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रुलेहड़ हादसा: मलबे में दब गया भीमसेन का परिवार, अब एक बेटे की तलाश में चलाया है सर्च अभियान

Rulehad Landslide बोह घाटी की ग्राम पंचायत रुलेहड़ में गत सोमवार को हुए भूस्खलन की चपेट में आए लगभग सभी लोग निकाल लिए हैं। कई लोगों को पहले ही दिन सुरक्षित निकाल लिया था लेकिन कई लोगों को नहीं बचाया जा सका व उनके शव निकाले गए।

By Rajesh Kumar SharmaEdited By: Published: Sat, 17 Jul 2021 08:54 AM (IST)Updated: Sat, 17 Jul 2021 03:03 PM (IST)
रुलेहड़ हादसा: मलबे में दब गया भीमसेन का परिवार, अब एक बेटे की तलाश में चलाया है सर्च अभियान
बोह घाटी की ग्राम पंचायत रुलेहड़ में मलबे में लापता नीरज की तलाश में चला सर्च अभियान।

धर्मशाला, जागरण संवाददाता। Rulehad Landslide, उपमंडल शाहपुर के तहत पड़ती बोह घाटी की ग्राम पंचायत रुलेहड़ में गत सोमवार को हुए भूस्खलन की चपेट में आए लगभग सभी लोग निकाल लिए हैं। कई लोगों को पहले ही दिन सुरक्षित निकाल लिया था, लेकिन कई लोगों को नहीं बचाया जा सका व उनके शव निकाले गए। लेकिन अभी तक मलबे की चपेट में आए नीरज पुत्र स्वर्गीय भीम सेन का कोई पता नहीं चल पाया है।

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एनडीआरएफ और गृह रक्षकों की टीमें मंगलवार से उसकी तलाश कर रही हैं। लेकिन अभी तक सफलता हाथ नहीं लगी है। पहले यह कहा जा रहा था कि जिस समय यह भूस्खलन हुआ उस समय नीरज घर में भीतर ही था। इसको देखते हुए टीमों ने उनके मलबे में दबे पूरे घर को छान लिया है। यही नहीं जितना भी क्षेत्र भूस्खलन से प्रभावित हुआ है टीमों ने लगभग पूरे क्षेत्र की जांच कर ली है। अब सिर्फ नीरज की घर से थोड़ी सी नीचे एक बड़े पत्थर के नीचे की मलबे की जांच करना शेष रहता है। शनिवार को टीमें उस पत्थर के नीचे की जांच करेंगी। अगर यहां भी नीरज का पता नहीं चल पाता तो स्वीकार कर लिया जाएगा कि वह बलाहर खड्ड में बह गया है।

यहां बता दें कि त्रासदी में सबसे अधिक नीरज का परिवार ही काल का ग्रास बना है। भीम सेन का लगभग पूरा परिवार भूस्खलन की चपेट में आकर खत्‍म हो गया है। खुद भीम सेन, पत्नी मस्तो देवी, बेटी ममता, बेटा कार्तिक के शव निकाल लिए हैं, जबकि नीरज की तलाश की जा रही है। अब घर में केवल उनकी एक बड़ी बेटी जिसकी शादी हो चुकी है वह ही रह गई है। इसके अलावा भीम सेन की मां रतो देवी रही है। रतो देवी भी भीम सेन के साथ रहती थी। जिस दिन यह त्रासदी हुई उससे कुछ दिन पूर्व ही घर से आठ-नौ किलोमीटर ऊपर पहाड़ी (धार) में अपने पशुओं को चराने के लिए चली गई थीं। बरसात के दिनों में वह हर साल धार में पशुओं को लेकर जातीं थी। वापस लौटीं तो बेटे समेत पूरा परिवार खत्म हो चुका था।


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