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राष्ट्रपति पुलिस मेडल: हिमाचल काडर की पहली महिला डीएसपी बनी थी पुनीता, जानिए तीन अन्‍य अध‍िकारियों का शौर्य

President Police Medal हिमाचल काडर की पहली डीएसपी होने का गौरव हासिल करने वाली पुनीता भारद्वाज का 33 साल का सेवाकाल उपलब्धियों से भरा रहा है।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Sat, 15 Aug 2020 09:45 AM (IST)Updated: Sat, 15 Aug 2020 09:45 AM (IST)
राष्ट्रपति पुलिस मेडल: हिमाचल काडर की पहली महिला डीएसपी बनी थी पुनीता, जानिए तीन अन्‍य अध‍िकारियों का शौर्य
राष्ट्रपति पुलिस मेडल: हिमाचल काडर की पहली महिला डीएसपी बनी थी पुनीता, जानिए तीन अन्‍य अध‍िकारियों का शौर्य

शिमला, जेएनएन। हिमाचल काडर की पहली डीएसपी होने का गौरव हासिल करने वाली पुनीता भारद्वाज का 33 साल का सेवाकाल उपलब्धियों से भरा रहा है। वह आधी आबादी यानी महिलाओं के लिए मिसाल बनी हैं। उन्होंने डीएसपी से आइजी तक का शानदार सफर तय किया है। उत्कृष्ट सेवाओं के लिए राष्ट्रपति पुलिस मेडल मिलने पर गौरवान्वित महसूस कर रही हैं। उन्होंने यूएन मिशन में दो बार सेवा दी। अभी राज्य पुलिस मुख्यालय में आइजी प्रशासन एवं कल्याण के पद पर सेवाएं दे रही हैं।

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'दैनिक जागरणÓ से बातचीत में बताया कि वह शिमला की डीएसपी और एएसपी थी तो राज्य सचिवालय की जाली चिट्ठी से नौकरी हासिल करने का मामला काफी उछला। गहन जांच से उस टाइपराइटर का भी पता चलाया, जहां यह टाइप की गई थी। इसमें दस्तावेजों का परीक्षण करने वाले विशेषज्ञों की भी मदद ली गई थी। 2010 से 2012 तक सिरमौर की एसपी थी पांवटा में ट्रिपल मर्डर हो गया था। दो समुदाय में तनाव हो गया। तब कानून व्यवस्था पर सवाल उठे थे, लेकिन न केवल आरोपितों को पकड़ा बल्कि उन्हें बाद में कोर्ट से सजा भी मिली। इसके बाद डीआइजी टीटीआर के पद पर सेवा दी।

इंस्पेक्टर उमा दत्त को मिली सेवानिवृत्ति से पहले सौगात

सोलन के अर्की क्षेत्र के उमा दत्त को सेवानिवृत्ति से पहले सराहनीय सेवाओं के लिए राष्ट्रपति पुलिस मेडल के तौर पर बड़ी सौगात मिली है। वह पिछले महीने सब इंस्पेक्टर से पदोन्नत हो इंस्पेक्टर बने और इसी माह सेवानिवृत्त हो जाएंगे। 1985 में कांस्टेबल भर्ती हुए। थाने में मुंशी से जांच अधिकारी के रूप में कार्य किया। कंडाघाट में कार्यरत रहते तीन दिन की नवजात को पड़े हुए देखा तो अस्पताल पहुंचाया और बाद में बाल आश्रम में भिजवाया। दत्त कहते हैं कि इस बच्ची को बचाने का जीवन में काफी फल मिला। उन्होंने वीवीआइपी की सुरक्षा का बेहतर प्रबंधन किया। आजकल सीआइडी में एंटी टेरेरिस्ट सेल के प्रभारी हैं। इन्होंने बेहतरीन इंटेलीजेंस इनपुट एकत्र कीं।

सुनील इंस्पेक्टर से डीआइजी पद तक पहुंचे

कांगड़ा जिला के ज्वालामुखी निवासी सुनील कुमार पुलिस में इंस्पेक्टर भर्ती हुए और डीआइजी जैसे बड़े ओहदे तक पहुंचे। लाहुल के काजा में निचले रैंक पर सेवाएं देते हुए इसी जिले के एसपी बने। काजा के डीएसपी रहते सोचा नहीं था कि कभी पूरे जिले की कमान हाथ में आएगी। डीएसपी से एएसपी के पदों पर चंबा, मंडी व सिरमौर में सेवा दी। प्रवर्तन विभाग से  सीआइडी सुरक्षा व कई बटालियनों में कार्य किया। दिसंबर, 1999 से दिसंबर 2020 तक यूएन मिशन में सेवा दी। विदेश में भी प्रतिभा का लोहा मनवाया। 33 साल का सेवाकाल उपलब्धियों भरा रहा है। मौजूदा समय में डीआइजी जेल के पद पर कार्यरत है। उन्होंने बताया कि उन्हें राष्ट्रपति पुलिस मेडल मिलने की उम्मीदें नहीं थी, लेकिन सूचना मिली तो बहुत खुशी हुई। पुलिस में आने से पहले सुनील कुमार स्थानीय लेखा परीक्षा में भी कार्यरत रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस मेडल के लिए दस साल के कामकाज को बारीकी से देखा गया।

अनसुलझे केसों को सुलझाया सुलझे संतोष ने

हमीरपुर जिला के बस्सी गांव में 26 जनवरी, 1968 में जन्मे संतोष पटियाल ने कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं। वह 1994 में डीएसपी बने। 26 साल के दौरान चौथी बार तरक्की पाई। इनको जांच कार्य में महारत है। बेहतरीन पुलिस कप्तान तो साबित हुए ही, जांच अधिकारी के तौर पर कई ब्लाइंड मर्डर व दुष्कर्म के केसों को सुलझाया। संतोष सुलझे हुए अधिकारी माने जाते हैं। सौम्य स्वभाव के धनी पटियाल ने एसडीपीओ सलूणी, देहरा, एएसपी कांगड़ा, एएसपी बिलासपुर, बनगढ़ आइआरबी में कमांडेंट, धर्मशाला में एसपी विजिलेंस, नॉर्थ रेंज, ऊना, बिलासपुर व कांगड़ा में एसपी जैसे महत्वपूर्ण पदों पर सेवा दी। वर्तमान में डीआइजी नॉर्थ रेंज धर्मशाला हैं। 2006-07 में वाहन चोरों की इंटरस्टेट गैंग पकड़ी। इसमें एक करोड़ के वाहन रिकवर हुए। इसके सरगना को राजस्थान से पकड़ा था। 2002 से 2004 तक धर्मशाला में रेणु सूद मर्डर केस व रानीताल में डबल मर्डर केस सुलझाया। एसपी विजिलेंस रहते केंद्र सरकार के छह भ्रष्ट अधिकारियों को पकड़ा। इनमें चीफ इंजीनियर भी शामिल था।


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