पहाड़ी राज्य में न जल साक्षरता आंदोलन चला, न बड़े दलों का एजेंडा बना, एक तिहाई बस्तियों में कम पानी मिल रहा
Himachal Water Crisis हिमाचल के माननीयों को जल संरक्षण व संग्रहण का पाठ भी पढ़ाया पर इस मुद्दे पर संवेदनशीलता नीतियों में नजर नहीं आई। देश के उच्चतर साक्षरता वाले इस पहाड़ी राज्य में न तो जल साक्षरता आंदोलन चला और न ही यह बड़े दलों का एजेंडा बन पाया।
शिमला, रमेश सिंगटा। रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून। रहीम का यह दोहा पानी के महत्व को रेखांकित करता है। जल गुरु के नाम से विख्यात राजेंद्र सिंह से लेकर तमाम विशेषज्ञ पहाड़ों की जवानी और पानी को व्यर्थ न गंवाने की सलाह दे चुके हैं। राजेंद्र सिंह ने हिमाचल के माननीयों को जल संरक्षण व संग्रहण का पाठ भी पढ़ाया पर इस मुद्दे पर संवेदनशीलता नीतियों में नजर नहीं आई है। देश के उच्चतर साक्षरता वाले इस पहाड़ी राज्य में न तो जल साक्षरता आंदोलन चला और न ही यह बड़े दलों का एजेंडा बन पाया। इस कारण जल के लिए हिमाचल प्रदेश विकल है।
हिमाचल में अभी एक तिहाई बस्तियों में कम पानी मिलता है। प्रदेश में अब जलजीवन मिशन के तहत हर घर को पेयजल के लिए नल से जोड़ा जा रहा है। जलजीवन मिशन वर्ष 2024 तक चलेगा। इसके तहत सभी नलों से पर्याप्त जल मिलेगा। अभी तक 12 लाख से ज्यादा घरों को नल का कनेक्शन दे दिया गया है। जून तक 17 लाख घरों को नल का जल मिलेगा लेकिन पानी से कहां से आएगा, अभी इस संबंध में दावों के अलावा कुछ स्पष्ट नहीं है। फर्क सिर्फ इतना है कि पहले सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य महकमा था जो अब जल शक्ति विभाग हो गया है।
विभाग का नाम जरूर बदला पर बुनियादी फर्क नहीं आया। इतना जरूर हुआ कि विभाग की राजनीतिक शक्ति का केंद्र धर्मपुर बन गया। इसे राज्य विधानसभा में पूर्व मंत्री अनिल शर्मा के उस बयान से समझा जा सकता है कि सरकार ने मंडी को जलजीवन मिशन में केवल 30 लाख रुपये जबकि धर्मपुर को 260 करोड़ रुपये आवंटित किए।
बजट आवंटन में धर्मपुर पर मेहरबानी के आरोप नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री समेत विपक्ष के नेताओं ने लगाए।
जलशक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ने राजनीतिक चतुराई के साथ आरोपों का जवाब दिया। उन्होंने स्वीकारा कि इस बार जल संकट से जूझना पड़ेगा क्योंकि सर्दी में पर्याप्त हिमपात व बारिश नहीं हुई। इसका असर पेयजल व सिंचाई योजनाओं पर पड़ रहा है। प्रदेश की राजधानी एवं पर्यटन नगरी शिमला कुछ साल पहले सबसे बड़ा जल संकट झेल चुकी है। इस बार गर्मी दस्तक देने वाली है। शिमला ही नहीं, प्रदेश के कई शहर व गांव गर्मी में पेयजल किल्लत से जूझते हैं।
हिमाचल को प्रकृति ने अपार जल संसाधन दिए हैं। यहां की जीवनदायिनी नदियों में पानी की कमी नहीं है। पहाड़ के पानी से पड़ोसी राज्यों के खेतों की फसलें लहलहाती हैं लेकिन अपने राज्य में धारों और ऊंचाई वाले इलाकों में बसे लोगों को पानी नहीं मिल पाता है। उचित जल प्रबंधन के बिना पहाड़ का पानी गांवों से नीचे बहने दिया जाता है। उसके बाद इसे जिस मात्रा में लिफ्ट करना होता है, उससे कहीं कम किया जाता है। नीचे से ऊपर पानी ले जाना सरकार के लिए भी महंगा साबित होता है। जल प्रबंधन की कभी ज्यादा चिंता नहीं की गई है। अब भी यह चिंता कहीं नजर नहीं आ रही है।
19 हजार बस्तियों में मानक पूरे नहीं
हिमाचल में 53604 बस्तियां हैं। इनमें से 34 हजार बस्तियों में तय मानकों के हिसाब से पानी मिल रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देशों के अनुसार केंद्र ने प्रति व्यक्ति, प्रतिदिन 70 लीटर पानी तय किया है। जलशक्ति विभाग की मानें तो इन बस्तियों में यह पानी मिल रहा है। करीब 19 हजार बस्तियां ऐसी हैं जहां मानक पूरे नहीं हो रहे हैं। इन बस्तियों में रोजाना प्रति व्यक्ति 20 से 50 लीटर के बीच पानी मिल रहा है। यह पानी की औसत आपूर्ति है। गर्मी के दिनों में लगभग आधी योजनाओं में पानी कम हो जाता है। उस दौरान पेयजल आपूर्ति तीसरे व पांचवें दिन होती है। सैकड़ों गांवों में सप्ताह मेें एक दिन पानी मिल पाता है।
21527 बस्तियों में प्रति व्यक्ति मिल रहा 55 लीटर से कम पानी
प्रदेश में वर्ष 2003 में सर्वे हुआ था। इसमें पाया गया था कि तब यहां 51848 बस्तियां थीं। यह सर्वे वर्ष 2005 में पूरा हुआ। इसके बाद नेशनल रूरल ड्रिंकिंग वाटर प्रोग्राम एक अप्रैल 2016 में शुरू हुआ। इसके अनुसार बस्तियों की संख्या बढ़कर 53604 हो गई। ताजा आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 के अनुसार हर घर में स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करवाना राज्य सरकार की प्राथमिकता है। 20 जनवरी 2021 तक राज्य में 55279 बस्तियां थीं। इनमें से 33752 बस्तियों में पूर्ण रूप से 55 लीटर या इससे अधिक प्रति व्यक्ति, प्रति दिन पानी मुहैया हो रहा है। वहीं, 21527 बस्तियों में 55 लीटर से कम पानी प्रति व्यक्ति, प्रतिदिन मिल रहा है।
कंपनी पिला रही पानी
प्रदेश में योल, कसौली, सुबाथू, डगशाई, डलहौली व बकलोह सेना के छावनी क्षेत्र हैं। इनमें पानी की आपूर्ति स्थानीय निकाय के माध्यम से की जाती है। शिमला और धर्मशाला दो स्मार्ट सिटी हैं। शिमला में पहले पानी की आपूर्ति जलशक्ति विभाग करता था। बाद में ग्रेट वाटर सप्लाई सर्कल गठित किया गया। अब यही कार्य कंपनी कर रही है। राजधानी में पानी का निजीकरण हो गया है। लोग पेयजल के बढ़ते दाम से भी खफा हैं। सरकार और नगर निगम ने अपनी जिम्मेदारी से हाथ पीछे खींच लिए हैं। शिमला में पानी की योजना वर्ष 1875 में तैयार हुई थी। इसके बाद 1889, 1914, 1923, 1974, 1982, 1992 व 2008 में स्कीम में बढ़ोतरी की गई। इसके बावजूद बढ़ती आबादी के लिए पेयजल योजना में बढ़ोतरी नाकाफी साबित हुई है।
इन शहरों के लिए अलग पेयजल योजना
प्रदेश में 54 में से कई शहरों के लिए अलग पेयजल योजना है। नयनादेवी, नादौन, रामपुर, ऊना, चुुवाड़ी, कांगड़ा, ज्वालामुखी, नाहन, रोहड़ू, संतोषगढ़, मैहतपुर, देहरा, चंबा, रिवालसर, अर्की, दौलतपुर, जोगेंद्रनगर, मनाली, कुल्लू, कोटखाई, सुजानपुर, घुमारवीं, चौपाल, सुन्नी, पालमपुर, गगरेट, नगरोटा, हमीरपुर, मंडी, नालागढ़, नारकंडा, नूरपुर, पांवटा, ठियोग, डलहौजी, शाहतलाई, राजगढ़, सरकारघाट, भोटा, सोलन, भुंतर, जुब्बल व धर्मशाला के लिए अलग पेयजल योजना बनाई गई है।
शिलाई में बिकता है पानी
सिरमौर जिला के शिलाई में करीब 15 हजार की आबादी वाला कस्बा उभरा है। इस कस्बे में हर सीजन में पानी की किल्लत रहती है। कस्बे में पानी बिकता है। गर्मी में तो पानी बंद बोतलों की तर्ज पर महंगा हो जाता है। साथ में टोंस नदी सटी है। आज तक वहां से लिफ्ट स्कीम नहीं बनी। ग्रेविटी की स्कीम भी सिरे नहीं चढ़ पाई। हालांकि मौजूदा सरकार ने नई स्कीम तैयार की है। करोड़ों की लागत वाली यह स्कीम बनने में समय लगेगा। सरकार का दावा है कि यह कार्य प्राथमिकता के आधार पर किया जा रहा है।
सूख रहे पेयजल स्रोत
हिमपात कम होने के कारण प्रदेश में पेयजल स्रोत सूख रहे हैं। सैकड़ों योजनाएं खासकर ग्रेविटी वाली में पानी की मात्रा काफी कम हो गई हैै। गर्मी में हालात और बदतर होने के आसार हैं। इस कारण विभाग को अभी से वैकल्पिक स्रोतों से स्कीमों को जोडऩा होगा अन्यथा पानी के लिए हिमाचल में हाहाकार मचेगा।
सामान्य से 26 फीसद कम बारिश
आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 के अनुसार हिमाचल में वर्ष 2020 में मानसून के मौसम में जून से सितंबर तक कुल्लू, बिलासपुर व ऊना में सामान्य बारिश हुई। चंबा, हमीरपुर, कांगड़ा, किन्नौर, मंडी, शिमला, सिरमौर व सोलन में बारिश कम हुई। पूरे सीजन में सामान्य से 26 फीसद कम बारिश हुई।
कितनी हुई बारिश
- जिला,वास्तविक,सामान्य,प्रतिशत
- बिलासपुर,957,874,83.9
- चंबा,477,1052,-574,-55
- हमीरपुर,819,1019,-200,-20
- कांगड़ा,1219,1596,-377,-24
- किन्नौर,115,252,-137,-54
- कुल्लू,528,504,24,5
- लाहुल,106,395,-289,-73
- मंडी,816,1062,-246,-23
- शिमला,459,644,-185,-29
- सिरमौर,854,1350,-496,-37
- सोलन,789,983,-202,-21
- ऊना,741,820,-79,-10
- औसत,567,764,-196,-26 (बारिश मिलीमीटर में, आंकड़े जून से सितंबर 2020 तक)
सीवरेज सुविधा
शिमला, पालमपुर, मंडी, ज्वालामुखी, नयनादेवी, चंबा, बिलासपुर, रोहड़ू, घुमारवीं, मनाली, जोगेंद्रनगर, अर्की, रामपुर, कुल्लू, भुंतर, ऊना, धर्मशाला, सुंदरनगर व जुब्बल में सीवरेज सुविधा है। दो ग्रामीण क्षेत्र रिकांगपिओ व सराहां को भी सीवरेज सुविधा मिल चुकी है। इसके अलावा सोलन, पांवटा, सरकाघाट, कुल्लू, मैहतपुर, संतोषगढ़, डलहौजी, चुवाड़ी, हमीरपुर, कांगड़ा, नगरोटा, सुजानपुर, नादौन, कोटखाई, नारकंडा, ठियोग, नूरपुर, सुन्नी, देहरा, बिलासपुर, तलाई, गगरेट, रिवाल्सर, बद्दी व नालागढ़ में कार्य प्रगति पर है।
जलजीवन मिशन
- 90:10 के अनुपात में धन आवंटित कर रहा है केंद्र राज्य को।
- 555 करोड़ रुपये जलजीवन मिशन के तहत खर्चे।
- 663 करोड़ रुपये की देनदारी हिमाचल की केंद्र के पास है। इसे इस वित्त वर्ष में चुकाया जाना है।
- 1328 योजनाएं स्वीकृत हो चुकी हैं जलजीवन मिशन के तहत प्रदेश की। इन योजनाओं पर 555 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं।
- 931 योजनाओं में सुधार एवं संवद्र्धन का कार्य हो रहा है।
जलजीवन मिशन पर खर्च
- जोन,आवंटित राशि, खर्च राशि
- शिमला,9876.21,9444.67
- हमीरपुर,19050.43,18649.62
- मंडी,14975.20,14460.89
- धर्मशाला,13257.29,11787.13
- डब्ल्यूएसएसओ,1734.48,1238.79
- कुल, 58895.59 लाख,55581.10 लाख (राशि लाख रुपये में, डब्ल्यूएसएसओ जलशक्ति विभाग का विंग है)
सूखे की ओर बढ़ रहा हिमाचल
जलशक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर का कहना है जलजीवन मिशन के धन आवंटन पर प्रदेश सरकार किसी भी क्षेत्र के साथ कोई भेदभाव नहीं कर रही है। दलगत, राजीतिक आधार पर पैसों का आवंटन नहीं किया गया है। इस साल सूखे के हालत ज्यादा नजर आ रहे हैं। हिमाचल प्रदेश सूखे की ओर बढ़ रहा है। पानी के लिए मुश्किल बढ़ सकती है। जलजीवन मिशन में पैसों का आवंटन विधानसभा क्षेत्रवार नहीं बल्कि विभाग के जोनवार होता है।
भू-जलस्तर में आई गिरावट
प्रदेश के मैदानी इलाकों के भू-जलस्तर में गिरावट आ गई है। इस पानी का जरूरत से ज्यादा दोहन हो रहा है। प्रदेश की सात घाटियों में से तीन में हालात ङ्क्षचताजनक हैं। इस पर भू-जल विज्ञानियों ने ङ्क्षचता जताई है। यह स्तर खासकर कालाअंब क्षेत्र में ज्यादा गिर रहा है। वहां उद्योगों के कारण भू-जल का अत्यधिक दोहन हो रहा है। इसके स्तर में एक दशक के अंदर दो मीटर तक की गिरावट आ गई है। इनके अलावा जल दूषित भी काफी हो गया है। भू-जल बोर्ड साल में चार बार राष्ट्रीय हाईड्रोग्राफ नेटवर्क स्टेशन से जल का स्तर मापता है। अभी तक के अध्ययन यही कहते हैं कि पिछले एक दशक में से दो मीटर तक की गिरावट आई है। यहीं नहीं, उद्योग प्रदूषित पानी फेंककर धरा की कोख में धीमाा जहर फैला रहे हैं। इससे पानी की गुणवत्ता प्रभावित हो गई है। विज्ञानियों ने चेताया है कि अगर इसे न रोका गया तो प्रदूषित पानी को शुद्ध करने में दशकों लगेंगे।
धरती के भीतर जमा हो रहा बारिश का औसत 13 फीसद पानी
भू-विज्ञानियों के अनुसार वर्षभर में होने वाली कुल बारिश का कम से कम 31 फीसद पानी धरती के भीतर रिचार्ज के लिए जाना चाहिए। एक शोध के मुताबिक कुल बारिश का औसत 13 फीसद पानी ही धरती के भीतर जमा हो रहा है। वर्ष 1997 में देश में जलस्तर 550 क्यूबिक किलोमीटर था लेकिन ताजा अनुमान के मुताबिक यह गिरकर 360 क्यूबिक किलोमीटर रह गया है।