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पांवटा साहिब में 4.55 करोड़ में से 3 करोड़ खर्चे, डस्टबिन एक भी नहीं हुआ संचालित

जिला सिरमौर के पांवटा साहिब नगर परिषद क्षेत्र में 2016 में 4.55 करोड़ की भूमिगत डस्टबिन योजना मंजूर हुई थी। इस योजना के तहत 13 वार्डो में 80 भूमिगत डस्टबिन लगाए जाने थे। वर्ष 2019-20 में इस योजना पर तीन करोड़ रुपये खर्च भी दिए।

By Richa RanaEdited By: Published: Sat, 24 Sep 2022 10:00 PM (IST)Updated: Sat, 24 Sep 2022 10:00 PM (IST)
पांवटा साहिब में 4.55 करोड़ में से 3 करोड़ खर्चे, डस्टबिन एक भी नहीं हुआ संचालित
पांवटा साहिब नगर परिषद क्षेत्र में 2016 में 4.55 करोड़ की भूमिगत डस्टबिन योजना मंजूर हुई थी।

नाहन, जागरण संवाददाता। जिला सिरमौर के पांवटा साहिब नगर परिषद क्षेत्र में 2016 में 4.55 करोड़ की भूमिगत डस्टबिन योजना मंजूर हुई थी। इस योजना के तहत 13 वार्डो में 80 भूमिगत डस्टबिन लगाए जाने थे। वर्ष 2019-20 में इस योजना पर तीन करोड़ रुपये खर्च भी दिए। मगर हैरानी यह है कि एक भी डस्टबिन संचालित नहीं हो सका। ऐसा होने से करोड़ों रुपयें की जर्मन तकनीक वाली यह योजना सफेद हाथी ही साबित हो रही है।

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सनद् रहे कि धर्मशाला, सुंदरनगर व पांवटा शहर को संपूर्ण स्वच्छ बनाने की कवायद 2016 में शुरू हुई।

इन तीन शहरों में जर्मन तकनीक से भूमिगत डस्टबिन लगाने का सर्वे हुआ। हिमाचल शहरी विकास विभाग ने पांवटा शहरी क्षेत्र में 13 वार्डों में इस योजना के लिए 80 स्थल चिन्हित किए। वर्ष 2019-20 में करीब 54 डस्टबीन लगा भी दिए। आगे का कार्य रूकने पर शेष डस्टबीन मेला मैदान में जंग खा रहे हैं। करोड़ों की लागत वाली यह योजना सफेद हाथी साबित हो रही है। शहरी क्षेत्र में जो 54 डस्टबिन लगाए गए थे, उनमें से एक भी डस्टबिन संचालित नहीं है। एनजीटी की शहरी क्षेत्रों को डस्टबिन फ्री योजना के बाद इस योजना का भविष्य में संचालन की संभावना कम ही है। नगर परिषद पांवटा के कार्यकारी अधिकारी अजमेर ठाकुर ने कहा कि यह योजना बंद हो चुकी है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत और एनजीटी के निर्देश पर शहरी क्षेत्र को डस्टबीन फ्री किया जा रहा है। लोगों के घरों से ही वाहनों के माध्यम से कूड़ा उठाया जा रहा है।

 आधुनिक पांवटा शहरी कचरा प्रबंधन योजना

पांवटा साहिब नगर परिषद क्षेत्र में बेहतर कचरा प्रबंधन की 2016 में योजना तैयार हुई थी। इस आधुनिक जर्मन तकनीक में भूमिगत कूड़ेदान भरने पर सेंसर से एक संदेश योजना के कंट्रोल कक्ष में पहुंंचता। इसके बाद क्रेन गाड़ी से डस्टबिन को खाली करके वापस वहीं पर रख दिया जाता। घरों से निकलने वाले कूड़े को अलग-अलग डस्टबिन के खांचों में डाला जाना था। इसमें जैविक यानी सडऩे वाले कचरे से वायोगैस बनाने की योजना थी। गैर-जैविक यानी न सडऩे वाले कचरे जैसे पोलिथीन आदि से बिजली बनाने या उसे सीमेंट प्लांट भेजने की योजना थी। यही नहीं व्यर्थ कचरे जैसे कांच, बैटरी, ई-कचरा, पेंट व प्लास्टर आदि को भूमि में दबाकर खत्म किए जाने का भी प्रावधान किया गया था।


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