लॉकडाउन में छूटी 38 वर्ष पुरानी धूमपान की आदत, दोस्त संग मजाक व मस्ती में लगाए थे कश
No Tobacco day कभी एक-दो दिन के लिए धूमपान छोड़ भी दिया तो साथियों के संग दोबारा पीना शुरू कर दिया।
चिंतपूर्णी, नीरज पराशर। नारी गांव के सुभाष चंद 1982 में दोस्तों संग मस्ती करते-करते धूमपान करने लगे। कब यह आदत बन गई, खुद सुभाष को भी पता नहीं चला। तब सुभाष महज 23 साल के थे। इसके बाद से वह लगातार दो बंडल बीड़ी और एक पैकेट सिगरेट रोज धुएं में उड़ा देते। कई बार तबीयत भी बिगड़ी और स्वजनों ने बुरी आदत को छोडऩे के लिए समझाया लेकिन सुभाष के दिलो-दिमाग पर ज्यादा असर नहीं पड़ा। कभी एक-दो दिन के लिए धूमपान छोड़ भी दिया तो साथियों के संग दोबारा पीना शुरू कर दिया।
लॉकडाउन उनकी जिदंगी में नया मोड़ लेकर आया। उन्होंने एक हफ्ते भीतर धूमपान छोडऩे का प्रण किया और इस पर वह आज तक कायम हैं। सुभाष का कहना है कि अब वह ङ्क्षजदगी में कभी धूमपान नहीं करेंगे।
दरअसल पहले बस परिचालक व फिर चिंतपूर्णी के नए बस अड्डे पर चाय-पान की दुकान चलाने वाले सुभाष चंद की सुबह धूमपान करने से शुरू होती थी। इस लत से वह खुद भी परेशान थे लेकिन नहीं छूट रही थी। यह इसलिए भी बड़ा सवाल था कि जब भी कोई चालक व परिचालक या दोस्त उनकी दुकान पर चाय पीने या अन्य सामान खरीदने आता था तो बीड़ी या सिगरेट उन्हें भी थमा देता।
बकौल सुभाष उन्हें ऐसे लगता था कि वह ताउम्र इस नशे के जाल से बाहर नहीं निकल पाएंगे, लेकिन 17 मार्च को ङ्क्षचतपूर्णी मंदिर बंद हो गया और दुकानें एक तरह बंद हो गईं। देश में एक सप्ताह बाद लॉकडाउन भी लग गया। इस दौरान तलब भी जगती रही, लेकिन गांव में उन्हें कहीं भी बीड़ी या सिगरेट नहीं देता। ऐसे में सोच लिया कि अब धूमपान करना ही नहीं है।
सुभाष का कहना है कि उनके लिए सही मायनों में लॉकडाउन वरदान बनकर आया। अगर लॉकडाउन न हुआ होता तो उनके लाख चाहने के बावजूद इस 38 वर्ष पुरानी आदत से छुटकारा नहीं मिल पाता।