Video : लाहुल-स्पीति में बुरी आत्माओं को भगाकर क्षेत्र के लिए मांगी खुशहाली, इस तरह मनाया हालड़ा उत्सव
Halda Festival in Lahaul Spiti लाहुल-स्पीति के केलंग में देवी-देवताओं और पुण्य आत्माओं को समर्पित हालड़ा उत्सव 13 से 23 जनवरी तक परंपरा अनुसार हुआ। 13 जनवरी को गाहर घाटी 14 को तोद 16 को तिनंन 17 को पट्टन तथा 23 जनवरी को रंगलों घाटी में मनाया गया।
जसवंत ठाकुर, केलंग।
Halda Festival in Lahaul Spiti, लाहुल-स्पीति के केलंग में देवी-देवताओं और पुण्य आत्माओं को समर्पित हालड़ा उत्सव 13 से 23 जनवरी तक परंपरा अनुसार हुआ। 13 जनवरी को गाहर घाटी, 14 को तोद, 16 को तिनंन, 17 को पट्टन तथा 23 जनवरी को रंगलों घाटी में मनाया गया। अटल सुरंग बनने से अब लाहुल घाटी के तीज त्योहारों और उत्सवों से देश व दुनिया भी रूबरू होने लगी है। मान्यता है कि बुरी आत्माओं को भगाने के लिए यह उत्सव मनाया जाता है, ताकि क्षेत्र में खुशहाली बनी रहे।
पहले जनवरी माह में केवल हेलीकाप्टर का ही सहारा था। लाहुल की भौगोलिक परिस्थिति और प्रतिकूल जलवायु के कारण गाहर, तिनन, तोद तथा पटन की घाटियों में अलग-अलग त्योहारों और उत्सवों को अपने-अपने ढंग से मनाया गया। तिनन, तौद तथा गाहर घाटी में लामा ग्रथों के द्वारा गणित लगाकर पर्व की तिथि निर्धारित की, पटन घाटी में चंद्रमा के घटने व बढऩे के पक्ष को तरजीह दी गई।
ऐसे मनाते हैं हालड़ा
देवी-देवताओं और पुण्य आत्माओं को समर्पित लाहुल स्पीति के केलंग का हालड़ा उत्सव। pic.twitter.com/HWwzuos6Mv— virender thakur (@VirenderKthakur) January 23, 2022
हालड़ा के दिन समस्त घाटियों के गांववासियों ने निर्धारित समय पर कुल देवी-देवताओं के पूजा-पाठ के पश्चात देवदार या जूनिपर की लकड़ी को तकरीबन पांच फुट लंबे टुकड़ों में काट आपस में बांध कर हालड़ा का रूप दिया। तिनन गाहर, रांगलो और तोद घाटी के लोगों की प्रज्वलित हालड़ा को घरों से बाहर निकालने की विधि पटन घाटी से थोड़ी भिन्न है। इन क्षेत्रों के लोग प्रज्वलित हालड़ा को घर से बाहर आधि रात्रि में केवल एक बार निकाला गया। पटन में तीन प्रकार के हालड़ा सद् हालड़ा (देवी-देवताओं को समर्पित), पितर कोच हालड़ा (पुण्य आत्माओं को समर्पित) और नम हालड़ा को गांव के चौपाल में निकाला गया जहां पर आग का बड़ा अलाव बनाया और इसके इर्द-गिर्द लोगों ने छांग और हरक की मस्ती में झूमते-नाचते व एक दूसरे पर फव्तियां कसते हुए विसर्जित किया। रांगलो, तिनन तथा तोद घाटी में अगली सुबह स्थानीय लोग इन दिनों को अशुभ मानते हुए एक दो दिन के लिए घरों से बाहर नहीं निकले।
लाहुल-स्पीति के पारंपरिक उत्सव
लाहुल के फागली, हालड़ा, लोसर, कुंस, जुकारु, गोची, पूना, योर, येति और स्पीति के बुछांग, डला व तेशु उत्सव सहित शंग जतार, राइंक जातर दारचा का सेलु नृत्य तथा गाहर घाटी का गमत्सा उत्सव मुख्य पर्व है जो आज भी घाटी में धूमधाम से मनाए जा रहे हैं।