हिमाचली राजघरानों के रिश्ते नेपाल व मप्र तक, बुशहर रियासत की बहू बनेगी राजस्थान की बेटी
हिमाचल के राजशाही घराने से जुड़े बुशहर रियासत के वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह का रिश्ता राजस्थान के उदयपुर के राज घराने से जुड़ चुका है।
धर्मशाला, जेएनएन। हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं बुशहर रियासत के राजा रहे वीरभद्र सिंह के बेटे विधायक विक्रमादित्य सिंह उदयपुर (राजस्थान) के राजपरिवार की बेटी सुदर्शना सिंह के साथ विवाह बंधन में बंधेंगे। यह पहला मौका नहीं है, जब हिमाचल का कोई राजघराना अन्य राज्य राजघराने से जुड़ने जा रहा हो। इससे पहले भी यहां के राजघरानों की बेटियां अन्य राज्यों के राजघरानों की बहुएं बनी हैं, तो वहां की बेटियां पहाड़ के राजघरानों की बहुएं बन चुकी हैं। आइए, जानते हैं हिमाचल के राजघरानों के अन्य राज्यों के राजघरानों के संबंध के बारे में।
बुशहर रियासत की बहू बनेगी राजस्थान की बेटी
हिमाचल प्रदेश के राजशाही घराने से जुड़े बुशहर रियासत के शासक एवं छह बार मुख्यमंत्री रह चुके वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह का रिश्ता राजस्थान के उदयपुर के राज घराने से जुड़ चुका है। विक्रमादित्य सिंह की सगाई अमेठ रियासत की बेटी सुदर्शना सिंह से हुई है। मार्च महीने में शादी की अटकलें लगाई जा रही हैं।
महाराजा पटियाला घराने की बहू बन चुकी है वीरभद्र सिंह की बेटी
वीरभद्र सिंह की बेटी अपराजिता सिंह की शादी बीते साल शाही अंदाज के लिए मशहूर रहे महाराजा पटियाला घराने के युवराज अंगद सिंह से हो चुकी है। प्रदेश के इतिहास में पहली मर्तबा पुराने हिमाचल प्रदेश के किसी राजघराने का पटियाला राजघराने से जुड़ा था। इससे पहले पूर्व हंडूर रियासत मौजूदा नालागढ़ के राजघराने से जुड़े राजा सुरेंद्र सिंह का विवाह पटियाला राजपरिवार में ही हुआ था। नालागढ़ राजघराने से जुड़े राजा सुरेंद्र सिंह के बेटे विजेंद्र सिंह हालांकि दो दशक से भी ज्यादा अवधि तक प्रदेश की सक्रिय राजनीति में रहे हैं व वीरभद्र सिंह के ही मंत्रिमंडल में भी रहे हैं।
राजस्थान के मारवाड़ राजघराने की बेटी है कटोच राजघराने की बहू
हिमाचल प्रदेश के कटोच राजघराने का राजस्थान के जोधपुर के मारवाड़ राजघराने से आपसी रिश्ता है। मारवाड़ राजघराने की बेटी चंद्रेश कुमारी कटोच राजघराने की बहु हैं। कटोच राजघराने के इस समय वर्तमान मुखिया आदित्य देव कटोच का विवाह चंद्रेश कुमारी के साथ 4 दिसंबर, 1968 को हुआ था। आदित्य देव कटोच कटोच वंश के 488वें राजा और कांगड़ा राजपरिवार के मुखिया एवं लंबागांव के जागीरदार हैं। जबकि उनके बेटे ऐश्वर्या कटोच हैं। चंद्रेश कुमारी मारवाड़ राजघराने की बेटी हैं। उनका जन्म हनवंत सिंह व कृष्णा कुमारी के घर हुआ था। चंद्रेश कुमारी के भाई गजसिंह हैं। चंद्रेश कुमारी का एक लंबा राजनीतिक सफर भी रहा है। वह प्रदेश सरकार में मंत्री ताे केंद्र सरकार में केंद्रीय मंत्री के तौर पर भी कार्य कर चुकी हैं।
कांगड़ा राजघराने ने सन 1800 के आस पास से ही अंग्रेजों के खिलाफ आजादी का युद्ध छेड़ दिया था। संघर्ष काफी समय तक चला जिसमे इस परिवार को कांगड़ा गंवाना पड़ा। आखिरकार सन 1890 में दोनों पक्षों के बीच संधि हुई और कांगड़ा राजपरिवार को लंबागांव की जागीर मिली। तत्पश्चात कांगड़ा राजपरिवार और कटोच राजपूतों के राजगद्दी लंबागांव की जागीरदार की मानी जाती है। चंद्रेश कुमारी की माता कृष्णा कुमारी मूलत: गुजरात के सौराष्ट्र में ध्रांगध्रा राजघराने की राजकुमारी थीं। वह मारवाड़ के पूर्व महाराजा हनवंत सिंह से 1943 में विवाह के बाद वे जोधपुर आई थीं। उनकी तीन संतानों में चंद्रेश कुमारी, शैलेश कुमारी एवं गज सिंह हैं। चंद्रकुमारी जोधपुर से लोकसभा का चुनाव भी लड़कर सांसद भी रह चुकी थीं। वह वर्तमान में अपने परिवार सहित धर्मशाला में रहती हैं।
चंबा राजघराने का छत्तीसगढ़ की सरगूजा रियासत से गहरा नाता
चंबा राजघराने का छत्तीसगढ़ की सरगूजा रियासत से गहरा नाता रहा है। सरगूजा रियासत की राजकुमारी आशा कुमारी हिमाचल प्रदेश के चंबा राजघराने की पुत्रवधू हैं। चंबा के राजा लक्ष्मण सिंह व राज माता देवेंद्रा कुमारी के पुत्र राजकुमार बृजेंद्र सिंह का विवाह वर्ष 1979 में सरगूजा रिसायत के राजा एमएस सिंह देऊ व राज माता देवेंद्रा कुमारी की पुत्री आशा कुमारी से हुआ था। तब से चंबा राजघराने का नाता सरगूजा राजघराने से है।
आशा कुमारी डलहौजी विधानसभा क्षेत्र की विधायक होने के साथ ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी की सचिव भी हैं। उनके भाई टीएस सिंह देऊ सरगूजा रिसायत के राजा और छत्तीसगढ़ विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी हैं। आशा कुमारी के पिता एमएस सिंह मध्य प्रदेश सरकार के चीफ सेक्रेटरी थे। उनकी माता देवेंद्रा कुमारी भी मध्य प्रदेश सरकार में काबीना मंत्री रह चुकी हैं। चंबा का राजघराना लगभग दो हजार वर्ष पुराना है। वहीं, सरगूजा रियासत भी करीब दो हजार वर्ष पुरानी है। दोनों ही राजघराने कभी पराधीन नहीं हुए।
स्वतंत्रता संग्राम में भी दोनों राजघरानों ने अहम भूमिका निभाई। यह दोनों राजघरानों की विशेषता है। चंबा राजघराने की एक और विशेषता है कि चंबा का राजघराना सूर्यवंशी है। यह भगवान श्रीराम के पुत्र लव व कुश का वंशज है। चंबा राजघराने की राजधानी पहले भरमौर में हुआ करती थी। करीब 1100 वर्ष पूर्व तत्कालीन राजा साहिल वर्मन ने चंबा शहर को राजधानी के तौर पर बसाया। राजा साहिल वर्मन की पुत्री चंपावती के नाम पर ही चंबा शहर का नामकरण हुआ। देश की दोनों रियासतों का वैभव ही उनके बीच रिश्तों का अहम जरिया बना।
जयपुर रियासत की बहू है सिरमौर राजघराने की बेटी
सिरमौर रियासत की राजधानी सिरमौरी ताल से 1631 में नाहन स्थानांतरित हुई। उस समय सिरमौर रियासत में महाराजा मेधनी प्रकाश का शासन होता था। महाराजा शमशेर प्रकाश सिरमौर के सबसे प्रसिद्ध शासक हुए। उन्होंने 18वीं शताब्दी में सिरमौर रियासत में शासन किया। इस दौरान उन्होंने सिरमौर में कई विकास कार्य करवाए। सिरमौर के अंतिम शासक महाराजा राजेंद्र प्रकाश 1932 से 1947 तक रहे। महाराजा राजेंद्र प्रकाश की इकलौती बेटी राजकुमारी पद्मिनी देवी का विवाह राजस्थान के जयपुर रियासत के महाराजा सवाई मान सिंह के बेटे राजकुमार ब्रिगेडियर भवानी सिंह के साथ हुआ था।
राजेंद्र प्रकाश के पिता अमर प्रकाश का विवाह नेपाल राजघराने में हुआ था। इसके अतिरिक्त सिरमौर के राजघराने के संबंध देहरादून, उदयपुर, कहलूर, बघाट, मंडी, चंबा, गुलेर-कांगडा, हिंडूर व जयपुर सहित कई राजघरानों से रहे हैं। जयपुर की महारानी व सिरमौर रियासत के अंतिम शासक की पुत्री पद्मिनी देवी ने सिरमौर रियासत की बागडोर अपने छोटे नाती लक्ष्यराज सिंह कुंवर को सौंपी है। सिरमौर रियासत के अंतिम शासक महाराजा राजेंद्र प्रकाश के कोई पुत्र नहीं था। इसके बाद महाराजा राजेंद्र प्रकाश ने अपनी रियासत की जिम्मेदारी जयपुर की महारानी व पुत्री पद्मिनी देवी को सौंपी।
कांगड़ा की रहने वाली थी जम्मू की महारानी तारादेवी
जम्मू कश्मीर के अंतिम शासक महाराजा हरि सिंह की पत्नी एवं कर्ण सिंह की माता तारादेवी भी हिमाचल प्रदेश के कांगडा जिले की रहने वाली थीं। कर्ण सिंह अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि 'मेरे पिता ने चार विवाह किए। मेरी मां यानी महारानी तारा देवी उनकी चौथी पत्नी थीं। वह कांगड़ा जिला के ब्यास नदी किनारे बसे एक गरीब ग्रामीण परिवार से संबंधित थी'। महाराजा हरि सिंह ने कांगड़ा जिला के बैजनाथ निकट एक स्थान अलहिलाल (चौदहवीं का चांद) में एक पैलेस खरीदा था। बताया जाता है कि वह यहां अक्सर आते थे और यहीं एक दिन भ्रमण के दौरान उन्होंने महारानी तारादेवी को देखा था, उसके बाद उन्होंने उनसे विवाह किया। बाद में महाराजा हरि सिंह ने अलहिलाल स्थित पैलेस का नाम भी बदलकर तारागढ़ पैलेस कर दिया था। इसके अलावा महारानी तारादेवी के नाम पर यहां एक औषधालय भी शुरू किया था। अब भी कर्ण सिंह व उनके बेटे तारागढ़ आते हैं। अब इस पैलेस में एक हेरीटेज होटल चल रहा है।
नेपाल व मध्य प्रदेश के राजपरिवार से हैं कुल्लू की रानियां
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू राज परिवार के मुखिया महेश्वर सिंह की पत्नी नेपाल के राज परिवार से संबंधित हैं। इनके छोटे भाई स्वर्गीय कर्ण सिंह का विवाह मध्यप्रदेश के राजघराने में हुआ था। इसके अलावा महेश्वर के बड़े बेटे दानवेंद्र और छोटे बेटे हितेश्वर का विवाह रामपुर राज परिवार में हुआ है। इसी तरह स्व. कर्ण सिंह के बेटे आदित्य विक्रम सिंह का विवाह सोलन के बघाट राज परिवार में हुआ है।
मंडी व सुकेत रियासत के वंशजों का जोधपुर और मध्य प्रदेश से नाता
जिला मंडी की सुकेत रियासत के राजाओं का नाता रियासत काल से ही देश के जाने माने राज घरानों से जुडा हुआ है। महराजा लक्ष्मण सेन के बेटों की शादियां जहां राजघरानों में हुई है, वहीं उनके पोतों का संबंध भी जोधपुर घराने से ही है। सुकेत रियासत के राजा महाराजा लक्ष्मण सेन के बेटों की शादी राजस्थान के राजघरों में हुई थी। महाराजा लक्ष्मण सेन महाविद्यालय सुंदरनगर का संचालन कर रहे ललित सेन की शादी राजस्थान की डूंगरपुर रिसायत की बेटी कृष्णा देवी से हुई थी।
महराजा लक्ष्मण सेन के पोते जय सिंह सेन की शादी जोधपुर घराने में हुई। इसके साथ सुकेत रियासत के राजा की बेटी की शादी भी कोटा के महाराजा से हुई थी। वर्तमान में सुंदरनगर में सुकेत रियासत के वंशज आज भी यहां पर रह रहे है, जबकि ललित सेन कभी कभार सुंदरनगर आते है। उनका अधिकतर समय बाहर ही व्यतीत होता है। मंडी रिसासत के कुंवर ओमेशवर सिंह का विवाह मध्य प्रदेश के सीतामऊ राजघराने की राजकुमारी अंबिका के साथ हुआ है। ओमेश्वर सिंह अपने परिवार के साथ दिल्ली में रहते हैं।