पिछले 30 सालों से आज तक नहीं हो पाया अकबर नहर का जीर्णोद्घार
इसे सरकारी कार्यों में होने वाली लेटलतीफी मान लीजिए या प्रशासनिक लापरवाही पिछले 30 साल से फाइलों में बन रही ज्वालामुखी शक्तिपीठ की अकबर नहर धरातल पर नहीं बन पाई है। मंदिर ट्रस्ट ज्वालामुखी व मंदिर प्रशासन के तमाम दावे प्रस्ताव पारित करने तक ही सीमित रह गए हैं।
ज्वालामुखी, जेएनएन। इसे सरकारी कार्यों में होने वाली लेटलतीफी मान लीजिए या प्रशासनिक लापरवाही पिछले 30 साल से फाइलों में बन रही ज्वालामुखी शक्तिपीठ की अकबर नहर धरातल पर नहीं बन पाई है। मंदिर ट्रस्ट ज्वालामुखी व मंदिर प्रशासन के तमाम दावे प्रस्ताव पारित करने तक ही सीमित रह गए हैं।
अकबर नहर को दुरुस्त करके इसे श्रद्गालुओं को दिखाने व धार्मिक पर्यटन को आकर्षित करने के लिए मंदिर प्रशासन पिछले 30 साल से इसे नया रूप देने का दावा कर रहा है। इसके लिए बाकायदा 25 से भी अधिक बार न्यास की बैठकों में एजेंडा रखा जा चुका है। दावा किया जाता रहा है कि बहुत जल्द अकबर नहर का जीर्णोद्घार करके इसे धार्मिक पर्यटकों के लिए प्रस्तुत किया जाएगा।
विडंवना है कि इस ऐतिहासिक नहर का जीर्णोंधार तो दूर मुरम्मत के लिए कभी एस्टीमेट तक आधिकारिक तौर पर नहीं बनाया गया। मात्र न्यास के प्रस्तावों व प्रशासनिक घोषणाओं तक सिमटी अकबर नहर हजारों साल पुरानी मानी जाती है। मंदिर प्रशासन तथा मंदिर न्यास दृढ़ इच्छाशक्ति जताए तो अकबर नहर को नया रूप देकर पर्यटकों को आकर्षित किया जा सकता है।
500 साल पुरानी बताई जाती है अकबर नहर
विश्व प्रसिद्ध शक्तिपीठ जवालामुखी के साथ लगते कालीधार जंगल से निकलने वाली अकबर नहर अकबर काल में निर्मित बताई जाती है।इसे 500 साल पुराना होने का दावा किया जाता है। बताया जाता है कि ज्वालामुखी मंदिर में दैवीय शक्ति से हजारों सालों से बिना तेल घी के अनवरत जल रही अखंड ज्योतियों को बुझाने की खातिर अकबर ने जंगल से नहर के माध्यम से पानी की तेज धारा ज्योतियों पर डलवाई थीं ताकि पवित्र ज्योतियों को शांत किया जा सके। लेकिन इस प्रयास के बाबजूद भी अकबर को सफलता नहीं मिली थी। माता की पवित्र ज्योतियां पानी के ऊपर भी जल उठी थीं।जिससे अकबर को दिव्य शक्ति का आभास हुआ था।
कहाँ से निकलती है नहर
अकबर नहर प्राचीन टेड़ा मंदिर के पास से निकाली गई थी। इस समय भी कई जगह इसके अवशेष मौजूद हैं।जो कि नहर के रूप में है। कई जगह इसे प्रत्यक्ष देखा जा सकता है जबकि कई जगह यह जमीदोंज हो चुकी है।
क्या कहता है पुरातत्व विभाग
रोचक है कि ज्वालामुखी मंदिर प्रशाशन जहां वर्षों से प्रस्ताव पर प्रस्ताव डालकर अकबर नहर को नया रूप देने का दावा करता है बहीं पुरातत्व विभाग की नजर इस नहर पर तीन महीने पहले पड़ी है। विभाग की शिमला से आई विशेष टीम नहर के अवशेषों को अपने साथ लेकर गई है ताकि इसके निर्माण की सही तरीके से अनुसंशा की जा सके। अभी तक इस बारे में अंतिम रिपोर्ट नहीं बन पाई है।
क्या कहता है मंदिर न्यास
मंदिर न्यास अकबर नहर के विषय पर पूरी तरह से प्रशाशनिक लापरवाही को जिम्मेदार ठहराता है। ट्रस्ट के सदस्यों देशराज भारती, जेपी दत्ता, प्रशांत शर्मा ,त्रिलोक चौधरी, शशि चौधरी, कृष्णस्वरूप शर्मा का कहना है कि न्यास केवल प्रस्ताव पारित करने की ही शक्ति रखता है। प्रशाशनिक नजरअंदाजि व लापरवाही के कारण नहर का कार्य वर्षों से अधर में है।
क्या वोले मंदिर अधिकारी
मंदिर अधिकारी जगदीश शर्मा ने बताया कि नहर को लेकर कई बार प्रयास हुए हैं लेकिन कार्य नहीं हो पाया। 3 महीने पहले पुरातत्व विभाग की टीम इस नहर को देखने आई थी। अधिकारी नहर के अवशेष लेकर गए हैं। अभी तक उनके पास रिपोर्ट नहीं आई है। रिपोर्ट आने के बाद ही नहर के स्वरूप को लेकर मंदिर प्राशासन अपने स्तर पर निर्णय ले सकता है। जल्दी ही रिपोर्ट मंगवाएंगे।
राज्य पुरातत्व एवं भाषा संस्कृति विभाग शिमला की निदेशक कुमुद सिंह ने कहा कि यह नहर वास्तव में कितनी पुरानी है जांच रिपोर्ट आने के बाद ही पता चल पाएगा। हमारी सर्वे टीम कुछ समय पहले इस नहर का सर्वे करने गई थी। नहर के अवशेषों की जांच रिपोर्ट अभी नहीं आई है। इसके आने के बाद ही अगली कार्यवाही का निर्धारण किया जा सकता है।
जवालामुखी नगर परिषद के पार्षद ज्योति शंकर शर्मा ने अफसोस जताया है कि कई साल बाद भी इस ऐतिहासिक नहर का कायाकल्प नहीं हो सका। उन्होंने कहा प्रशाशनिक लापरवाही इसके लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है।
कृष्णस्वरूप शर्मा ने कहा कि मंदिर प्रबंधन चाहे तो क्या नहीं हो सकता, अकबर नहर को संवारकर धार्मिक पर्यटन को बढ़ाया जा सकता है।लेकिन पता नहीं क्यों नहर के लेकर सिर्फ घोषणाएं ही कि जाती हैं। हकीकत में कुछ नहीं।
जगदीश शर्मा ने कहा कि 30 साल से सुन रहे हैं कि अकबर नहर बनने वाली है। अभी तक बनी नहीं। लगता नहीं कि यह कभी बन भी पाएगी। प्रशासन की घोषणाएं,व न्यास के प्रस्ताव सब कुछ लोगों को गुमराह करने के हथकंडे हैं।
बबलू कुमार ने कहा कि मंदिर प्राशासन हो या कोई और अब बिना देरी किये इस नहर को बनाकर कार्य होना चाहिए। इससे धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। लोगों को रोजगार में सुविधा मिलेगी।