बारे में आपकी धारण क्या है?

लोगों को नेताओं को खलनायक की तरह पेश नहीं करना चाहिए। चाहे किसी भी दल का नेता हो। नेताओं की अपनी मजबूरियां रहती हैं। लोगों में नेताओं की जो छवि बन चुकी है, उस पर सेमिनार होने चाहिए। इसमें अच्छे नेताओं के साथ ईमानदार लोगों को भी बुलाया जाए। इस तरह के सेमिनार में हर वर्ग के लोग शामिल किए जाएं। नेताओं को भी चाहिए कि विकास कार्यों में जनता के धन का दुरुपयोग न हो। जिस तरह से केंद्रीय विश्वविद्यालय का कांगड़ा में हाल हुआ, ऐसा नहीं होना चाहिए। देश भर से आने वाले लोग देहरा और धर्मशाला के चक्कर काटते रहेंगे। एक जगह कैंपस होने से यह दिक्कत नहीं आती।

तो बाली, सत और बिंदल नहीं जीतते

सतपाल सत्ती ने प्रदेश के बड़े नेताओं के नाम लेकर जातीय कार्ड न चलने का दावा किया। उन्होंने कहा कि अगर लोग जाति आधार पर ही वोट देते तो सत महाजन, जीएस बाली, जगजीवन पाल और राजीव बिंदल कभी चुनाव ही नहीं जीत पाते।

परिवारवाद के खिलाफ

कहा कि देश में जब संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित होने की चर्चा चल रही थी तो उस दौरान एक कार्यकर्ता ने उन्हें सुझाव दिया कि वह भी अपनी पत्नी को इसके लिए तैयार करें। इस पर सत्ती ने उस कार्यकर्ता को कहा कि यह बात दोबारा मत कहना। जब महिला प्रत्याशी की जरूरत पड़ेगी तो दरी बिछाने वाली कार्यकर्ता में से ही प्रत्याशी होगी। उसे जिताएंगे। मेरे परिवार से दूसरा कोई चुनाव नहीं लड़ेगा।

औपचारिकताओं से विकास में देरी

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि आज सबसे बड़ी दिक्कत किसी विकास कार्य में औपचारिकताएं पूरी करना है। जमीन ट्रांसफर करने में ही दो साल लग जाते हैं। फिर डीपीआर बनाने में नीचे से लेकर ऊपर तक प्रक्रिया चलती है। कुल मिलाकर पांच साल में शिलान्यास ही हो पाता है। ऐसे में विकास कार्य तेजी नहीं पकड़ पाते हैं।

सोच का स्तर उठाएं बड़े लोग

ऊंचे पदों पर बैठे लोगों को अपनी सोच का स्तर ऊपर उठाने की जरूरत है। ऐसे लोग गलत कार्यों में शामिल अपने करीबियों को बचाने की कोशिश न करें। लोग इसलिए आरटीआइ लगाते हैं कि दूसरे का काम क्यों हो गया। यह नहीं पूछते कि उनका काम क्यों नहीं हुआ। देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भी नाजायज फायदा उठाया जा रहा है।


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