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आयुर्वेद विभाग में चहेतों को बांटी रेवड़ियां, बिना अनुमति कर ली भर्तियां; दे दिया पुर्नरोजगार

आयुर्वेद विभाग के यूनानी बोर्ड में चहेतों को नौकरियों की रेवडिय़ां बांटी गई हैं। आउटसोर्स पर की भर्तियों के लिए वित्त विभाग से अनुमति तक नहीं ली गई।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Fri, 29 May 2020 09:11 AM (IST)Updated: Fri, 29 May 2020 09:11 AM (IST)
आयुर्वेद विभाग में चहेतों को बांटी रेवड़ियां, बिना अनुमति कर ली भर्तियां; दे दिया पुर्नरोजगार
आयुर्वेद विभाग में चहेतों को बांटी रेवड़ियां, बिना अनुमति कर ली भर्तियां; दे दिया पुर्नरोजगार

शिमला, जेएनएन। आयुर्वेद विभाग के यूनानी बोर्ड में चहेतों को नौकरियों की रेवडिय़ां बांटी गई हैं। आउटसोर्स पर की भर्तियों के लिए वित्त विभाग से अनुमति तक नहीं ली गई। स्वायत्तता के नाम पर बोर्ड के पैसों का दुरुपयोग किया गया। छह हजार सरकारी और निजी डॉक्टरों की रजिस्ट्रेशन फीस का भी गलत इस्तेमाल किया है। कभी महंगी गाडिय़ों की खरीद, कभी फर्नीचर तो कभी स्टाफ की नियुक्ति, बोर्ड के फंड को खर्च करने में  कोई रोक नहीं लग पा रही है।

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कई कर्मचारियों को ऊंचे वेतन पर आउटसोर्स पर रखा है। अधिक वेतन रखने का प्रस्ताव अध्यक्ष के माध्यम से अतिरिक्त मुख्य सचिव को भेजा गया था। सूत्रों के लिए एसीएस ने सिंगल फाइल को 'ओके' कर दिया था। सरकार के निर्देश की अनदेखी सरकार सेवाविस्तार व पुनर्रोजगार के खिलाफ रही है, लेकिन आयुर्वेद विभाग में एक चालक पर मेहरबानी दिखाई गई है। वह 30 सितंबर 2018 को रिटायर हो गया, लेकिन किन्हीं कारणों से 30 हजार रुपये प्रति माह के हिसाब से दोबारा नियुक्ति दी।

यह पैसा सरकार के खाते से नहीं, डॉक्टरों की रजिस्ट्रेशन फीस से दिया जा रहा है। आउटसोर्स पर इससे तीन गुणा कम तनख्वाह पर नया चालक मिल जाएगा। यह निदेशक का चालक रहा है। इससे नई नियुक्ति पर सवाल उठे हैं। नए निदेशक को तैनात हुए आठ माह हो गए हैं, पर वह भी इसे घर नहीं भेज पा रहे हैं।

नियुक्तियां आउटसोर्स पर की हैं, क्योंकि इसकी जरूरत थी। डॉक्टरों के रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट नहीं बन पा रहे थे। सरकार की तरफ से एसीएस ने स्वीकृति दी है। भाई-भतीजावाद के आरोप गलत हैं। हां, वेतन इसलिए ठीक रखा गया, ताकि इनके परिवारों का भरण पोषण हो सके। बोर्ड का गठन 1971 में हुआ है, तब से पहली बार हमने बैठक करवाई। चालक को दोबारा नौकरी पर रखने का फैसला मेरा स्तर का नहीं है। डॉक्टरों से पहले सौ रुपये फीस लेते थे, अब पांच सौ प्रति वर्ष हो गई है। इस पर हो हल्ला मचाना सही नहीं है। -डॉ. केके शर्मा, रजिस्ट्रार, यूनानी बोर्ड, आयुर्वेद विभाग।


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