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देसी संतरे के उखड़े पांव, अग्रणी किस्में भी धड़ाम

अश्विनी शर्मा, जसूर दो दशक पहले संतरे के उत्पादन में हिमाचल में छोटे नागपुर के रूप में पहच

By JagranEdited By: Published: Sat, 18 Nov 2017 03:00 AM (IST)Updated: Sat, 18 Nov 2017 03:00 AM (IST)
देसी संतरे के उखड़े पांव, अग्रणी किस्में भी धड़ाम
देसी संतरे के उखड़े पांव, अग्रणी किस्में भी धड़ाम

अश्विनी शर्मा, जसूर

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दो दशक पहले संतरे के उत्पादन में हिमाचल में छोटे नागपुर के रूप में पहचान बनाने वाले नूरपुर में इस बार संतरे की फसल पर ग्रहण लग गया है। क्षेत्र में देसी संतरे के बगीचों की भरमार होती थी और आजकल बगीचे फल से भरे होते थे, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। बागवानों ने देसी संतरे की जगह अधिक लाभ लेने के चक्कर में क्षेत्र में नई किस्म किन्नू आगरा व नागपुरी को आजमाया, लेकिन पर्याप्त सिंचाई के साधन न होने के कारण ये किस्में दम तोड़ती नजर आने लगी हैं। परिणाम यह है कि वर्तमान में बगीचों में संतरे के तुड़ान की जगह सूख रहे पेड़ों का कटान हो रहा है। लोगों की मानें तो आने वाले समय में यहां के लोगों को संतरे का स्वाद चखने के लिए बाहरी क्षेत्रों के संतरे पर निर्भर होना पडे़गा।

नूरपुर क्षेत्र की बात की जाए तो यहां के वासा बजीरा, गनोह, पंजाहड़ा, अगाहर का तालाब, कैहरना, मठोली, जाच्छ, जसूर, छत्रोली, राजा का बाग, कंडवाल, नागाबाड़ी, बाड़ी खड्ड व लोधवां सहित कई स्थानों पर देसी संतरे के बगीचे थे। यहां के बागवानों की आमदनी का यह मुख्य साधन हुआ करते थे। यहां के बागवान संतरे को बाहरी राज्यों को सप्लाई करते थे, लेकिन वर्तमान में अब सूख चुके पेड़ों के अवशेष ही दिखाई दे रहे हैं।

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देसी संतरा हुआ लुप्त

देसी संतरे के लुप्त होने की सबसे बड़ी वजह नई प्रजाति किन्नू आगरा व नागपुरी रही। ये किस्में देसी संतरे से आधी उम्र अर्थात चार से पाच साल में ही फल देना शुरू कर देती हैं, जबकि देसी संतरे का पौधा आठ से दस साल के बीच फल देना शुरू करता था। इसी के फेर में आकर बागवानों ने देसी संतरे की जगह इन किस्मों को अजमाया, लेकिन बागवानों को फायदे की जगह नुक्सान ही झेलना पड़ा।

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किन्नू प्रजाति क्यों नहीं हुई सफल

नूरपुर क्षेत्र की बात की जाए तो यहां के अधिकाश बागवान सिंचाई सुविधा से महरूम हैं। किन्नू आगरा व नागपुरी जैसी किस्मों को पानी की अत्यधिक जरूरत होती है। साथ ही इन प्रजातियों में समय-समय पर आने वाली बीमारियों की ज्यादा देखभाल की भी जरूरत होती है। अन्यथा किन्नू सहित इन प्रजातियों के फल का न तो सही साइज बन पाता है और न ही ज्यादा रसीला होता है। जब गुणवत्ता फल में न हो तो उसका दाम भी न के बराबर ही मिलता है।

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क्या कहते हैं बागवान

बासा के मनोज पठानिया गनोह के जतिंदर पठानिया, पंजाहड़ा के अमित पठानिया, कैहरना के सुभाष शर्मा, अगाहर के कमल सिंह, मठोली के शाम सिंह, जाच्छ के सुनील कुमार, जसूर के दीप राज, छत्रोली के सुरम सिंह, राजा का बाग के रशपाल पठानिया, नागाबाड़ी के सुरजीत सेन, पक्का टियाला के देसराज व कंडवाल के सुच्चा सिंह ने बताया कि किन्नू आगरा व नागपुरी जैसी किस्में बिना सिंचाई सुविधा के क्षेत्र में दम तोड़ रही हैं। इससे किसानों को बड़ा नुक्सान हुआ है।

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किन्नू आगरा व नागपुरी जैसी किस्मों को सबसे अधिक सिंचाई की जरूरत है। समय-समय पर आने वाली बीमारियों की रोकथाम की जरूरत होती है। विभाग लगातार बागवानों को इस विषय पर महत्वपूर्ण जानकारियां भी देता आ रहा है। यदि समय-समय पर आने वाली बीमारियां व बगीचे की देखभाल उचित न हो तो पौधे सूखना शुरू हो जाते हैं। बगीचों की सही देखभाल के लिए बागवान समय समय पर विभागीय परामर्श जरूर लें तभी पर्याप्त मात्रा में फल लिया जा सकता है।

-डॉ. कलेर, फल एवं वानिकी अनुसंधान विभाग के विशेषज्ञ


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