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बंदरों के आतंक से अब आशियानों पर संकट, यहां उछल कूद कर तोड़ रहे मकानों की छतें Kangra News

Monkies Break Roof चंगर धार में बंदरों से किसानों को जहां फसलें बचानी मुश्किल हो रही थीं वहीं अब मकान की छत के लिए भी पहरेदारी करनी पड़ रही है।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Mon, 17 Feb 2020 10:00 AM (IST)Updated: Mon, 17 Feb 2020 10:00 AM (IST)
बंदरों के आतंक से अब आशियानों पर संकट, यहां उछल कूद कर तोड़ रहे मकानों की छतें Kangra News
बंदरों के आतंक से अब आशियानों पर संकट, यहां उछल कूद कर तोड़ रहे मकानों की छतें Kangra News

पंचरुखी, बृज धीमान। चंगर धार में बंदरों से किसानों को जहां फसलें बचानी मुश्किल हो रही थीं वहीं अब मकान की छत के लिए भी पहरेदारी करनी पड़ रही है। साधन संपन्न लोग तो कोई न कोई उपाय कर बंदरों से मकानों की छत पर लगी स्लेटों को बचा रहे हैं, मगर मेहनतकश मजदूर व आम ग्रामीण कैसे आशियाने को बंदरों के कहर से बचाएं। हालात यह हैं कि घरों की स्लेटपोश छतों को बचाने की चुनौती लोगों को परेशान कर रही है क्योंकि छत पर चढ़कर बंदर स्लेटों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। हालांकि कुछ स्थानों पर ग्रामीणों ने स्लेटों पर लोहे की जालियां लगवा ली हैं। इनमें करंट लगाकर बंदरों से छतों को बचान का प्रयास किया जा रहा हे।

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जयसिंहपुर विधानसभा क्षेत्र के तहत चंगर धार के भुआणा, किल्ली, मकोल, आशापुरी, मंझेडा, कच्छेड़ा में मक्की व गेहूं की अच्छी पैदावार होती थी। लेकिन बीते कुछ साल से बंदरों के आतंक के कारण किसानों ने फसलों की बिजाई करना बंद कर दी है। मगर अब ग्रामीणों को खेती के बाद मकानों की छतों को बचाने के लिए पहरेदारी करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

क्‍या कहते हैं लोग व जनप्रतिनिधि

  • बंदरों से किसानों को निजात दिलाने के लिए सरकार सही कदम नहीं उठा पाई है। किसान व ग्रामीण अपने स्तर पर इंतजाम कर मकानों व फसलों को बचा रहे हैं। सरकार को कोई ठोस नीति बनानी होगी ताकि परेशानी न हो। -मनजीत डोगरा, किसान नेता, चंगर धार।
  • बंदरों व बेसहारा पशुओं का आतंक किसानों पर कहर बन कर टूटा है। आज किसान खेतीबाड़ी छोडऩे के लिए मजबूर हो गए हैं क्योंकि सरकार कोई ठोस नीति नहीं बना पाई है। सरकार को इस संबंध में जल्द ठोस कदम उठाना चाहिए। -प्रिंस, आशापुरी।
  • कभी चंगरधार क्षेत्र में फसलों की पैदावार इतनी अधिक होती थी कि लोगों को सालभर गेहूं व मक्की खरीदरने की जरूरत नहीं पड़ती थी। लेकिन अब किसान बाजार से गेहूं व मक्की खरीदने के लिए मजबूर हो गए हैं। -मोना कुमार, भुआणा।
  • सरकारों ने किसानों को केवल बंदरों को पकडऩे और ईनाम के लालच का मोह तो दिया। मगर यह सब महज किसानों को दिलासा भर है। सरकार को ठोस नीति बनानी होगी ताकि हरित क्रांति फिर लौट सके और दोबारा किसान खेती कर सकें। -शेखर कटोच, मकरोटी।
  • किसानों की खेती तो बदरों ने उजाड़ दी परंतु अब स्लेटपोश छतों को बचाना बड़ी चुनौती हो रहा है। किसानों ने लोहे की जाली छतों पर डालकर कुछ हद तक सफलता पाई है। नहीं तो खेती तो बंजर हुई अब तो छतों से भी हाथ धोना पड़ जाता। -रमन कुमार, भुआणा।

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