दैनिक जागरण ने सांसद किशन कपूर को सौंपी जनता की उम्मीदें, कांगड़ा-चंबा के ये मुद्दे किए उजागर
दैनिक जागरण ने हर वोट कुछ कहता है मुहिम के तहत कांगड़ा-चंबा लोकसभा क्षेत्र का घोषणापत्र सांसद किशन कपूर को सौंपा।
धर्मशाला, जेएनएन। दैनिक जागरण ने हर वोट कुछ कहता है मुहिम के तहत कांगड़ा-चंबा लोकसभा क्षेत्र का घोषणापत्र सांसद किशन कपूर को सौंपा। घाेषणा पत्र प्रस्तुतीकरण समारोह होटल सेंटर प्वाइंट में हुआ। कार्यक्रम में कांगड़ा संसदीय क्षेत्र से संसद सदस्य किशन कपूर बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे। कार्यक्रम में केसीसी बैंक के अध्यक्ष डॉ. राजीव भारद्वाज भी मौजूद रहे। लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान दैनिक जागरण ने कांगड़ा संसदीय क्षेत्र से संबंधित राष्ट्रीय, राज्य व स्थानीय मुद्दों पर जनता की आवाज को बुलंद किया था और इन मुद्दों को लेकर ही हर वोट कुछ कहता है कॉलम के तहत इन्हें प्रमुखता से प्रकाशित किया था। इसमें आमजन की सहभागिता भी रही थी। कार्यक्रम में विभिन्न संगठनों व संस्थाओं के सदस्य भी उपस्थित रहे।
राष्ट्रीय मुद्दे
1. हवाई अड्डे का सर्वेक्षण हुआ विस्तार नहीं
समस्या: गगल स्थित कांगड़ा हवाई अड्डा अब भी हवाई पट्टी के विस्तार की बाट जोह रहा है। इसके लिए सर्वेक्षण तो होते रहे लेकिन विस्तार नहीं हो पाया है। दिल्ली व जयपुर के लिए हवाई सेवाएं यहां से हो रही हैं। सामरिक दृष्टि से भी सेना ने आपात स्थिति में इसके प्रयोग की संभावनाओं को तलाशा और विस्तार के लिए कुछ कदम भी बढ़ाए, लेकिन परिणाम शून्य ही रहा। यहां बड़े विमानों को उतारने के लिए हवाई पट्टी को 1370 से बढ़ाकर 1920 मीटर बनाया जाना था। वर्तमान में 1370 मीटर लंबी और 30 मीटर चौड़ी हवाई पट्टी है। यहां पर बड़े जहाज उतरने से पर्यटन उद्योग को पंख लगने की उम्मीद है।
क्या हैं कारण
2013 से शुरू हुई विस्तारीकरण की कवायद के बाद हर छह माह में कोई न कोई केंद्रीय टीम पहुंची और सर्वेक्षण कर रिपोर्ट बनाती रही। प्रदेश में भाजपा सरकार के गठन के बाद विस्तारीकण का काम बंद हो गया। तर्क दिया कि विस्तारीकरण की बजाए मंडी में अंतरराष्ट्रीय स्तर का हवाई अड्डा बनाया जाएगा। इससे आठ गांवों के लोगों को राहत मिली लेकिन राजनीति ने कांगड़ा हवाई अड्डे के वजूद पर संकट के बादल ला दिए हैं।
क्या है निदान
अगर यहां हवाई पट्टी विकसित होगी तो बड़े विमानों की उड़ान संभव हो सकेगी। बड़े विमान आने से किराया कम होगा। इससे पर्यटन उद्योग को पंख लगेंगे। साथ ही प्रदेश की आर्थिकी सुदृढ़ होगी। लेकिन यह सब राजनीतिक इच्छाशक्ति के बिना संभव नहीं पाएगा। केंद्र व प्रदेश सरकार को अन्य जगह पर नए हवाई अड्डे बनाने की बजाय इसी एयरपोर्ट के विस्तार के लिए कदम उठाने चाहिए।
2. हवाबाजों के लिए वादे भी हुए हवा
समस्या: हिमाचल प्रदेश की आर्थिकी का मुख्य स्रोत बागवानी के बाद सिर्फ पर्यटन ही है। ऐसे में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए पैराग्लाइडिंग भी एक जरिया है। लेकिन अनदेखी से विश्व प्रसिद्ध बैजनाथ के बिलिंग स्थित पैराग्लाइडिंग साइट भी बदहाली पर आंसू बहा रही है। स्थानीय ही नहीं देसी-विदेशी हवाबाजों के लिए भी यह स्थान खास है। विश्वभर से आने वाले पायलटों का भी यह दावा है कि पैराग्लाइडिंग के लिए बिलिंग घाटी से बेहतर विश्व में कोई और साइट नहीं है। सरकार की ओर से पिछले वर्ष घोषणा हुई कि त्रियुंड और चंबा के खजियार में पैराग्लाइडिंग साइट विकसित की जाएंगी लेकिन धरातल पर कुछ नहीं हुआ।
3. राजनीति का शिकार रहा केंद्रीय विश्वविद्यालय
समस्या: कांगड़ा ही नहीं हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से भी जुड़ा केंद्रीय विश्वविद्यालय शुरू से ही भाजपा व कांग्रेस के बीच राजनीति का अखाड़ा रहा है। घोषणा के 10 साल तक इसके निर्माण के लिए खींचतान रही। लोकसभा चुनाव की घोषणा के ऐन पहले इसके निर्माण की कुछ तस्वीर साफ तो हुई है। फरवरी में देहरा व जदरांगल (धर्मशाला) स्थित भूमि पर इसके भवनों का शिलान्यास किया गया है। धर्मशाला में 70 फीसद, जबकि देहरा में 30 फीसद भाग बनेगा लेकिन इसके भवनों की बहार कब होगी, यह भी भविष्य में पता चलेगा। तीन-तीन अस्थायी परिसरों में चल रही सीयू में पढऩे वाले छात्रों के लिए समस्याओं का अंबार है।
क्या है निदान
अस्थायी भवन होने के कारण केंद्रीय विश्वविद्यालय प्रशासन उचित ढंग से छात्रों व स्टाफ को सुविधाएं नहीं दे पा रहा है। सभी दलों को राजनीति से ऊपर उठकर जहां भी अब जमीन उपलब्ध है, वहां काम होना चाहिए। नए बनने वाले सांसद को जल्द वन विभाग की स्वीकृति दिलाने के प्रयास करवाने चाहिए। इसके बाद केंद्र सरकार से अधिक बजट सुविधाएं जुटाने के प्रयास करने होंगे। सांसद को इसे आदर्श विश्वविद्यालय बनाने के लिए प्रयास करने होंगे।
- राज्य स्तरीय मुद्दे
1. जख्म बने अब नासूर, राहत की है आस
समस्या: पौंग बांध विस्थापितों के लिए विस्थापन के जख्म अब नासूर बन गए हैं। चुनाव में इनके पुनर्वास का मामला सभी उठाते हैं लेकिन बाद में परिणाम सिफर रहता है। पुनर्वास न होने का दर्द विस्थापित अब तक झेल रहे हैं। विस्थापितों की तीसरी पीढ़ी भी अब बुजुर्गों के हक हासिल करने के लिए संघर्षरत है। पौंग बांध में 1972 में शुरू हुए जलभराव के बाद जिला कांगड़ा की तहसील देहरा के 339 गांवों के करीब 30 हजार परिवार बेघर हो गए। विस्थापितों के पुनर्वास के लिए राजस्थान के श्रीगंगानगर जिला में 2.20 हजार एकड़ भूमि आरक्षित की गई थी। कुल 20722 पौंग विस्थापितों में से 16352 घोषित पात्र विस्थापितों को राजस्थान सरकार ने वर्ष 1966 से 1980 तक श्रीगंगानगर की आरक्षित भूमि में आवंटन किया लेकिन अब भी 5418 आवंटन शेष है।
क्या है निदान
दोनों राज्यों की सरकारों के बीच मामला सुलझाया जाना चाहिए। इसके लिए सांसद को केंद्र सरकार के समक्ष यह मामला प्रमुखता से उठाने की जरूरत है। जिन लोगों को अब तक जमीन नहीं मिली है उनके पुनर्वास के लिए गंभीरता से यह मामला उठाया जाना चाहिए। राज्य सरकार को भी इन लोगों के पुनर्वास के लिए यदि राजस्थान में जमीन नहीं मिलती है तो प्रदेश में ही इनके लिए जमीन का प्रावधान किया जाना चाहिए।
2. ट्रैकरों के लिए मुश्किल डगर, जोखिम से बेखबर
समस्या: विश्वविख्यात त्रियुंड सहित धौलाधार की पहाडिय़ां ट्रैकरों को खूब आकर्षित करती हैं। हर साल हजारों ट्रैकर यहां पर ट्रैकिंग के लिए जाते हैं लेकिन यहां पर सुविधाएं न होने के कारण उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यहां के रास्ते भी जोखिम भरे हैं लेकिन इसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं है। ट्रैकरों के लिए त्रियुंड में रहने के लिए भी खास इंतजाम नहीं हैं। कई बार पर्यटक यहां हादसे के शिकार हो चुके हैं लेकिन प्रशासन उनकी सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं दिखता। यहां पहुंचने के लिए एक मुख्य मार्ग के अलावा तीन रास्ते और भी हैं, जहां कोई सुरक्षाकर्मी तैनात नहीं रहता। त्रियुंड में वन विभाग का एक गेस्ट हाउस तो है लेकिन उसमें सीमित संख्या में ही ट्रैकर ठहर सकते हैं। 31 साल में इन पहाडिय़ों पर 33 लोग लापता हो चुके हैं। न तो प्रशासन और न ही पर्यटन विभाग ने इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाया है।
क्या है निदान
ट्रैकिंग क्षेत्र से जुड़े विभाग पूर्णतया निष्क्रिय हैं अगर सभी विभाग मिलकर काम करें तो ट्रैकिंग क्षेत्र से बेरोजगारी को दूर किया जा सकता है। पर्यटकों के लिए टूरिस्ट गाइड की अनिवार्यता होनी चाहिए ताकि पर्यटक सुरक्षित ट्रैकिंग कर सकें। नई साइट भी विकसित की जानी चाहिए।
3. दावों से आगे नहीं बढ़ा चंबा सीमेंट कारखाना
समस्या: संसदीय क्षेत्र में बेरोजगारी की भी गंभीर समस्या है। यहां पर कोई भी बड़ा उद्योग न होने के कारण युवाओं को रोजगार के लिए अन्य राज्यों में जाना पड़ता है। चंबा जिला में युवाओं को सिकरीधार में सीमेंट कारखाने से रोजगार मिलने की उम्मीद जगी थी लेकिन यह कारखाना धरातल पर नहीं उतर पाया है। सिकरीधार में सीमेंट कारखाना लगाने का सिर्फ वादा ही रहा है। चंबा जैसे जिले के विकास के लिए सीमेंट कारखाना मील का पत्थर साबित हो सकता था। यहां पर सीमेंट कारखाना लगने से चंबा व कांगड़ा जिला के लोगों को रोजगार के अवसर मिलने थे। इसके अलावा ट्रक ऑपरेटरों को भी इसका लाभ मिलना था। इस प्लांट के लिए कई प्रयास भी पहले हुए, लेकिन कहीं रास्ते की अड़चन तो कहीं सरकारों की उदासीनता के कारण इसे शुरू नहीं किया जा सका।
क्या है निदान
कई युवा सिकरीधार सीमेंट प्लांट के भरोसे थे लेकिन अब उन्हें अन्यत्र रोजगार के लिए भटकना पड़ रहा है। केंद्र व राज्य सरकार को सीमेंट प्लांट की राह में आ रही बाधाओं को प्रमुखता से दूर करना चाहिए। अगर कहीं वन भूमि इसके निर्माण कार्य में बाधा उत्पन्न कर रह है तो इसे दूर किया जाना चाहिए। सांसद को इस मुद्दे को गंभीरता से लेना होगा।
- स्थानीय मुद्दे
1. नहीं मिल पाई डल झील को खास पहचान
समस्या: भरमौर के बाद छोटे मणिमहेश यानी मैक्लोडगंज के निकट स्थित डल झील अपना वजूद तलाश रही है। पर्यटन की दृष्टि से न तो यहां विशेष विकास कार्य हुए हैं न ही इसके सुंदरीकरण के लिए कोई कदम उठे। इस झील की याद राधाष्टमी पर होने वाले स्नान से पहले ही आती है। उसके बाद फिर इसे भुला दिया जाता है। झील से रिसाव को रोकने में ही कई एजेंसियों के पसीने छूट रहे हैं। केंद्र से झील के सुंदरीकरण के लिए मंजूर चार करोड़ में से 1.20 करोड़ रुपये की पहली किस्त पर्यटन विभाग को प्राप्त हो गई है। पर्यटन विभाग ने भी रिसाव के चलते निदेशालय को लीकेज की वजह जानने के लिए अध्ययन स्टेट जियोलॉजिस्ट से करवाने के लिए पत्र लिखा और इस पर निदेशालय ने भी आइआइटी रुड़की व स्टेट जियोलॉजिस्ट को लिखा है।
क्या हैं कारण
लीकेज के कारण अब यहां पर बहुत कम पानी रह जाता है। इस दिशा में प्रयास तो किए जा रहे हैं लेकिन सफलता नहीं मिल पा रही है। इससे पूर्व डल झील से लोक निर्माण विभाग, वन विभाग समेत ग्रामीण विकास विभाग ने भी यहां गाद निकालने के साथ लीकेज रोकने का प्रयास किया था, लेकिन सभी यहां बेबस ही नजर आए थे। झील में पानी न होने के कारण यहां पर पर्यटकों की संख्या में भी कमी आ रही है। इससे यहां के पर्यटन कारोबार को झटका लग रहा है।
क्या है निदान
झील धार्मिक आस्था के साथ-साथ पर्यटन की दृष्टि से भी अहम है। डल झील के विकास के लिए प्राथमिकता से कार्य किए जाने की जरूरत है। संबंधित विभाग को जियोलॉजिस्ट की मदद से इसका अध्ययन करवाना चाहिए ताकि यह पता चल सके की लीकेज का क्या कारण हैं और इनका स्थायी समाधान करवाना चाहिए। रिसाव रोकने के लिए कारगर कदम उठाने होंगे, तभी डल का वैभव लौट पाएगा। वहीं सुंदरीकरण की दिशा में भी कदम उठाने चाहिए।
2. रोपवे योजनाओं को नहीं मिला कोई आधार
समस्या: संसदीय क्षेत्र में रोपवे योजनाओं को आधार ही नहीं मिल पाया है। यह चाहे आदि हिमानी चामुंडा हो या फिर न्यूगल रोपवे योजना। वर्षों से इन योजनाओं की फाइलें धूल फांक रही हैं। अगर इन दोनों योजनाओं को आधार मिलता तो युवाओं को रोजगार के साथ पर्यटन व्यवसाय को गति मिलनी थी। आदि हिमानी चामुंडा को धार्मिक पर्यटन से जोडऩे की योजना चार बाद भी सिरे नहीं चढ़ी है। रोपवे के बनने से कंड भोंटा से 14 किलोमीटर की सीधी चढ़ाई पर्यटकों व श्रद्धालुओं को चढऩे से राहत मिलनी थी। जून 2015 में हिमानी चामुंडा रोपवे की आधारशिला पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने रखी थी। निर्माण की जिम्मेदारी ऊषा बैरेको कंपनी को सौंपी गई थी। इसके बाद एफसीए क्लीयरेंस को लेकर औपचारिकताओं का दौर शुरू हुआ, जो अब तक जारी है।
क्या हैं कारण
पालमपुर में न्यूगल रोपवे तीन दशक बाद भी नहीं बन पाया है। करीब 29 वर्ष पहले शिलान्यास के बाद एक ईंट तक नहीं लग पाई है। शांता कुमार की इस योजना को लेकर प्रदेश सरकार ने भी कुछ कदम जरूर बढ़ाए लेकिन परिणाम शून्य रहा। क्षेत्र में रोपवे की राह में पर्यावरणीय मंजूरी न मिलना बड़ी बाधा रहा, जिसे दूर नहीं किया जा सका। इसके अलावा बजट का भी पर्याप्त प्रावधान न होना भी एक समस्या रहा है।
क्या है निदान
रोपवे की योजना की राह में वन मंत्रालय की स्वीकृति न मिलना बड़ा रोड़ा है। अगर वन मंत्रालय शीघ्र स्वीकृति प्रदान करे तो इन योजनाओं को पंख लग सकेंगे। दोनों को योजनाओं को मूर्त रूप देने के लिए केंद्र सरकार के समक्ष प्रमुखता से मामला उठाया जाए। झील के संरक्षण व सुंदरीकरण का मामला केंद्र के समक्ष उठाया जाना चाहिए। इससे यहां पर्यटन को पंख लगेंगे।
3. खजियार झील को धीरे-धीरे निगल रही गाद
समस्या :मिनी स्विट्जरलैंड के नाम से विख्यात पर्यटन नगरी खजियार में झील उपेक्षा का दंश झेल रही है। इसे संवारने का प्रयास सिरे नहीं चढ़ पाए हैं और गाद इस झील को धीरे-धीरे निगल रही है। झील में लगातार बढ़ रही गाद से इसके अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है। इसकी परिधि सिकुड़ती जा रही है। इस विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल को संवारने के लिए आज दिन तक गंभीरता से पहल नही की गई है। कई साल पहले जिला प्रशासन व वन्य प्राणी विभाग लाखों रुपये गाद निकालने के लिए खर्च कर चुका है लेकिन योजनाबद्ध काम को अंजाम न देने से स्थिति जस की तस है। झील का 300 मीटर का दायरा फूल व घास उगने से दलदल में तबदील हो रहा है।
क्या है निदान
खजियार को विकसित करने के लिए योजना बनाई जानी जरूरी है। बेहतर सुविधाएं मिलें तो यहां अधिक पर्यटक आएंगे। खजियार को विकसित करने के लिए करोड़ों का बजट मंजूर है, लेकिन इस बजट को धरातल पर लाने की जरूरत है। संबंधित विभागों को झील के संरक्षण के जल्द प्रयास करने होंगे।